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Thursday, 25 April 2019

मौजों सा बचपन

पानी पर  चलता है वो मौजों सा बचपन।

ना डर ना फिकर,मदमाता सा बचपन
सागर नापले हाथों से,वो भोला सा  बचपन।

लहरों का खिलौना, थामले हाथ में मस्त सा बचपन
जल परी बन तंरगित हो,नाचता गाता  बचपन ।

लहरों सा थिरकता, अल्हड सा बचपन
फूलों सा खिलता,वो खिलखिलाता बचपन।

तितलियों सा उडता, वो इठलाता बचपन
सब कुछ दे दूं ,गर मिल जाय वो बीता बचपन।

                कुसुम कोठारी।

7 comments:

  1. लहरों सा थिरकता, अल्हड सा बचपन
    फूलों सा खिलता,वो खिलखिलाता बचपन।
    बहुत ही प्यारी रचना सखी 👌👌🌹

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    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी त्वरित प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा ।

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 25/04/2019 की बुलेटिन, " पप्पू इन संस्कृत क्लास - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. सादर आभार।
      मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से शुक्रिया।

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  3. सब कुछ दे दूं ,गर मिल जाय वो बीता बचपन।
    काश...

    बचपन सा सुनहरा कुछ भी नहीं कुसुम दी . फिर से उन दिनों में लौट जाने को जी करता है.

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  4. हां बस जाके जो ना आये उसे बचपन कहते हैं।
    सस्नेह आभार बहना।

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  5. तितलियों सा उडता, वो इठलाता बचपन
    सब कुछ दे दूं ,गर मिल जाय वो बीता बचपन।
    बचपन से जुड़ी अनुभूतियाँ बड़ी अनमोल हैं ....., बेहद खूबसूरत और दिल को छूती रचना ।

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