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Thursday 19 July 2018

सावन का हिण्डोला


सावन का हिण्डोला

छोटी छोटी बूंद बरसे बदरिया
बाबुल मोहे हिण्डन की मन आयी
कदम्ब डारी डारो हिण्डोला
लम्बी डोर लकड़िन का पुठ्ठा
 भारी सजा लाडन का हिण्डोला
आई सखियाँ ,भाभी ,बहना,
वीराजी हिण्डावे दई दई झोटा
दिखन लागे रंग महल कंगूरा
आवो जी रसिया मोहे लई जावो
अबके अपने हाथो झुलावो 
ढ़ोला जी को लश्कर आयो
गोरी सजो श्रृंगार, करुं विदाई
आय पहुंती गढ़ के माही
गढ़ पोळयां में सज्यो हिण्डोलो
रेशम डोर गदरो मखमलियो
साजन हाथ से झुलन लागी
बंद अखियां सुख सपना जागी।

            कुसुम कोठारी।

21 comments:

  1. बहुत ही खूबसूरत हिंडोला सजाया कुसुम जी
    आवो जी रसिया मोहे लई जावो
    अबके अपने हाथो झुलावो

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    1. वाह जवाब नही मित्र जी आपकी सराहना मन मोह गई।
      ढेर सा आभार।

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  2. आप तो शब्दों की जादूगर है
    शब्दों को ख़ूबसूरती से सजाकर क्या खूब लिखा आप ने। लाजवाब !!!

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    1. बहुत बहुत आभार सखी आपका सदा सकारात्मक समर्थन मुझे प्रोत्साहित करता है ।

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  3. आदरणिया कुसुम बिटिया गढ़ प्रोल्या नही गढ "पोळ्या" लिखो ये "ल" दंतवी ल है और "ळ" ये ळ तालवी ळ है तो राजस्थानी मे मुख्य द्वार को "पोल" लिखेंगे तो गलत होगा इसका अर्थ होगा खम्भा या खाली जगह जैसे पोल मे ढोल ।। तो राजस्थानी मे गढ़ के मुख्य द्वार को पोल ना लिख कर पोळ लिखे ।। बहु वचन के लिये पोळ्या लिखे

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    1. पथ प्रदर्शन के लिये सादर आभार काकासा सदा अनुग्रहित रहूंगी और आगे ध्यान रखूंगी । वैसे हमारे क्षेत्र मे प्रोल बोलते तो हैं पर मारवाड़ी लिखने का काम नही पड़ता तो मै कोई दावा नही कर सकती, आगे भी राह दिखाते रहें।
      नमस्कार।

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  4. बहुत सुंदर मनभावन

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    1. जी सस्नेह आभार मित्र जी आपकी उपस्थिति बहुत अच्छी लगी।

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  5. आँचलिक भाषा शब्दों के संसार को कितना विस्तृत कर देती है ... अलग सा आनंद देती है ये रचना ...

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    1. जी सादर आभार आपकी प्रोत्साहित करती टिप्पणी का सही कहा आपने,जो रस आंचलिक भाषाओं मे है वो एक अनुभूति है जो वर्णनननही बस महसूस कर सकते है । पुनः आभार।

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  6. दिखन लागे रंग महल कंगूरा
    आवो जी रसिया मोहे लई जावो
    अबके अपने हाथो झुलावो
    ढोला जी को लश्कर लेवन आयो
    गोरी सजो श्रृंगार, करुं विदाई!!!!!!!!!
    क्या बात है बहना !!!!!!!!सावन की बूँदें , बाबुल का स्नेह हिंडोला और उस पर रसिया बालम !!!!!!!!प्रिय कुसुम बहन शादी के बाईस साल में मैंने एक भी सावन नहीं देखा बाबुल की ड्योढ़ी का पर --- लेकिन बीरा जी , बहनों और सखियों के झोटे बड़े याद आते हैं और आँखें नम कर जाते है | लोक रंग की सुंदर रचना | आपको बहुत शुभकामनायें बहना |

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    1. रेणू जी आपकी प्रतिक्रिया सच आंखे नम कर गई और आपकी अतुल्य सराहना के लिये सभी आभार छोटे हैं बस स्नेह और स्नेह, आपकी प्रतिपंक्तियां सदा बहुत सुकून देती है और उत्साह बढाती है
      आपने सही लिखा जाकर नही भोगा वापस वो सुख पर यादें चलचित्र की तरह आंखों के सामने से गुजर ती है। ढेर सा स्नेह।

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २३ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. बहुत बहुत आभार।
      मेरा आना तो निश्चित है बस समय की पाबंदी नही रह पाती ।
      सस्नेह

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  8. वाह ! अपनी मातृभाषा की इस रचना को पाकर तो मन खिल गया....

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    1. This comment has been removed by the author.

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    2. ढेर सा आभार मीना बहन आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिये मूल्यवान है।
      म्हारे प्यारो लागे जी म्हारे राजस्थान ।

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  9. बहुत सुन्दर ! ऐसे झूला-गीत अब कहाँ सुनने को मिलते हैं !

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    1. जी सादर आभार आपका मनभावन सराहना मिली।

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  10. वाह ! बहुत ही सुन्दर सृजन प्रिय कुसुम दी जी
    सादर

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    1. बहुत सा स्नेह आभार रचना सार्थक हुई ।

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