रूह से सजदा
सोने दो चैन से मुझे न ख़्वाबों में ख़लल डालो,
न जगाओ मुझे यूं न वादों में ख़लल डालो।
शाख से टूट पत्ते दूर चले उड के अंजान दिशा
ए हवाओं ना रुक के यूं मौज़ों में ख़लल डालो।
रात भर रोई नरगिस सिसक कर बेनूरी पर अपने
निकल के ऐ आफ़ताब ना अश्कों में ख़लल डालो।
डूबती कश्तियां कैसे, साहिल पे आ ठहरी धीरे से
भूल भी जाओ ये सब ना तूफ़ानों में ख़लल डालो।
रुह से करता रहा सजदा पशेमान सा था दिल
रहमोकरम कैसा,अब न इबादतों में ख़लल डालो।
कुसुम कोठारी
सोने दो चैन से मुझे न ख़्वाबों में ख़लल डालो,
न जगाओ मुझे यूं न वादों में ख़लल डालो।
शाख से टूट पत्ते दूर चले उड के अंजान दिशा
ए हवाओं ना रुक के यूं मौज़ों में ख़लल डालो।
रात भर रोई नरगिस सिसक कर बेनूरी पर अपने
निकल के ऐ आफ़ताब ना अश्कों में ख़लल डालो।
डूबती कश्तियां कैसे, साहिल पे आ ठहरी धीरे से
भूल भी जाओ ये सब ना तूफ़ानों में ख़लल डालो।
रुह से करता रहा सजदा पशेमान सा था दिल
रहमोकरम कैसा,अब न इबादतों में ख़लल डालो।
कुसुम कोठारी
डूबती कश्तियां कैसे, साहिल पे आ ठहरी धीरे से
ReplyDeleteभूल भी जाओ ये सब ना तूफ़ानों में ख़लल डालो।
रुह से करता रहा सजदा पशेमान सा था दिल
रहमोकरम कैसा,अब न इबादतों में ख़लल डालो।
प्रिय कुसुम बहन जितना उम्दा लेखन आपका हिंदी में है उतना ही उर्दू में भी कमाल है | जिसकी बानगी ये रचना है | सभी अशर सार्थक और मन को छूने वाले हैं | मेरा हार्दिक शुभकामनायें और बधाई इस प्यारी सी गज़ल के लिए |
बहुत बहुत आभार प्रिय रेणु, बहन आप की सराहना आपका स्नेह है, बहन बस बदलाव के तहत लिख लेती हूं कोई खास अधिकार नहीं है इस विधा पर मेरा बस आप चाहने वालों का स्नेह मिल जाता है और मेरा बदलाव हो जाता है ।
Deleteआपकी मोहक स्नेहिल प्रतिक्रिया हर साधारण को असाधारण बना देती है ।
ढेर सारा स्नेह।
कृपया अशर् नही आशार पढ़ें 🙏🙏
ReplyDeleteवाह वाह वाह
ReplyDeleteदार्शनिक भावना...और जानेमन से बात भी.
जी सादर आभार आपका।
Delete
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
22/09/2019 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
जी पांच लिंक के लिए मेरी रचना का चयन मेरे लिए सदा सम्मान का विषय है आदरणीय ।मैं चर्चा में जरूर आऊंगी ।
Deleteसादर आभार।
बहुत ही सुंदर कुसुम जी ,एक एक शब्द दिल को छूता हुआ सा ,सादर
ReplyDeleteजी कामिनी बहन बहुत बहुत सरनेम आभार आपकी मनभावन प्रतिक्रिया से मेरा उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 21 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
स्नेह आभार श्वेता!
Deleteसांध्य दैनिक में मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
मैं अवश्य हाजिर होऊंगी।
सादर।
सदैव की तरह मंत्रमुग्ध करती रचना, सादर..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका भाई!
Deleteसदा मेरा हौसला अफजाई के लिए।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-09-2019) को "पाक आज कुख्यात" (चर्चा अंक- 3466) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत बहुत आभार! चर्चा मंच पर मेरी रचना का चयन रचना और मेरे दोनों के लिए गर्व का विषय है ।
Deleteसादर।
सुन्दर गजल
ReplyDeleteब्लाॅ॑ग पर आपका स्वागत है ।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका।
वाह! आज के दौर में भी ब्लॉगिंग जिंदाबाद!!!
ReplyDeleteजी सादर।
Deleteरात भर रोई नरगिस सिसक कर बेनूरी पर अपने
ReplyDeleteनिकल के ऐ आफ़ताब ना अश्कों में ख़लल डालो।
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब सृजन....
बहुत बहुत आभार सुधा जी , सक्रिय प्रतिक्रिया आपकी मनमोहक।
Deleteसस्नेह।
वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बधाई
बहुत सा आभार आपका आदरणीय।
Deleteवाह बेहतरीन प्रस्तुति सखी।👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी।
Deleteसस्नेह
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२३ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी बहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteसादर ।
बेहतरीन रचना हर शेर शानदार नमन
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
शाख से टूट पत्ते दूर चले उड के अंजान दिशा
ReplyDeleteए हवाओं ना रुक के यूं मौज़ों में ख़लल डालो।
रात भर रोई नरगिस सिसक कर बेनूरी पर अपने
निकल के ऐ आफ़ताब ना अश्कों में ख़लल डालो।... बेहतरीन से बेहतरीन दी जी
सादर
आपकी टिप्पणी मन मोह गई और उत्साह दुगना सुधा ।
Deleteबहुत सा स्नेह आभार।
अनजान दिशा में उड़ते पत्तों की उड़ान में खलल न डाले पवन ...
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है ... हर शेर गहरा मर्म लिए ...
जी सादर आभार इस विधा में आप की सराहना सचमुच हर्षित कर गई ।
ReplyDeleteसादर ।
उत्साहवर्धक।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (22-06-2020) को 'कैनवास में आज कुसुम कोठारी जी की रचनाएँ' (चर्चा अंक-3740) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हमारी विशेष प्रस्तुति 'कैनवास' में आपकी यह प्रस्तुति सम्मिलित की गई है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन।
ReplyDelete