कहीं उजली, कहीं स्याह अधेंरों की दुनिया ,
कहीं आंचल छोटा, कहीं मुफलिसी में दुनिया।
कहीं दामन में चांद और सितारे भरे हैं ,
कहीं ज़िन्दगी बदरंग धुँआ-धुआँ ढ़ल रही है ।
कहीं हैं लगे हर ओर रौनक़ों के रंगीन मेले
कहीं मय्यसर नही दिन को भी उजाले ।
कहीं ज़िन्दगी महकती खिलखिलाती है
कहीं टूटे ख्वाबों की चुभती किरचियां है ।
कहीं कोई चैन और सुकून से सो रहा है,
कहीं कोई नींद से बिछुड़ कर रो रहा है।
कहीं खनकते सिक्कों की खन-खन है,
कहीं कोई अपनी ही मैयत को ढो रहा है ।
कुसुम कोठारी।
कहीं आंचल छोटा, कहीं मुफलिसी में दुनिया।
कहीं दामन में चांद और सितारे भरे हैं ,
कहीं ज़िन्दगी बदरंग धुँआ-धुआँ ढ़ल रही है ।
कहीं हैं लगे हर ओर रौनक़ों के रंगीन मेले
कहीं मय्यसर नही दिन को भी उजाले ।
कहीं ज़िन्दगी महकती खिलखिलाती है
कहीं टूटे ख्वाबों की चुभती किरचियां है ।
कहीं कोई चैन और सुकून से सो रहा है,
कहीं कोई नींद से बिछुड़ कर रो रहा है।
कहीं खनकते सिक्कों की खन-खन है,
कहीं कोई अपनी ही मैयत को ढो रहा है ।
कुसुम कोठारी।
ReplyDeleteकहीं ज़िन्दगी महकती खिलखिलाती है
कहीं टूटे ख्वाबों की चुभती किरचियां है । बेहद हृदयस्पर्शी रचना सखी
बहुत बहुत आभार सखी आपकी त्वरित प्रतिक्रिया सदा मन में उत्साह का संचार करती है ।
Deleteसस्नेह आभार।
वाह !
ReplyDeleteकहीं जिंदगी बद रंग धुआँ-धुआँ ढल रही है।
बहुत सुंदर
दो रंग जीवन के होते है।
बहुत सा आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
Deleteसस्नेह।
ReplyDeleteकहीं खनकते सिक्कों की खन-खन है,
कहीं कोई अपनी ही मैयत को ढो रहा है।
बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।
ज्योति बहन ढेर सा प्यार और आभार आपकी उपस्थिति प्ररेणा का संचार करती है।
Deleteसस्नेह आभार।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 18 सितंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार आपका पम्मी जी पांच लिंक में अपने को देखना सदा गौरव का विषय है ।
Deleteसस्नेह आभार।
कहीं कोई चैन और सुकून से सो रहा है,
ReplyDeleteकहीं कोई नींद से बिछुड़ कर रो रहा है।....भावपूर्ण चित्रण !
बहुत बहुत आभार आपका आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला और लेखन को प्ररेणा।
Deleteसस्नेह आभार।
हर छंद जीवन की हकीकत लिए ...
ReplyDeleteहर बात गहरी, दर्शन से भरपूर ... मनन करने के लिए ...
जी आभार आपका आदरणीय नासवा जी रचना सार्थक हुई आपकी प्रतिक्रिया से।
Deleteसादर ।
जीवन का सुंदर दर्शन
ReplyDeleteबहुत बहुत स्नेह सखी।
Deleteकहीं दामन में चांद और सितारे भरे हैं ,
ReplyDeleteकहीं ज़िन्दगी बदरंग धुँआ-धुआँ ढ़ल रही है ।
बेहतरीन और लाजवाब... बहुत सुन्दर कुसुम जी ।
ढेर सारा स्नेह आभार मीना जी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया सदा लेखन की प्ररेणा बनता है ।
Deleteसस्नेह।
जीवन की वास्तविकता को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करती भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया दीदी जी
ReplyDeleteसादर नमन
बहुत बहुत स्नेह आभार प्रिय आंचल! आपकी प्यारी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसुख-दुःख, उतार-चढ़ाव, दारिद्र्य-वैभव, भुखमरी-बदहज़मी, थकन-आराम, महल-झोंपड़ी, नेता-मतदाता, मालिक-मज़दूर, न्याय-अन्याय, स्याह-सफ़ेद आदि अगर साथ-साथ न दिखें तो मज़ा नहीं आता.
ReplyDeleteमैं अभिभूत हूं सर आपकी असाधारण प्रतिक्रिया मेरे लिए मूल्य शान है।
Deleteसादर आभार।
कहीं उजली, कहीं स्याह अधेंरों की दुनिया ,
ReplyDeleteकहीं आंचल छोटा, कहीं मुफलिसी में दुनिया।
कहीं दामन में चांद और सितारे भरे हैं ,
कहीं ज़िन्दगी बदरंग धुँआ-धुआँ ढ़ल रही है ।
जीवन के दोनों रंगों को बखूबी दर्शाती भावपूर्ण रचना प्रिय कुसुम बहन | सस्नेह --
बहुत बहुत आभार रेणु बहन।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
सस्नेह।