Saturday, 2 February 2019

सतरंगी यादें

सतरंगी यादें।

ख्वाबों के दयार पर एक झुरमुट है यादों का
एक मासूम परिंदा फुदकता यहाँ वहाँ यादों का ।

सतरंगी धागों का रेशमी इंद्रधनुषी शामियाना
जिसके तले मस्ती में झुमता एक भोला बचपन ।

सपने थे सुहाने उस परी लोक की सैर के
वो जादुई रंगीन परियां जो डोलती इधर उधर।

मन उडता था आसमानों के पार कहीं दूर
एक झूठा सच, धरती आसमान है मिलते दूर ।

संसार छोटा सा लगता ख्याली घोडे का था सफर
एक रात के बादशाह बनते रहे संवर संवर ।

दादी की कहानियों में नानी थी चांद के अंदर
सच की नानी का चरखा ढूढते नाना के घर ।

वो झूठ भी था सब तो कितना सच्चा था बचपन
ख्वाबों के दयार पर एक मासूम सा बचपन।

एक इंद्रधनुषी स्वप्निल रंगीला  बचपन।

              कुसुम कोठारी।

20 comments:

  1. बेहतरीन यादें बचपन की बहुत सुंदर रचना सखी

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    1. सस्नेह आभार सखी आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।

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    1. जी सादर आभार उत्साह वर्धन के लिये ।

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  3. बहुत सुन्दर सृजन सखी
    सादर

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    1. बहुत सा आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा मनभावन।

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 02/02/2019 की बुलेटिन, " डिप्रेशन में कौन !?“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. जी हृदय तल से आभार मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने हेतू ।

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  5. ख्वाबों के दयार पर एक झुरमुट है यादों का
    एक मासूम परिंदा फुदकता यहाँ वहाँ यादों का ।
    वाह...., अत्यंत सुन्दर !!

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    1. बहुत सा स्नेह आभार मीना जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
      सस्नेह ।

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ४ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. सस्नेह आभार श्वेता ।

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  7. ख्वाबों के दयार पर एक झुरमुट है यादों का
    एक मासूम परिंदा फुदकता यहाँ वहाँ यादों का ।
    बहुत ही प्यारी रचना प्रिय कुसुम बहन बचपन की यादों से बेहतरीन जीवन में कुछ नहीं होता | दादी की कहानी में चाँद पर चरखा कातने की कल्पना कितनी रोमांचक और मनभावन थी | एक तीस जगती है उन यादों में झाँक कर | पहली तो पंक्तियाँ तो बालसुलभ सादगी की परिचायक हैं | सस्नेह आभार बहना |

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    1. प्रिय रेनू बहन ढेर सा स्नेह ।
      आपने इतनी सुन्दरता से रचना को प्रवाह दिया है,रचना मुखरित हुई सचमुच बचपन में सब कुछ तिलिस्म जैसा ही था सबकुछ कितना न्यारा कितना प्यारा। आपकी मनभावन प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली बहन स्नेह बनाये रखें । g+ बंद हो रहा है फेसबुक पर ज्वॉइन करें तो सदा सानिध्य बना रहेगा ।
      सस्नेह।

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  8. दादी की कहानियों में नानी थी चांद के अंदर
    सच की नानी का चरखा ढूढते नाना के घर

    जी मुझे भी दादी की याद आ गयी,बड़ा ही निष्ठुर है यह जीवनचक्र , बिल्कुल चक्रव्यूह की तरह षड़यंत्र ही षड़यंत्र।
    प्रणाम।

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    1. सस्नेह आभार शशि भाई समय की निष्ठुरता तो शाश्वत है कितना कुछ छिन लेती है न जाने।

      फेसबुक पर ज्वॉइन करें g+बंद हो रहा है।

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  9. बहुत ही सुंदर रचना आदरणीया

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    1. बहुत बहुत आभार रविंद्र जी आपका।

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  10. वो झूठ भी था सब तो कितना सच्चा था बचपन
    ख्वाबों के दयार पर एक मासूम सा बचपन।
    बचपन की यादें भुलाये नहीं भूलती जब याद आती हैतरोताजा कर देती हैं निश्छल बचपन की यादो पर बही ही खूबसूरत सृजन....
    वाह!!!

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  11. कितना प्यारा लिखा आपने सुधा जी रचना के समानांतर।
    सस्नेह आभार आपका ।

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