Wednesday, 27 February 2019

कैसा अभिशाप

कैसा अभिशाप

कैसा अभिशाप था
अहिल्या भरभरा के गिर पड़ी
सुन वचन कठोर ऋषि के
दसो दिशाओं का हाहाकार
मन में बसा
सागर की उत्तंग लहरों सा ज्वार
उठ उठ फिर विलीन होता गया
अश्रु चुकने को है पर 
संतप्त हृदय का कोई आलम्बन नही
वाह री वेदना बस अब जब
चोटी पर जा बैठी हो तो
ढलान की तरफ अधोमुक्त होना ही होगा
विश्रांति अब बस विश्रांति
यही  वेदना का अंतिम पड़ाव
पाहन बन अडोल अविचल
बाट जोहती रही
श्री राम की पद धुलि पाने को
न जाने कितने लम्बे काल तक
अपना अभिशाप लिये।

    कुसुम कोठारी ।

वीर क्रांतिकारी चंद्र शेखर आजाद

वीर क्रांतिकारी शहीदे आजम चंद्र शेखर आजाद के बलिदान दिवस पर।

थका न कभी वो अहर्निश चला
नही कोई पांव में थी श्रृंखला
ले शाश्वत आजादी  का सपना
सिर्फ देश हित ही था अपना
सीना ताना गोलियों के सामने
आजाद था आजाद रहा सदा
ले मां की आजादी का संकल्प साथ
दे दी आहुति निज प्राण निज हाथ।।

               कुसुम कोठारी।

Monday, 25 February 2019

शाश्वत संगीत

माटी के बिछौने सा और कौन मन मीत होगा
जहाँ से आये वहां ही जीवन शाश्वत संगीत होगा।
                  कुसुम कोठारी ।

Sunday, 24 February 2019

फाल्गुन का मकरंद

फाल्गुन का मकरंद

सुगंधित बयार
तन मन समाई
उड़ा ले चली
मंकरद मनभाई ।

भ्रमित  हो अलि
फिरे भ्रम में
किस सुमन
किस किसलय में।

चहुँ  और  मादक
मौसम  रंगीन
रंग बिरंगो आयो
मतवारो फागुन।।
 
कुसुम कोठारी।

Friday, 22 February 2019

करार

करार

गिरे हैं पहाड़ो से संभल जायेंगे तो करार आयेगा।
खाके चोट पत्थरों की संवर जायेंगे तो करार आयेगा।

नीले पहाडो से उतर ये जल धारे गिरते हैं चट्टानों पर
झरने बन बह निकले कल-कल तो करार आयेगा।

कहीं घोर शोर ऊंचे नीचे, फूहार मोती सी नशीली
विकल बेचैन ,मिलेगें सागर से तो करार आयेगा।

जिससे मिलने की लिये गुजारिश चले अलबेले
पास मीत के पहुंच दामन में समा जायेंगे तो करार आयेगा।

सफर पर निकले दीवाने मस्ताने गुजर ही जायेंगे
लगाया जो दाव वो जीत जायेंगे तो करार आयेगा।

इठलाके चले बन नदी फिर बने आब ए- दरिया
जा मिलेगें ये जल धारे समंदर से तो करार आयेगा।

                 कुसुम कोठरी।

धीर पड़त नही पल छिन

पादप पल्लव का आसन
कुसुमित सुमनों से सजाए

आस लगाए बैठी राधिका
मन का उपवन महकाए

अब तक ना आए बनमाली
मन का मयूर अकुलाए

धीर पड़त नही पल छिन
मन का कमल कुम्हलाए

कैसे कोई संदेशो भेजूं
मन पाखी बन उड जाए

ललित कलियाँ सजा दूं द्वारे
श्याम सुंदर जब पुर आए ।

            कुसुम कोठरी।

Wednesday, 20 February 2019

असर अब गहरा होगा।


असर अब गहरा होगा

फक़त खारा पन न देख, अज़ाबे असीर होगा
मुसलसल  बह गया तो फिर बस समंदर होगा ।

दिन ढलते ही आंचल आसमां का सुर्खरू होगा
रात का सागर लहराया न जाने कब सवेरा होगा।

तारों ने बिसात उठा ली असर अब  गहरा होगा
चांद सो गया जाके, अंधेरों का अब पहरा होगा ।

