झरते पात जाते-जाते
बोले एक बात,
हे तरुवर ना होगा
मिलना किसी भांत ,
हम बिछुड़ तुम से अब,
कहीं दूर पड़ें या पास,
पातों का दुख देख कर
तरु भी हुआ उदास ,
बोला फिर भी वह एक
आशा वाली बात ,
हे पात सुनो ध्यान से
मेरी एक शाश्र्वत बात ,
जाने और आने का
कभी ना कर संताप ,
इस जग की रीत यही है
सत्य और संघात ,
नव पल्लव विहंस कर
कहते है एक बात,
कोई आवत जग में
और कोई है जात ।
कुसुम कोठारी।
जीवन का सत्य
ReplyDeleteसटीक सृजन
बहुत सा स्नेह सखी आपकी प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर और सटीक रचना सखी
ReplyDeleteढेर सा आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
Deleteसस्नेह।
सत्य कहा दी आपने..
ReplyDeleteअकसर ही ऐसा देखने को मिलता है कि कहीं किसी की अर्थी उठती है, तो पड़ोस में डोली..
मानवीय संवेदना यहाँ यह कहती है कि शहनाई की गूंज पर तनिक नियंत्रण कर लिया जाए..।
इतना भर से पड़ोस में लगेगा कि उसकी पीड़ा में उत्सव मनाने वाले भी सहभागी हैं।
सादर
आहा सुंदर विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया से रचना को नये आयाम मिले भाई बहुत सुंदर व्याख्या है आपकी ।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
इस जग की रीत यही है
ReplyDeleteसत्य और संघात ,
नव पल्लव विहंस कर
कहते है एक बात,
कोई आवत जग में
और कोई है जात ।
अटल सत्य को झरते पत्तों के संकेत के साथ सम्मुख रखती बहुत ही लाजवाब भावाभिव्यक्ति....
वाह!!!
बहुत बहुत आभार सुधा जी आपके स्नेह का कोई मूल्य नहीं बहुत प्यारी प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह।
झरते पात जाते-जाते
ReplyDeleteबोले एक बात,
हे तरुवर ना होगा
मिलना किसी भांत ,
बहुत सुन्दर...संसार की नश्वरता का यही विधान है .. भावों की गहनता लिए सुन्दर सृजन ।
बहुत सा आभार मीना जी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह वर्धन करती है ।
Deleteसस्नेह।
बहुत सार्थक और यथार्थ जीवन दर्शन दी।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना👍
छम-छम जीवन का गीत सुनो
आना-जाना जग की रीत सुनो
तेरा-मेरा रट-रट मर जाये मूरख
सब क्षणभंगुर माया मनमीत सुनो।
बहुत बहुत आभार श्वेता, आपकी सुंदर प्रतिक्रिया रचना के समानांतर रचना को मुखरित करती ।
Deleteढेर सारा स्नेह।
जीवन का सत्या दर्शाती रचना बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteजी दी आपका आशीर्वाद बना रहे ।
Deleteसादर आभार दी ।
जिसने ये सत्यता जान ले उसको बिछड़ने का दुःख कैसा? मौत से डर कैसा?
ReplyDeleteसुंदर रचना.
पधारें- अंदाजे-बयाँ कोई और
जी सादर आभार व्याख्या के साथ प्रतिक्रिया से रचना को पूर्ण अर्थ मिला । सुंदर व्याख्या।
Deleteसादर ।
चर्चा मंच पर रचना की प्रस्तुति सदा मेरे लिए सम्मान का विषय है बहुत बहुत आभार।
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ReplyDeleteजाने और आने का
ReplyDeleteकभी ना कर संताप ,
इस जग की रीत यही है
सत्य और संघात ,
प्रिय कुसुम बहन जो आया है वो जाएगा भी , यही बात तो मोहमाया से ग्रस्त हम संसारी लोग समझ नहीं पाते | समझते हैं बस यही उल्लास रहेगा और हर कोई साथ साथ रहेगा | सच पात और वृक्ष का ये संवाद बहुत प्रेरक है | काश हम भी उन्ही की तरह जान और मान पाते !!!!!!!
सुंदर व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया आपकी विशेषता है रेणु बहन! जो आपको सब से अलग स्थान देती है, रचनाकार को सदा ऐसी टिप्पणी पाकर अथाह संतोष मिलता है,सच बहन आपका सदा इंतजार रहता है पटल पर ।
Deleteबहुत बहुत सा आघात स्नेह।
आना जाना नियम है सृष्टि का इसका कुआ दुःख ...
ReplyDeleteदर्शन का भाव लिए सुन्दर रचना ...