Friday, 22 February 2019

करार

करार

गिरे हैं पहाड़ो से संभल जायेंगे तो करार आयेगा।
खाके चोट पत्थरों की संवर जायेंगे तो करार आयेगा।

नीले पहाडो से उतर ये जल धारे गिरते हैं चट्टानों पर
झरने बन बह निकले कल-कल तो करार आयेगा।

कहीं घोर शोर ऊंचे नीचे, फूहार मोती सी नशीली
विकल बेचैन ,मिलेगें सागर से तो करार आयेगा।

जिससे मिलने की लिये गुजारिश चले अलबेले
पास मीत के पहुंच दामन में समा जायेंगे तो करार आयेगा।

सफर पर निकले दीवाने मस्ताने गुजर ही जायेंगे
लगाया जो दाव वो जीत जायेंगे तो करार आयेगा।

इठलाके चले बन नदी फिर बने आब ए- दरिया
जा मिलेगें ये जल धारे समंदर से तो करार आयेगा।

                 कुसुम कोठरी।

8 comments:

  1. जिससे मिलने की लिये गुजारिश चले अलबेले
    पास मीत के पहुंच दामन में समा जायेंगे तो करार आयेगा। बेहतरीन प्रस्तुति सखी👌👌👌🌹

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  2. इठलाके चले बन नदी फिर बने आब ए- दरिया
    जा मिलेगें ये जल धारे समंदर से तो करार आयेगा।
    बहुत खूब..... लाजबाब.... कुसुम जी

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  3. वाह ! बहुत ख़ूब सखी
    सादर

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  4. बेहतरीन...., लाजवाब ।

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  5. बहुत ही सुन्दर रचना

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  6. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति,कुसुम दी।

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  7. इठलाके चले बन नदी फिर बने आब ए- दरिया
    जा मिलेगें ये जल धारे समंदर से तो करार आयेगा।
    बहु खूब कुसुम बहन !!!!! ये करार बहुत ही मनभावन है | आभार और प्यार |

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