छुपा है पर्दो में कितने,जाने क्या राज़ गहरा होगा
अब्र के छटते ही बेनकाब  चांद का चेहरा होगा ।

साये दिखने लगे  चिनारों पे, जाने अब क्या होगा
मुल्कों के तनाव से चनाब का पानी ठहरा होगा ।
                 
                    कुसुम कोठारी।

Sunday, 17 February 2019

बस चुप हो देखिये

अब सिर्फ देखिये, बस चुप हो देखिये
पांव की ठोकर में,ज़मी है गोल कितनी देखिये।

क्या सच क्या झूठ है, क्या हक क्या लूट है
मौन हो सब देखिये राज यूं ना खोलिये
क्या जा रहा आपका बेगानी पीर क्यों झेलिये
कोई पूछ ले अगर तो भी कुछ ना बोलिये।

अब सिर्फ देखिये बस चुप हो देखिये..

कुछ खास फर्क पड़ना नही यहां किसीको
गैरत अपनी को दर किनार कर बैठिये
कुछ पल में सामान्य होता यहां सभी को
दिख जाय कुछ तो मुख अपना  मोडिये।

अब सिर्फ देखिये, बस चुप हो देखिये..

ढोल में है पोल कितनी बजा बजा के देखिये
मार कर ठोकर या फिर ढोल को ही तोडिये
लम्बी तान सोइये कान पर जूं ना तोलिये
खुद को ठोकर लगे तो आंख मसल कर बोलिये।

अब सिर्फ क्यों देखिये, लठ्ठ बजा के बोलिये।

                 कुसुम कोठारी

Saturday, 16 February 2019

शहीदों को श्रद्धांजलि

नरभक्षी भेड़ियों को खून की आदत लगी
जब दरिंदगी जगी,
आये और चीड़ फाड़ कर चल दिये,
 नृशंस  हत्यारे गफलत में वार करते रहे
 उन पर,
जो करोड़ों  को बचाने
 तलवार की धार पर बैठे हैं,
जो बंदूक  की नाल पर बैठे,
जो हथेली  पर जान लिये बैठे,
और हम चार दिन का शोक,
एक दिन के आंसू, दो दिन की  सांत्वना,
 चार बार लोगो में बैठ हुवे कृत की भर्त्सना
दस बार सोशल  मीडिया  पर
उन के फेवर में लाईक करते रहते हैं,
 और वो भुखे भेड़िये तब तक
वापस एक और नरसंहार  कर जाते हैं
 हम फिर कोसने बैठ जाते हैं
बस रूप रेखा बनाने में लगे रहते हैं
अब भी आगे क्या करना
की कोई दृढ  शुरुआत  नही
जाने क्या होगा नही मालुम ,
पर इन विसंगतियों  से
कोई हल नही निकल सकता।

वीर शहीदों को फिर कुछ अश्रु अर्पित  करती हूं
 पर खुद को लज्जित  महसूस  करती हूं।
 शहीदों  को कोटिशः नमन।

         कुसुम कोठारी।

Thursday, 14 February 2019

कब तक....? धिक्कार दिवस

हुतात्माओं को अश्रु पुरित श्रृद्धानजली 🙏
कल के धिक्कार दिवस पर प्रश्न?

