आज हिंदी दिवस पर विशेष ।
हिंदी तो बस हिंदी, हिंदी सम बस हिंदी,
देवनागरी , देवताओं द्वारा रचित
सुंदर अक्षर माला,
सरल, सरस, शाश्वत
विश्व की किसी भाषा में नही
गुणवत्ता हिंदी सम ,
अलंकार और उपमा,
सांगोपांग शब्दकोश
खोजने से भी ना मिले कहीं,
इतनी विराट, अनंत, गहराई समेटे ,
किसी और भाषा के लिये
है कल्पनातीत।
हिंदी तो बस हिंदी ।
कुसुम कोठारी।
हिंदी तो बस हिंदी, हिंदी सम बस हिंदी,
देवनागरी , देवताओं द्वारा रचित
सुंदर अक्षर माला,
सरल, सरस, शाश्वत
विश्व की किसी भाषा में नही
गुणवत्ता हिंदी सम ,
अलंकार और उपमा,
सांगोपांग शब्दकोश
खोजने से भी ना मिले कहीं,
इतनी विराट, अनंत, गहराई समेटे ,
किसी और भाषा के लिये
है कल्पनातीत।
हिंदी तो बस हिंदी ।
कुसुम कोठारी।
सुन्दर कृति।
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका।
Deleteब्लाग पर स्वागत आपका।
सादर।
सही कहा आपने ..
ReplyDeleteहिन्दी तो बस हिन्दी है...
यदि प्रबुद्ध वर्ग की कथनी एवं करनी में अंतर नहीं होता ,तो हिन्दी निश्चित ही शिखर पर होती। हमारी मातृभाषा अपने ही घर में दासी न होती।
क्या एक संकल्प अपने घर में नहीं लिया जा सकता कि हम और हमारे बच्चे आपस में अंग्रेजियत के प्रतीक शब्द पापा- मम्मी, अंकल- आंटी और सर जी छोड़ दे।
नाम परिवर्तन तो सदैव संभव है न..
जब प्रश्न अपनी भाषा का हो , तो इतना भी त्याग नहीं...?
फिर हम कैसे साहित्यकार..!
मैंने तो निश्चय किया है कि जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक और मण्डलायुक्त आदि किसी भी वरिष्ठ अधिकारी को भविष्य में "सर या सर जी " न कहूँगा।
उनके लिये वार्तालाप के दौरान " भाई साहब " अथवा " मान्यवर " जैसे शब्द का प्रयोग करूँगा।
सादर..
सही कहा आपने भाई ,अच्छी तरह हर ऊंच-नीच पर प्रकाश डाला ।
Deleteपर जहां तक व्यवहारिकता की बात है, वहां हम बस अपने तक सीमित रह जाते हैं ,हर-दिन की आपाधापी से लड़ने के लिए हम बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाना चाहते हैं, और ये आज की जरूरत ही बन गई है,
विश्व स्तर पर आगे बढ़ने की ललक , प्रतियोगिता के युग में लड़ कर आगे बढ़ने के ध्येय में मातृभाषा का मोह किसी विरले को लुभाता है, बाकी सब बस व्यवहारिक भविष्य को संवारने का उद्देश्य लिए आगे बढ़ते हैं ,उन्हें समय नहीं होता ये देखने का कि उनकी राष्ट्र भाषा उपेक्षित ही कंहा खड़ी है। भाषा का पुनरुत्थान के लिए साहित्यकारों और हिंदी रचनाकारों को ही प्रयास करने होंगे ,हम एक दिन हिंदी दिवस मनाकर हिंदी के प्रति कौनसी भक्ति दिखाते हैं मुझे नहीं मालूम हम व्यवहार में कितनी हिंदी उतारते हैं चिंतन कर देखने का विषय है ।
आज जो अ हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी की हालत कितनी बदतर है , बच्चों को सामान्य से शब्दों का मतलब अंग्रेजी में बताना पड़ता है, यहां तक होता है कि आप को अपने कम अंग्रेजी ज्ञान के लिए लज्जा महसूस होती है, पर उन्हें अपने न बराबर हिंदी ज्ञान के लिए कोई ग्लानि नहीं होती ।
आपने अच्छी शुरुआत की है कोशिश रहेगी कि हमें भी प्रभु सन्मति देता रहे ।
ऐसे उद्धेश्यात्मक लेखन करते रहिए, तो कुछ तो सकारात्मकता बनी रहे हमारी सोच में हिंदी के प्रति।
बहुत बहुत आभार।
बहुत ही सुंदर भाव है दी..सुंदर सृजन👍
ReplyDeleteसस्नेह आभार श्वेता ।
Deleteबहुत सुंदर रचना सखी
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह आभार सखी।
Deleteबहुत सुन्दर रचना प्रिय कुसुम!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार प्रिय दी।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर मेरी रचना को रखने के लिए।
ReplyDeleteसस्नेह।
है कल्पनातीत।
ReplyDeleteहिंदी तो बस हिंदी ।
सच कहा आपने प्रिय बहन !!!