लो टिकोरों से झूमी डालियां
फागुन के महीने में आम के पेड़ मंजरियों या "मौरों" से लद जाते हैं, जिनकी मीठी गंध से दिशाएँ भर जाती हैं । चैत के आरंभ में मौर झड़ने लग जाते हैं और 'सरसई' (सरसों के बराबर फल) दिखने लगते हैं । जब कच्चे फल बेर के बराबर हो जाते हैं, तब वे 'टिकोरे' कहलाते है । जब वे पूरे बढ़ जाते हैं और उनमें जाली पड़ने लगती है, तब उन्हे 'अंबिया' कहते हैं।
अंबिया पक कर आम जिसे रसाल कहते हैं।
~ ~ ~
चंदन सा बिखरा हवाओं में
मौरों की खुशबू है फिजाओं में
ये किसीके आने का संगीत है
या मौसम का रुनझुन गीत है।
मन की आस फिर जग गई
नभ पर अनुगूँज बिखर गई
होले से मदमाता शैशव आया
आम द्रुम सरसई से सरस आया ।
देखो टिकोरे से भर झूमी डालियां
कहने लगे सब खूब आयेगी अंबिया
रसाल की गांव मेंं होगी भरमार
इस बार मेले लगेंगे होगी बहार।
लौट आवो एक बार फिर घर द्वारे
सारा परिवार खड़ा है आंखें पसारे
चलो माना शहर में खुश हो तुम
पर बिन तुम्हारे यहाँ खुशियां हैं गुम।
कुसुम कोठारी।
फागुन के महीने में आम के पेड़ मंजरियों या "मौरों" से लद जाते हैं, जिनकी मीठी गंध से दिशाएँ भर जाती हैं । चैत के आरंभ में मौर झड़ने लग जाते हैं और 'सरसई' (सरसों के बराबर फल) दिखने लगते हैं । जब कच्चे फल बेर के बराबर हो जाते हैं, तब वे 'टिकोरे' कहलाते है । जब वे पूरे बढ़ जाते हैं और उनमें जाली पड़ने लगती है, तब उन्हे 'अंबिया' कहते हैं।
अंबिया पक कर आम जिसे रसाल कहते हैं।
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चंदन सा बिखरा हवाओं में
मौरों की खुशबू है फिजाओं में
ये किसीके आने का संगीत है
या मौसम का रुनझुन गीत है।
मन की आस फिर जग गई
नभ पर अनुगूँज बिखर गई
होले से मदमाता शैशव आया
आम द्रुम सरसई से सरस आया ।
देखो टिकोरे से भर झूमी डालियां
कहने लगे सब खूब आयेगी अंबिया
रसाल की गांव मेंं होगी भरमार
इस बार मेले लगेंगे होगी बहार।
लौट आवो एक बार फिर घर द्वारे
सारा परिवार खड़ा है आंखें पसारे
चलो माना शहर में खुश हो तुम
पर बिन तुम्हारे यहाँ खुशियां हैं गुम।
कुसुम कोठारी।
वाह...,सशक्त भूमिका और बेहतरीन रचना ।
ReplyDeleteढेर सा आभार मीना जी सुकून देती आपकी प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह।
खूबसूरत रचना..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार।
Deleteसस्नेह
चंदन सा बिखरा हवाओं में
ReplyDeleteमौरों की खुशबू है फिजाओं में
ये किसीके आने का संगीत है
या मौसम का रुनझुन गीत है।
बेहतरीन रचना सखी 👌👌
आपकी मन भावन प्रतिक्रिया का सस्नेह आभार सखी ।
Deleteबहुत ही सुंदर रचना,कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह प्रिय ज्योति बहन ।
Deleteसस्नेह ।
बहुत सुंदर प्राकृतिक चित्रण
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका।
Deleteआपकी सराहना करती प्रतिक्रिया उत्साह वर्धक है भाई अमित जी सस्नेह आभार ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर दी
ReplyDeleteमंजरियाँ (मौर) सरसई (टिकोरे)से अंबिया और फिर आम (रसाल)....साथ में खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteवाह!!!
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२२ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
ये किसीके आने का संगीत है
ReplyDeleteया मौसम का रुनझुन गीत है।
बेहतरीन रचना