धर्म
*धर्म* यानि जो धारण करने योग्य हो
क्या धारण किया जाय सदाचार, संयम,
सहअस्तित्व, सहिष्णुता, सद्भाव,आदि
धर्म इतना मूल्यवान है...,
कि उसकी जरूरत सिर्फ किसी समय विशेष के लिए ही नहीं होती, अपितु सदा-सर्वदा के लिए होती है ।
*धर्म* यानि जो धारण करने योग्य हो
क्या धारण किया जाय सदाचार, संयम,
सहअस्तित्व, सहिष्णुता, सद्भाव,आदि
धर्म इतना मूल्यवान है...,
कि उसकी जरूरत सिर्फ किसी समय विशेष के लिए ही नहीं होती, अपितु सदा-सर्वदा के लिए होती है ।
बस सही धारण किया जाय।
गीता का सुंदर ज्ञान पार्थ की निराशा से अवतरित हुवा ।
गीता का सुंदर ज्ञान पार्थ की निराशा से अवतरित हुवा ।
कहते हैं कभी कभी घोर निराशा भी सृजन के द्वार खोलती है। अर्जुन की हताशा केशव के मुखारविंद से अटल सत्य बन
करोड़ों शताब्दियों का अखंड सूत्र बन गई।
करोड़ों शताब्दियों का अखंड सूत्र बन गई।
विपरीत परिस्थितियों में सही को धारण करो, यही धर्म है।
चाहे वो कितना भी जटिल और दुखांत हो.....
पार्थ की हुंकार थम गई अपनो को देख,
बोले केशव चरणों में निज शीश धर
मुझे इस महापाप से मुक्ति दो हे माधव
कदाचित मैं एक बाण भी न चला पाउँगा ,
अपनो के लहू पर कैसे इतिहास रचाऊँगा,
संसार मेरी राज लोलुपता पर मुझे धिक्कारेगा
तब कृष्ण की वाणी से श्री गीता अवतरित हुई ।
कर्म और धर्म के मर्म का वो सार ,
युग युगान्तर तक मानव का
मार्ग दर्शन करता रहेगा ।
आह्वान करेगा जन्म भूमि का कर्ज चुकाने का
मां की रक्षा हित फिर देवी शक्ति रूप धरना होगा
केशव संग पार्थ बनना होगा ,
अधर्म के विरुद्ध धर्म युद्ध
लड़ना होगा।
कुसुम कोठारी
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13-04-2019) को " बैशाखी की धूम " (चर्चा अंक-3304) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
- अनीता सैनी
इस सम्मान के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।
Deleteसस्नेह
बहुत सही कहा कुसुम दी कि धर्म याने जो धारण करने योग्य हो। बहुत सुंदर।
ReplyDeleteसमर्थन के लिए बहुत सा आभार आपका बहना ।
Deleteसस्नेह
धर्म* यानि जो धारण करने योग्य हो
ReplyDeleteक्या धारण किया जाय सदाचार, संयम,
सहअस्तित्व, सहिष्णुता, सद्भाव,आदि
बहुत खूब......, बेहतरीन लेख 👌👌👌👌
मीना जी बहुत सा आभार आपका उत्साह वर्धन के लिये ।आपकी सक्रिय प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteसस्नेह ।
वाह दीदी जी अद्भुत अर्थ दिया आपने धर्म का
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार प्रिय आंचल आपका स्नेह और सराहना दोनो अतुल्य है मेरे लिए।
Deleteसस्नेह
अधर्म के विरुद्ध धर्म युद्ध
ReplyDeleteलड़ना होगा।
वाह बहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌👌
बहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है।
Deleteसस्नेह।
सादर आभार।
ReplyDelete*धर्म* यानि जो धारण करने योग्य हो
ReplyDeleteक्या धारण किया जाय सदाचार, संयम,
सहअस्तित्व, सहिष्णुता, सद्भाव,आदि
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमस्कार आप को
बहुत बहुत आभार कामिनी जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteधर्म जो धारण किया जाए ...
ReplyDeleteसच कहा है ... अनेकों बार इंसान विचलित होता है इस मार्ग से ... पर इश्वर का साथ, उसका स्मरण करके लौटता है इस मार्ग पर हमेशा ...
जी बहुत सा आभार रचना को सार्थक समर्थन देती प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुवा ।
Deleteपार्थ की हुंकार थम गई अपनो को देख,
ReplyDeleteबोले केशव चरणों में निज शीश धर
मुझे इस महापाप से मुक्ति दो हे माधव
कदाचित मैं एक बाण भी न चला पाउँगा ,
अपनो के लहू पर कैसे इतिहास रचाऊँगा,
संसार मेरी राज लोलुपता पर मुझे धिक्कारेगा
बहुत खूब दी. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति 👏👏
बहुत सा स्नेह सुधा जी आपकी मनभावन प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा ।
Deleteब्लॉग पर आपकी उपस्थिति उत्साह वर्धक है।
सस्नेह आभार
बहुत खूब।
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका ।
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ReplyDeleteविपरीत परिस्थितियों में सही को धारण करो, यही धर्म है।
चाहे वो कितना भी जटिल और दुखांत हो.....
सबसे सटीक एवं सही परिभाषा धर्म की। सुंदर रचना।
मीना जी आपकी उपस्थिति ही रचना का पारितोष है।
Deleteविपरीत परिस्थितियों में सही को धारण करो, यही धर्म है।
ReplyDeleteचाहे वो कितना भी जटिल और दुखांत हो.....
लाजवाब सृजन
जी सादर आभार आपका प्रोत्साहन के लिए ।
Deleteधर्म जो धारण करने योग्य हो...
ReplyDeleteबहुत सटीक...
विपरीत परिस्थितियों में सही को धारण करो, यही धर्म है।
चाहे वो कितना भी जटिल और दुखांत हो.....
वाह!!!
उत्कृष्ट रचना...
बहुत बहुत आभार सुधा जी।
Deleteवाह! बहुत सुन्दर!!!
ReplyDeleteजी बहुत सा आभार ।
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