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Tuesday 24 July 2018

चांद का सम्मोहन

.          चांद का सम्मोहन 
    प्राचीर से उतर चंचल उर्मियां
आंगन मे अठखेलियाँ कर रही थी
    और मै बैठी कृत्रिम प्रकाश मे
    चाँद पर कविता लिख रही थी
      मन मे प्रतिकार उठ रहा था
        उठ के वातायन खोल दूं
       शायद मन कुछ प्रशांत हो
                  आहा!!
      चांद अपनी सुषमा के साथ
        मेरी ही खिडकी पर बैठा
      थाप दे रहा था धीमी मद्धरिम
  विस्मित सी जाने किस सम्मोहन मे
      बंधी मैं छत तक आ गई
     इतनी उजली कोरी वसना
      प्रकृति, स्तभित से नयन
     चांदनी छत से आंगन तक
  पुलक पुलक क्रीड़ा कर रही थी
    गमलों के अलसाऐ ये फूलों मे
       नई ज्योत्सना भर रही थी
     मन लुभाता समीर का माधुर्य
       एक धीमी स्वर लहरी लिये
        पादप पल्लवों का स्पंदन
          दूर धोरी गैया का नन्हा
        चंद्र रश्मियों से होड़ करता
             कौन ज्यादा कोमल
           कौन स्फटिक सा धोरा
       चांदनी लजाई बोली मै हारी
       बोली मन करता तुम से कुछ
              उजाला चुरा लूं!!
         निशा धीरे धीरे  ढलने लगी
        चांदनी चांद मे सिमटने लगी
       चांद ने अपना तिलिस्म उठाया
               और प्रस्थान किया
        प्राची से एक अद्भुत रूपसी
          सुर बाला सुनहरी आंचल
         फहराती मंदाकिनी मे उतरी
          आज चांद और चांदनी से
              साक्षात्कार हुवा मेरा
                मेरे मनोभावों का
         प्रादुर्भाव हुवा, बिन कल्पना।
                  कुसुम कोठारी।

28 comments:

  1. बेहतरीन रचना कुसुम जी 👌👌👌👌
    मन लुभाता समीर का माधुर्य
    एक धीमी स्वर लहरी लिये
    पादप पल्लवों का स्पंदन

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  2. अशेष आभार मित्र जी आपकी त्वरित प्रतिक्रिया से मन आह्लादित हो जाता है।

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  3. आप की रचना वाकई मन को छू लेने वाली है। सुन्दर अभिव्यक्ति।

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    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी सराहना के लिये आभार नही बस स्नेह और स्नेह

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  4. अप्रतिम मीता अप्रतिम .....शब्दों और भावों का समवेद स्वर मन को आल्हादित कर गया द्रश्य मानो सजीव हो उठा ...मीता

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    1. आभार शब्द छोटा होगा अशेष स्नेह इस हृदय से दी गई मनभावन प्रतिक्रिया के लिये।
      सस्नेह मीता

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  5. और मै बैठी कृत्रिम प्रकाश मे
    चाँद पर कविता लिख रही थी...

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  6. एक धीमी स्वर लहरी लिये
    पादप पल्लवों का स्पंदन
    दूर धोरी गैया का नन्हा
    चंद्र रश्मियों से होड़ करता
    कौन ज्यादा कोमल
    कौन स्फटिक सा धोरा
    चांदनी लजाई बोली मै हारी
    बोली मन करता तुम से कुछ
    उजाला चुरा लूं!!...
    आज चांद और चांदनी से
    साक्षात्कार हुवा मेरा
    मेरे मनोभावों का
    प्रादुर्भाव हुवा, बिन कल्पना।
    बेहतरीन सृजन... शब्द दर शब्द काव्य की मिठास बढ़ती ही जा रही है... वाह

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    1. बहुत बहुत आभार अमित जी आपकी प्रतिक्रिया उत्साह वर्धन करती सी ।

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. सस्नेह आभार ।मै उपस्थित रहूंगी।

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  8. हैंड से साक्षात्कार रोज़ हर किसी का होता है और सबका अनुभव अलग अलग होता है ...
    आपके अनुभव की ताज़गी महक रही है ... इन मासूम राशियों के खेल को बख़ूबी लिखा है ...

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  9. सादर आभार प्रतिक्रिया से प्रतीकों को नये आयाम मिले.…
    मासूम राशियां बहुत खूब!!

