जगत और जीवात्मा
ओ गगन के चंद्रमा मैं शुभ्र ज्योत्सना तेरी हूं,
तूं आकाश भाल विराजित मैं धरा तक फैली हूं।
ओ अक्षूण भास्कर मैं तेरी उज्ज्वल प्रभा हूं,
तूं विस्तृत नभ में आच्छादित मैं तेरी प्रतिछाया हूं।
ओ घटा के मेघ शयामल मैं तेरी जल धार हूं,
तूं धरा की प्यास हर, मैं तेरा तृप्त अनुराग हूं ।
ओ सागर अन्तर तल गहरे मैं तेरा विस्तार हूं,
तूं घोर रोर प्रभंजन है, मै तेरा अगाध उत्थान हूं।
ओ मधुबन के हर सिंगार, मै तेरा रंग गुलनार हूं,
तूं मोहनी माया सा है मैं निर्मल बासंती बयार हूं।
कुसुम कोठारी।
ओ गगन के चंद्रमा मैं शुभ्र ज्योत्सना तेरी हूं,
तूं आकाश भाल विराजित मैं धरा तक फैली हूं।
ओ अक्षूण भास्कर मैं तेरी उज्ज्वल प्रभा हूं,
तूं विस्तृत नभ में आच्छादित मैं तेरी प्रतिछाया हूं।
ओ घटा के मेघ शयामल मैं तेरी जल धार हूं,
तूं धरा की प्यास हर, मैं तेरा तृप्त अनुराग हूं ।
ओ सागर अन्तर तल गहरे मैं तेरा विस्तार हूं,
तूं घोर रोर प्रभंजन है, मै तेरा अगाध उत्थान हूं।
ओ मधुबन के हर सिंगार, मै तेरा रंग गुलनार हूं,
तूं मोहनी माया सा है मैं निर्मल बासंती बयार हूं।
कुसुम कोठारी।
बहुत ही खूबसूरत रचना। बहुत बहुत बधाई इस शानदार सृजन के लिए 💐💐💐
ReplyDeleteसखी बहुत सा आभार आपका शानदार प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसस्नेह।
वाह सखी अद्भुत लेखन.. बहुत ही बेहतरीन रचना 👌👌👏👏🌹
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी। आपकी सराहना से उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसस्नेह।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " सोमवार 16 सितम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सा आभार मीना जी मुखरित मौन में मेरी रचना को रखने के लिए बहुत बहुत आभार।
ReplyDeleteसादर सस्नेह।
ओ मधुबन के हर सिंगार, मै तेरा रंग गुलनार हूं,
ReplyDeleteतूं मोहनी माया सा है मैं निर्मल बासंती बयार हूं।
बहुत ही मनमोहक रचना ,सादर नमस्कार कुसुम जी
बहुत बहुत आभार कामिनी जी सस्नेह अभिवादन आपको फिर सक्रिय देख मन को सुकून मिला आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई ।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
प्राकृति के कितने ही रंग समेट लिए है आज इस रचना में आपने ...
ReplyDeleteबहुत ही कमाल की रचना है ...
उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से आभार आपका आदरणीय नासवा जी।
Deleteसादर।
वाह आदरणीया दीदी जी मनमोहक,बहुत सुंदर पंक्तियाँ 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत स्नेह आभार प्रिय आंचल।
Deleteओ अक्षूण भास्कर मैं तेरी उज्ज्वल प्रभा हूं,
ReplyDeleteतूं विस्तृत नभ में आच्छादित मैं तेरी प्रतिछाया हूं।
ओ घटा के मेघ शयामल मैं तेरी जल धार हूं,
तूं धरा की प्यास हर, मैं तेरा तृप्त अनुराग हूं ।
बहुत खूब प्रिय कुसुम बहन !!!!!!!!!!!!
सस्नेह आभार प्रिय रेणु बहन आपका अनुपम स्नेह सदा अक्षुण्ण रहे ।
ReplyDeleteसस्नेह।