कल तक बरखा मनभावन
ये सिर्फ कहानी नही
जगत का गोरख धंधा है,
कभी ऊपर कभी नीचे
चलता जीवन का पहिंया है।
कल तक बरखा मन भावन
आज बैरी बन सब बहा रही,
टाप टपरे टपक रहे निरंतर
तृण,फूस झोपड़ी उजाड़ रही।
सिली लकड़ी धुआं-धुंआ हो
बुझी-बुझी आंखें झुलसा रही
लो आई बैरी बौछार तेजी से
अध जला सा चूल्हा बुझा रही।
काम नही मिलता मजदूरों को
बैरी जेबें खाली मुंह चिढा रही,
बच्चे भुखे,खाली पेट,तपे तन
मजबूर मां बातों से बहला रही।
कुसुम कोठारी।
ये सिर्फ कहानी नही
जगत का गोरख धंधा है,
कभी ऊपर कभी नीचे
चलता जीवन का पहिंया है।
कल तक बरखा मन भावन
आज बैरी बन सब बहा रही,
टाप टपरे टपक रहे निरंतर
तृण,फूस झोपड़ी उजाड़ रही।
सिली लकड़ी धुआं-धुंआ हो
बुझी-बुझी आंखें झुलसा रही
लो आई बैरी बौछार तेजी से
अध जला सा चूल्हा बुझा रही।
काम नही मिलता मजदूरों को
बैरी जेबें खाली मुंह चिढा रही,
बच्चे भुखे,खाली पेट,तपे तन
मजबूर मां बातों से बहला रही।
कुसुम कोठारी।
बिल्कुल सत्य कुसुम जी कल तक जो रखा मनभावन लगती है ,बड़ते जल प्रवाह और बाढ़ की स्थिति होने पर प्रलयकारी होती है
ReplyDeleteसस्नेह आभार रीतु जी।
Deleteआपकी त्वरित प्रतिक्रिया और सार्थक प्रतिपंक्तियों से रचना को प्रवाह मिला।
सिली लकड़ी धुआं-धुंआ हो
ReplyDeleteबुझी-बुझी आंखें झुलसा रही
लो आई बैरी बौछार तेजी से
अध जला सा चूल्हा बुझा रही।
बहुत सुन्दर सटीक भावाभिव्यक्ति...
वाह!!!
बहुत बहुत आभार सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला
Deleteसस्नेह।
सत्य कथन.., अतिवृष्टि से हुआ नुकसान जीवन की धारा को अवरुद्ध कर ही देता है । हृदयस्पर्शी सृजन ।
ReplyDeleteसमर्थन देती सार्थक प्रतिक्रिया से रचना के भाव मुखरित हुवे मीना जी आभार आपका सस्नेह।
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 09/08/2019 की बुलेटिन, "काकोरी कांड के सभी जांबाज क्रांतिकारियों को नमन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका शिवम् जी ब्लाग बुलेटिन में मेरी रचना को शामिल करना मेरे लिए सम्मान का विषय है।
Deleteसादर ।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-08-2019) को " मुझको ही ढूँढा करोगे " (चर्चा अंक- 3424) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत बहुत आभार आपका। चर्चा मंच पर मेरी रचना को चुन कर मुझे अनुग्रहित किया ।
Deleteसादर आभार।
बेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteस्वागत है सखी! आपको ब्लाग पर देख अत्यन्त हर्ष हुआ।
Deleteबहुत बहुत आभार।
स्नेह बनाते रखें।
जीवन की आपधापी में जहां एक चीज अच्छी लगती हैं वहीं वो चीज की अति होने पर कैसा होता हैं इसका बहुत ही सुंदर चित्रण किया हैं आपने, कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत स्नेह ज्योति बहन आपकी प्रतिक्रिया सदा सुखद अहसास ।
Deleteसस्नेह आभार।
ReplyDeleteसिली लकड़ी धुआं-धुंआ हो
बुझी-बुझी आंखें झुलसा रही
लो आई बैरी बौछार तेजी से
अध जला सा चूल्हा बुझा रही।
बेहद हृदयस्पर्शी रचना सखी
अधिकता हर बात की बुरी ... और यही बारिश के लिए भी उतना ही सच है जितना हर बात के लिए ... इस बर्बादी को भी इस प्राकृति को ही रोकना होगा ...
ReplyDeleteअच्छी रचना है ...
सिली लकड़ी धुआं-धुंआ हो
ReplyDeleteबुझी-बुझी आंखें झुलसा रही
लो आई बैरी बौछार तेजी से
अध जला सा चूल्हा बुझा रही।
बहुत मार्मिक रचना प्रिय कुसुम बहन | इसे कहते हैं -- कंगाली में आटा गीला ! इए भाव को सार्थक करती रचना | सस्नेह --