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  10. विस्मयकारी लेखन, अदभुद, अति सुंदर।

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    1. जी सराहना के लिये सादर आभार पुरुषोत्तम जी ।

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  11. बहुत सुन्दर कुसुम कोठारी जी. विश्वमोहन जी की कविता के बाद अब आपकी कविता ने भी पन्त जी की कविता - 'नौका विहार' -'शांत-स्निग्ध ज्योत्स्ना उज्जवल, अपलक अनंत-नीरव भूतल, सैकत शैया पर दुग्ध-धवल, तन्वंगी गंगा, ग्रीष्म-विरल' की याद दिला दी.

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    1. सादर आभार आदरणीय जी आपकी प्रतिक्रिया से मै स्तब्ध हूं ये मेरे लिये अविस्मरणीय रहेगा, पंत जी मेरे प्रेरणा स्रोत है और अगर क्षणांश भी कही मेरी रचना उनकी स्मृति करवाती है तो मेरे लिये उससे बड़ा कोई पुरस्कार नही मै अभिभूत हूं और पुनः आभार व्यक्त करती हूं सदा अनुग्रह बनाये रखें।
      और विश्व मोहन जी के बारे मे कुछ लिख सकूं ये मेरी कलम मे ताव नही वो एक उच्च कोटि के रचनाकार हैं और हर विधा पर उनका पूर्ण अधिकार है वे शब्दों के जादूगर हैं,अद्भुत शैली और विस्मयकारी अवगूंठन उनकी काव्य प्रतिभा अतुल्य है ।

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  12. वाहः लाजवाब रचना

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    1. जी सादर आभार उत्साह बढाती प्रतिक्रिया आपकी।

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  13. इतनी सुंदर काव्य, भाव और शब्दों का ताना बान कि बार बार पढने को विवश..सुंदर, बढिया, अच्छा जैसे शब्दों का तो कोई मायने ही नहीं।
    उत्तम।

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    1. सस्नेह आभार पम्मी जी आपकी उत्साह वर्धक सराहना पा मन खुश हुवा ।

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  14. प्रिय कुसुम बहन आदरनीय गोपेश जी ने सच लिखा | छायावादी कवियों की रचनाएँ याद दिलाते हैं आपकी अधकतर रचनाएँ और चाँद के सम्मोहन के तो क्या कहने !!!! एक एक शब्द मनमोहक और सरस है | माँ सरस्वती आपकी लेखनी को प्रवाह दे | ये कभी ना थमे | इस मंच पर अमित निश्चल भी बहुत कुछ एसा ही लिखते हैं जो बहुत प्रभावित करता है | आपको हार्दिक शुभकामनायें |

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    1. प्रिय रेनू बहन आपकी स्नेह सिक्त प्रतिक्रिया के लिये आभार शब्द बहुत ही कम होगा सिर्फ स्नेह और ढेर सा स्नेह,सच कहूं तो आप सब ने जो मान दिया है वो मनभावन है पर खुद को संकोच मे अनुभव करती हूं, उन महान कवियों का सूई की नोक बराबर भी लिख पाऊंगी तो खुद को धन्य समझूंगी। यह सच है कि मेरी पहली पसंद छायावादी कवि ही हैं विशेष रूप से पंत जी और प्रसाद जी। एक बार फिर से स्नेह बहन।

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  15. चांदनी लजाई बोली मै हारी
    बोली मन करता तुम से कुछ
    उजाला चुरा लूं!!
    निशा धीरे धीरे ढलने लगी
    चांदनी चांद मे सिमटने लगी......'कुसुम' सी कोमल पदावली में चाँद के सम्मोहन का मनमोहक चित्रांकन! विस्मित हूँ आपकी जादुई काव्य-कुची से खचित इस विलक्षण छायांकन पर!!! माँ वीणावादिनी आपकी काव्य वीणा को अगणित सुर ताल की लय एवं लावण्य से लबालब रखें! हृदयतल से कामना!! बधाई और आभार!!!

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    1. आदरणीय विश्व मोहन जी आपकी विस्तृत और अप्रतिम सराहना एक रचना कार के लिये पुरस्कार से कम नही, आपकी अविस्मरणीय प्रतिक्रिया सदा मुझे अच्छे लेखन के लिये प्रेरित करती रहेगी, पात्रता से बहुत ज्यादा पा रही हूं, और साथ ही मां वागेश्वरी के वरद हस्त की शुभकामनायें आप जैसे सुधि रचनाकार से पा रही हूं, आपकी सराहना हेतू लिखी प्रतिपंक्तियां बहुत सुंदर और उत्साह वर्धक है।
      काव्य परिमार्जन के लिये एक समीक्षक की भांति मार्ग दर्शन का अनुरोध है।
      आपकी प्रतिक्रिया के बदले आभार शब्द बस औपचारिक सा है फिर भी हृदय तल से सादर आभार।

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  16. सुंदरतम कृति।

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