कब तक गीदड़ों के हाथों
नाहर यूं प्राण गंवाएंगे
बंधे हाथ हैं कानून के
और हर्जाना वीर चुकाएंगे
कब तक लाचारी का
ये अंधा धंधा पनपेगा
कबतक वीरों की बेवाएं
तिरगों को धुन रोएंगी
सिन्दूरी मांगों को अपनी
रक्त लाल से धोएंगी।।

   कुसुम कोठारी।

Wednesday, 13 February 2019

इश्क क्या है

kotharikusum.blogspot.com

इश्क क्या है

इश्क़ वो शै है जिसका
कोई आशियाना नही
वो आग का दरिया
जिसका किनारा नही
इश्क़ में फ़ना होने वाले
यादों की कहानी हो गये
इसकी बज़्म में
ज़न्नत दिखती है
पर लुट जाती है
इसकी ख़शबू भी बस
रूहानी होती है
सच इश्क़ ने डाली
नज़र जिस पर,
ला-इलाज़ उसकी
बिमारी होती है ।

कुसुम कोठारी ।

Monday, 11 February 2019

किशोरी का मासूम स्वप्न

किशोरी का मासूम स्वप्न

एक सूरज सा वर
ढूंढ दे री मैया मोरी
मां दिखा देना चुनर की
ओट से मूझे एक बारी।

मां रंगवा देना एक
नीले अंबर सी चुनर
सुन ना मां ! जड़वा देना
झिलमिलाते  उसमें तारे।

मां चांद मत देना चाहे
चांदनी का गोटा लगा देना
मां छोटा सा घूंघट डाल
मुझे भी साजन घर जाना।

मां खनकती सतरंगी
पहना देना हाथों में चूड़ियाँ
याद आयेगी तेरी जब मां
मैं खनका दूंगी मेरी चूडियाँ ।

मां एक रुनझुन पायल
पहना देना मेरे पांवों में
बजेगी जब पायल मेरी
झंकार होगी तेरे आंगन में।

मां दूर से ही मेरा होना
अनुभव कर लेना तुम
मुझे अपने आंचल में
भर लेना मां दो हाथों से तुम।

    कुसुम कोठारी।

Sunday, 10 February 2019

वागीश्वरी स्तुति

बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

वागीश्वरी स्तुति

वंदन करूं तुझ पाद कमल मैं
मां  मेधा  से भर  दे  झोली
अगनित शीश झुके तेरे आगे
मेरा नमन भी स्वीकृत करले
धवल वसन मनोहरी झांकी
हाथ में वीणा वरद हस्त
तक तक आंख निहाल
भजन न जानु दीप न चासूं
फिर भी मांगू विद्या वरदान
मां  दे दे विनय वरदान
जासे मैं मूरखा भी तोरे नाम
लिख डारूं भजन सुजान
मां मेधा ......।।

      कुसुम कोठारी ।

Friday, 8 February 2019

नजर संभलते संभलते

नजर संभलते संभलते

लो फिसल ही गई नजर संभलते संभलते
कह गया आफताभ फिर ढलते ढलते ।

चार कदम ना चल सके हयात ए सफर में
मिले थे कभी जो सरे राह चलते चलते।

शब ए आवारगी अब बंद भी कर दो
चांद भी ढल गया अब पिघलते पिघलते ।

फिक्र करता है किसी की कब जमाना बेदर्दी
बहल ही जायेगा दिल बहलते बहलते।

                कुसुम कोठारी ।

Thursday, 7 February 2019

आयो बहार बसंत

आयो बहार बसंत

आवो सखी आई बहार बसंत
चहूं और नव पल्लव फूले
कलियां चटकी
मौसम में मधुमास सखी री
तन बसंती मन बसंती 
और बसंती बयार सखी री
धानी चुनर ओढ के
धरा का पुलकित गात 
नई दुल्हन को जैसे
पिया मिलन की आस सखी री
पादप अंग फूले मकरंद 
मुकुंद भरमाऐ सखी री
स्वागत करो नव बसंत को
गावो मंगल गान सखी री
आयो सखी आई बहार बसंत ।

