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Friday, 13 July 2018

विश्वेश्वर

आज रथ यात्रा पर सभी को हार्दिक बधाई
.
               "विश्वेश्वर"
वो है निर्लिप्त निरंकार वो प्रीत क्या जाने
ना राधा ना मीरा बस " रमा " रंग है राचे
आया था धरा को असुरो से देने मुक्ति
आया था आते कलियुग की देने चेतावनी
आया था देने कृष्ण बन गीता का वो ज्ञान
आया था  समझाने कर्म की  महत्ता
आया था त्रेता के कुछ वचन करने पुरे
आया जन्म लेकर कोख से ,         
इसलिये रचाई बाल लीलाऐं नयनाभिराम ,
सांसारी बन आया तो रहा भी
बन मानव की दुर्बताओं के साथ
वही सलौना बालपन ,वही ईर्ष्या,
वही मैत्री ,वही शत्रुता ,वही मोह
वही माया वही भोग वही लिप्सा ,   
अभिलाषा ,वही बदलती मनोवृति
जो कि है मानव के नैसर्गिक गुण ।
वो आया था जगाने स्वाभिमान ,
सिखाने निज अस्तित्व हित संघर्ष करना
मनुष्य सब कुछ करने मे है सक्षम ,
ये बताने आया प्रत्यक्ष मानव बन ।
नही तो बैठ बैकुंठ मे सब साध लेता
क्यों आता अजन्मा इस धरा पर
हमे समझाने आया कि सब कुछ
तू कर सकता ,नही तू नारायण से कम
बस मार्ग भटक के तू खोता निज गरिमा
भूला अंहकार वश तूं बजरंगी सा
अपनी सारी पावन शक्तियां । 
                                       
            कुसुम कोठारी।

5 comments:

  1. जय श्री विश्वेश्वर 🙏 बहुत सुंदर रचना कुसुम जी
    बहुत बहुत बधाई

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    1. सस्नेह आभार अनुराधा जी ।

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  2. कान्हा के अनन्य जीवन आयाम सतत प्रेरणा स्त्रोत रहे हैं ...
    सुंदर शब्दों से आपने इनके जीवन को लिखा है ...

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    1. जी सादर आभार मनोबल बढाती प्रतिक्रिया आपकी। लेखन का भाव आत्मसात करती।

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  3. बहुत सुन्दर मनमोहक सृजन ।

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