क्षीर नीर सरिते
दुग्ध धार सी बहती विमल शुभ्र सरिते ,
उज्ज्वल कोमल निर्मल क्षीर नीर सरिते ।
कैसे तू राह बनाती कंटक कंकर पाथर में,
चलती बढती निरबाध निरंतर मस्ती में ।
कितने उपकार धरा पर, मानव पशु पाखी पर भी,
उदगम कहाँ कहाँ अंत नही सोचती पल को भी ,
बाँध ते तूझ को फिर भी वरदान विद्युत का देती,
सदा प्यासो को नीर और खेतो को जीवन देती ।
तू कर्त्तव्य की परिभाषा तू वरदायनी सरिते ,
नमन तूझे है जगजननी निर्झरी सारंग सरिते ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
दुग्ध धार सी बहती विमल शुभ्र सरिते ,
उज्ज्वल कोमल निर्मल क्षीर नीर सरिते ।
कैसे तू राह बनाती कंटक कंकर पाथर में,
चलती बढती निरबाध निरंतर मस्ती में ।
कितने उपकार धरा पर, मानव पशु पाखी पर भी,
उदगम कहाँ कहाँ अंत नही सोचती पल को भी ,
बाँध ते तूझ को फिर भी वरदान विद्युत का देती,
सदा प्यासो को नीर और खेतो को जीवन देती ।
तू कर्त्तव्य की परिभाषा तू वरदायनी सरिते ,
नमन तूझे है जगजननी निर्झरी सारंग सरिते ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
शुभ्र अमृतमयी कल-कल,छल-छल धारा
ReplyDeleteनीर,क्षीर हरे पीर कण-कण हीर सरिते।
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बहुत सुंदर सृजन दी।
अनुपम अप्रतिम।
दुग्ध धार सी बहती विमल शुभ्र सरिते ,
ReplyDeleteउज्ज्वल कोमल निर्मल क्षीर नीर सरिते ।
बहुत-बहुत सुंदर पंक्तियाँ ।
शुभकामनाएँ आदरणीया ।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 26 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसरिताओं का गुूण-धर्म बखान करती,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteदुग्ध धार सी बहती विमल शुभ्र सरिते ,
उज्ज्वल कोमल निर्मल क्षीर नीर सरिते.. वाह!! बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌👌
तू कर्त्तव्य की परिभाषा तू वरदायनी सरिते ,
ReplyDeleteसत्य वचन। कर्ताहीनता के भाव में निष्काम भाव से बही जा रही होती है 'सरिता'!
दुग्ध धार सी बहती विमल शुभ्र सरिते ,
ReplyDeleteउज्ज्वल कोमल निर्मल क्षीर नीर सरिते ।
वाह!! प्रिय कुसुम बहन, इतनी सुंदर रचना! सुकोमल शब्दावली मन को बांधने में सक्षम है। ऐसी रचना सिर्फ आप ही लिख सकती हैं। हार्दिक शुभकामनायें। माँ सरस्वती की अनुकम्पा आप पर बनी रहे । 🙏🙏🌷🌷