मन की वीणा - कुसुम कोठारी।
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Tuesday, 15 May 2018
पत्थरों मे फूल
पत्थरों के सीने से देखो
फूल खिले
कितने कोमल
कितने प्यारे
शिलाऐं दरक गई
नजाकत से
खिलखिला उठी बहार
विराने से
कितना मासूम होता
देखो बचपन
परवाह नही किसी
अंजाम की
खिलौनों से ही नही
खेलता बचपन
हर नई खोज होती
दिल अनजाने की।।
कुसुम कोठारी ।
2 comments:
संजय भास्कर
21 May 2018 at 01:23
बहुत सटीक रचना ।
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मन की वीणा
21 May 2018 at 02:38
जी आभार आपका।
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बहुत सटीक रचना ।
ReplyDeleteजी आभार आपका।
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