Wednesday, 27 February 2019

कैसा अभिशाप

कैसा अभिशाप

कैसा अभिशाप था
अहिल्या भरभरा के गिर पड़ी
सुन वचन कठोर ऋषि के
दसो दिशाओं का हाहाकार
मन में बसा
सागर की उत्तंग लहरों सा ज्वार
उठ उठ फिर विलीन होता गया
अश्रु चुकने को है पर 
संतप्त हृदय का कोई आलम्बन नही
वाह री वेदना बस अब जब
चोटी पर जा बैठी हो तो
ढलान की तरफ अधोमुक्त होना ही होगा
विश्रांति अब बस विश्रांति
यही  वेदना का अंतिम पड़ाव
पाहन बन अडोल अविचल
बाट जोहती रही
श्री राम की पद धुलि पाने को
न जाने कितने लम्बे काल तक
अपना अभिशाप लिये।

    कुसुम कोठारी ।

20 comments:

  1. पाहन बन अडोल अविचल
    बाट जोहती रही
    श्री राम की पद धुलि पाने को
    न जाने कितने लम्बे काल तक
    अपना अभिशाप लिये।
    बहुत ही भावपूर्ण रचना, प्रणाम।

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    1. बहुत बहुत आभार आपकी सुंदर टीप्पणी के लिये
      सस्नेह।

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  2. बाट जोहती रही
    श्री राम की पद धुलि पाने को
    न जाने कितने लम्बे काल तक
    अपना अभिशाप लिये।

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    1. सादर आभार आदरणीय आपकी प्रोत्साहित करती सार्थक प्रतिक्रिया के लिये।
      सादर।

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  3. सागर की उत्तंग लहरों सा ज्वार
    उठ उठ फिर विलीन होता गया
    अश्रु चुकने को है पर... बहुत ख़ूब सखी
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय सखी।
      सस्नेह ।

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  4. बहुत ही भावपूर्ण रचना कुसुम जी ।

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  5. ढेर सा आभार शुभा जी मन भाया आपका आना।
    यूं ही उत्साह बढाती रहें।
    सस्नेह।

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  6. संवेदना से परिपूर्ण शानदार कविता।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    iwillrocknow.com

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  7. ब्लॉग पर स्वागत ।
    जी बहुत बहुत आभार सुंदर टिप्पणी के लिये ।

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  8. प्रिय कुसुम बहन अहिल्या ,यशोधरा और देवी सीता तीनों नारियां भारतीय संस्कृति की पूज्य नारियां हैं | इन तीनों ने ही अपनी - अपनी जगह पति के प्रति अगाध समर्पण का परिचय दिया पर पति लोगों ने उनके प्रति अन्याय और अनीति का प्रदर्शन किया | अहिल्या की कथा मार्मिकता का चरम छूती है | त्रिकालदर्शी पति अपनी पत्नी के अनजाने में हुए अन्याय का बोध ना कर पाए और अपने पुरुषत्व के अंहकार में एक निरीह नारी को श्राप दे पाषाणी होने पर विवश किया | कितना सहा होगा अहिल्या ने और की होगी पाषाण देह के साथ अनवरत प्रतीक्षा अपने मुक्तिदाता की ! इस रचना में उस अभिशाप की पीड़ा को हुबहू शब्द दे दिए आपने

    और उस करुण प्रसंग को करुणतम बना दिया -----

    पाहन बन अडोल अविचल
    बाट जोहती रही
    श्री राम की पद धुलि पाने को
    न जाने कितने लम्बे काल तक
    अपना अभिशाप लिये।



    फिर भी महांमना अहिल्या की सहृदयता देखिये गोस्वामी जी ने उस उद्दात भाव को कितने सुंदर और भावपूर्ण शब्दों में लिखा --जो उन्होंने अपने



    मुनि श्राप जो दीन्हा अति भल कीन्हा परम अनुग्रह मैं माना। देखेउँ भरि लोचन हरि भव मोचन इहइ लाभ संकर जाना॥



    |भावपूर्ण , हृदयस्पर्शी रचना के लिए आपको सस्नेह आभार सखी |

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  9. अहिल्या को समर्पित आपकी यह रचना अत्यन्त सुन्दर है । रचना की हर पंक्ति कपने आपमें सम्पूर्ण और मर्मस्पर्शी है ।

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  10. पाहन बन अडोल अविचल
    बाट जोहती रही
    श्री राम की पद धुलि पाने को
    न जाने कितने लम्बे काल तक
    अपना अभिशाप लिये। बेहद हृदयस्पर्शी रचना

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  11. बहुत सुंदर रचना। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    iwillrocknow.com

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  12. वाह री वेदना बस अब जब
    चोटी पर जा बैठी हो तो
    ढलान की तरफ अधोमुक्त होना ही होगा
    विश्रांति अब बस विश्रांति
    चोटी तक पहुंचकर ढलान ही शेष बचता है माता अहिल्या की वेदना की चरमस्थिति का बहुत ही हृदयस्पर्शी शब्दचित्र अंकित किया है आपने...
    लाजवाब रचना के लिए बहुत बहुत बधाई कुसुम जी..सस्नेह शुभकामनाएं...।

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  13. अहिल्या को समर्पित आप की ये रचना लाजबाब हैं ,सादर स्नेह कुसुम जी

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  14. अहिल्या को समर्पित

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  15. वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें
    नई पोस्ट - लिखता हूँ एक नज्म तुम्हारे लिए
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  16. जी नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना गुरुवार २५ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  17. प्रिय कुसुम दी की इस रचना की तारीफ़ की जाए वही कम नारी का दर्द समेटे सुन्दर रचना

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