Followers

Monday 29 March 2021

बिना नाव का नाविक चंदा


 बिना नाव का नाविक चंदा


बालू कण सागर के तट पर

चाँदनी में झिलमिलाये।

और हवा के झोंकों से ये

पात कैसे सरसराये।


इस रजनी में कोई जादू

हृदय पपीहा बोल रहा

लहर पालने बैठा चंदा

धीरे धीरे डोल रहा

आती जाती सिंधु उर्मियाँ

तट छूने को लहराये।।


बिना नाव का नाविक चंदा

किरण हाथ चप्पू  थामा

छप छपाक कर तैर रहा वो

तन पर उजियारी जामा

उठते जब पानी में झूमर

 मोती जैसे बरसाये।।


उद्वेग सिंधु में उठा और

निशा कांत थर-थर डोला

भीगा कुर्ता भीगी चादर

भीगा किरणों का झोला

काला पानी उजली साड़ी

रेशम जैसे बलखाये।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

30 comments:

  1. अति सुन्दर रचना, भावपक्ष सशक्त।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

      Delete
  2. बहुत सुंदर रचना। होली की हार्दिक शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन उत्साहवर्धन के लिए।
      सस्नेह।

      Delete
  3. बहुत बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।

      Delete
  4. सुन्दर भावप्रवण रचना, आपकी रचित रचना नई नई विधाओं में आकर्षण पैदा करती है,आपको हार्दिक शुभकामनाएं, ऐसे ही सुंदर रचनाओं से हमें प्रेरित करती रहें,सादर नमन ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपको पसंद आता है लेखन ये मेरे लिए हर्ष का विषय है।
      सदा आप सब की आशाओं पर खरा उतरने को प्रयासरत रहूंगी।
      ढेर सा आभार आपका बस ऐसे ही उत्साहवर्धन करते रहिएगा।
      सस्नेह।

      Delete
  5. वाह!कुसुम जी ,सुंदर भावों से सजी लाजवाब रचना ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका शुभा जी,आपकी मोहक स्वर लहरी की मैं सदा कायल हूं और आपके उत्साहवर्धन की आकांक्षी ।
      सस्नेह।

      Delete
  6. बिना नाव का नाविक चँदा

    किरण हाथ चप्पू थामा

    छप छपाक कर तैर रहा वो
    तन पर उजियारी जामा
    उठते जब पानी में झूमर
    मोती जैसे बरसाये।।
    बेहद खूबसूरत... मनमोहक भावाभिव्यक्ति कुसुम जी ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. मीना जी ढेर सारा स्नेह आभार,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया सदा मेरे लेखन की उर्जा है।
      बहुत बहुत सा आभार।
      सस्नेह।

      Delete
  7. बहुत ही खूबसूरत रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      लेखन को सार्थकता देती प्रतिक्रिया।
      सादर।

      Delete
  8. आपकी कव‍ितायें पढ़कर मन पूरा का पूरा संतृप्त हो जाता है कुसुम जी...क्या खूूबल‍िखा क‍ि ---''इस रजनी में कोई जादू

    हृदय पपीहा बोल रहा

    लहर पालने बैठा चँदा

    धीरे धीरे डोल रहा

    आती जाती सिंधु उर्मियाँ

    तट छूने को लहराये।।''...अद्भुत

    ReplyDelete
    Replies
    1. ओह !मैं अनुग्रहित हूं अलकनंदा जी इतनी भावभीनी टिप्पणी से रचना और रचनाकार दोनों कृतार्थ हुए।
      बहुत बहुत आभार आपका।
      सस्नेह।

      Delete
  9. सुंदर भावाभिव्यक्ति

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

      Delete
  10. प्रकृति के विविध रूपों को मानवीय भावनाओं से संयुक्त करके छंदबद्ध काव्य में ढालकर मनोहारी शब्द-चित्र के सृजन में सत्य ही आप अद्वितीय हैं कुसुम जी । आपका सृजन आनंद की सतत् सलिला है - प्रकृति-प्रेमियों के निमित्त भी एवं काव्य-रसिकों के निमित्त भी ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. मैं अभिभूत हूं जितेन्द्र जी आपने रचना को भरपूर समय और स्नेह दिया ।
      लेखन सार्थक हुआ।
      आपकी प्रतिपंक्तियां उत्साहवर्धक और आनंद देने वाली है।
      सादर आभार।

      Delete
  11. बहुत ही सुन्दर सृजन - - साधुवाद सह।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय,आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ ।
      सादर।

      Delete
  12. आपके जादू से बँधा हृदय पपीहा बोल रहा है --- अहा !

    ReplyDelete
    Replies
    1. अहा!आपके कहा ने मन मोह लिया अमृता जी।
      सस्नेह आभार बस यूँ ही स्नेह बरसाते रहें।
      सस्नेह।

      Delete
  13. चांदनी रात का खूबसूरत चित्रण . प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत सा आभार आपका संगीता जी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साहवर्धक होती है , मेरे लिए और लेखनी के लिए।
      सस्नेह।

      Delete
  14. बेहद खूबसूरत रचना कुसुम जी।

    ReplyDelete
  15. सादर आभार आपका आदरणीय।
    मेरी लिखी रचना को चर्चा पर रखने के लिए।
    मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
    सादर।
    सही कहा आपने हम ब्लागर सभी को ज़्यादा से ज़्यादा ब्लाग पर जाना चाहिए और यथोचित टिप्पणी देनी चाहिए, जिसमें ब्लाग जगत में फिर से नई स्फूर्ति का संचार होगा।सादर।

    ReplyDelete
  16. बिना नाव का नाविक चंदा


    बालू कण सागर के तट पर

    चाँदनी में झिलमिलाये।

    और हवा के झोंकों से ये

    पात कैसे सरसराये।



    इस रजनी में कोई जादू

    हृदय पपीहा बोल रहा

    लहर पालने बैठा चंदा

    धीरे धीरे डोल रहा

    आती जाती सिंधु उर्मियाँ

    तट छूने को लहराये।।



    बिना नाव का नाविक चंदा

    किरण हाथ चप्पू थामा

    छप छपाक कर तैर रहा वो

    तन पर उजियारी जामा

    उठते जब पानी में झूमर

    मोती जैसे बरसाये।।



    उद्वेग सिंधु में उठा और

    निशा कांत थर-थर डोला

    भीगा कुर्ता भीगी चादर

    भीगा किरणों का झोला

    काला पानी उजली साड़ी

    रेशम जैसे बलखाये।
    पूरी रचना ही बहुत खूबसूरत है , पढ़कर आनंद आ गया कुसुम जी, बिना नाव के नाविक चंदा , लाजवाब सादर नमन



    ReplyDelete
  17. उद्वेग सिंधु में उठा और
    निशा कांत थर-थर डोला
    भीगा कुर्ता भीगी चादर
    भीगा किरणों का झोला
    काला पानी उजली साड़ी
    रेशम जैसे बलखाये।।
    वाह!!!!
    अद्भुत बिम्ब एवं व्यंजनाएं
    लाजवाब नवगीत।

    ReplyDelete