          कुसुम कोठारी ।

देवापगा गंगा का दर्द

देवापगा गंगा  का दर्द

कहने को विमला हूं
मैं सरीता ,निर्मला
नारी का प्रति रूप
कितनी वेदना
हृदय तल में झांक कर देखो मेरे
कितने है घाव गहरे ,
दिन रात छलते रहते
मानव तेरे स्वार्थ मुझे
अब नाम ही बदल दो मेरे
किया मुझे विमला से समला
सरीता से सूख ,रह गई रीता
निर्मला अब मैली हो गई
हे मानव तेरे मैल
समेटते समेटते ।

  कुसुम कोठारी।

Tuesday, 5 February 2019

एकलव्य की मनोव्यथा

एकलव्य की मनो व्यथा >

तुम मेर द्रोणाचार्य थे
मैं तुम्हारा एकलव्य ,
मैं तो मौन गुप्त साधना में था ,
तुम्हें कुछ पता भी न था
फिर इतनी बङी दक्षिणा
क्यों मांग बैठे ,
सिर्फ अर्जुन का प्यार और
 अपने वचन की चिंता थी ?
या अभिमान था तुम्हारा,
सोचा भी नही कि सर्वस्व
 दे के जी भी पाऊंगा ?
इससे अच्छा प्राण
मांगे होते सहर्ष दे देता
और जीवित भी रहता
फिर मांगो गुरुदक्षिणा
मैं दूंगा पर ,सोच लेना
अपनी मर्यादा फिर न
भुलाना वर्ना धरा डोल जायेगी ,
मैं फिर भेट करूंगा अंगूठाअपना,
और कह दूंगा सारे जग को
तुम मेरे आचार्य नही
सिर्फ द्रोण हो सिर्फ एक दर्प,
 पर मैं आज भी हूं
तुम्हारा एकलव्य ।

             कुसुम कोठारी ।

Saturday, 2 February 2019

हरि आओ ना

आया बसंत मनभावन
हरि आओ ना।

राधा हारी कर पुकार
हिय दहलीज पर बैठे हैं,
निर्मोही नंद कुमार
कालिनी कूल खरी गाये
हरि आओ ना।

फूल फूल डोलत तितलियां
कोयल गाये मधु रागनियां
मयूर पंखी भई उतावरी
सजना चाहे भाल तुम्हारी
हरि आओ ना।

सतरंगी मौसम सुरभित
पात पात बसंत रंग छाय
गोप गोपियां सुध बिसराय
सुनादो मुरली मधुर धुन आय
हरि आओ ना।

सृष्टि सजी कर श्रृंगार
कदंब डार पतंगम डोराय
धरणी भई मोहनी मन भाय
कुमुदिनी सेज सजाय।
हरि आओ ना।

    कुसुम कोठारी।

सतरंगी यादें

सतरंगी यादें।

ख्वाबों के दयार पर एक झुरमुट है यादों का
एक मासूम परिंदा फुदकता यहाँ वहाँ यादों का ।

सतरंगी धागों का रेशमी इंद्रधनुषी शामियाना
जिसके तले मस्ती में झुमता एक भोला बचपन ।

सपने थे सुहाने उस परी लोक की सैर के
वो जादुई रंगीन परियां जो डोलती इधर उधर।

मन उडता था आसमानों के पार कहीं दूर
एक झूठा सच, धरती आसमान है मिलते दूर ।

संसार छोटा सा लगता ख्याली घोडे का था सफर
एक रात के बादशाह बनते रहे संवर संवर ।

दादी की कहानियों में नानी थी चांद के अंदर
सच की नानी का चरखा ढूढते नाना के घर ।

वो झूठ भी था सब तो कितना सच्चा था बचपन
ख्वाबों के दयार पर एक मासूम सा बचपन।

एक इंद्रधनुषी स्वप्निल रंगीला  बचपन।

              कुसुम कोठारी।