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Friday, 9 August 2019

कल तक बरखा मनभावन

कल तक बरखा मनभावन

ये सिर्फ कहानी नही
जगत का गोरख धंधा है,
कभी ऊपर कभी नीचे
चलता जीवन का पहिंया है।

कल तक बरखा मन भावन
आज बैरी बन सब बहा रही,
टाप टपरे टपक  रहे निरंतर
तृण,फूस झोपड़ी उजाड़ रही।

सिली लकड़ी धुआं-धुंआ हो
बुझी-बुझी आंखें झुलसा रही
लो आई बैरी बौछार तेजी से
अध जला सा चूल्हा बुझा रही।

काम नही मिलता मजदूरों को
बैरी जेबें खाली मुंह चिढा रही,
बच्चे भुखे,खाली पेट,तपे तन
मजबूर मां बातों से बहला रही।

            कुसुम कोठारी।

17 comments:

  1. बिल्कुल सत्य कुसुम जी कल तक जो रखा मनभावन लगती है ,बड़ते जल प्रवाह और बाढ़ की स्थिति होने पर प्रलयकारी होती है

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    1. सस्नेह आभार रीतु जी।
      आपकी त्वरित प्रतिक्रिया और सार्थक प्रतिपंक्तियों से रचना को प्रवाह मिला।

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  2. सिली लकड़ी धुआं-धुंआ हो
    बुझी-बुझी आंखें झुलसा रही
    लो आई बैरी बौछार तेजी से
    अध जला सा चूल्हा बुझा रही।
    बहुत सुन्दर सटीक भावाभिव्यक्ति...
    वाह!!!

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ‌
      सस्नेह।

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  3. सत्य कथन.., अतिवृष्टि से हुआ नुकसान जीवन की धारा को अवरुद्ध कर ही देता है । हृदयस्पर्शी सृजन ।

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    1. समर्थन देती सार्थक प्रतिक्रिया से रचना के भाव मुखरित हुवे मीना जी आभार आपका सस्नेह।

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 09/08/2019 की बुलेटिन, "काकोरी कांड के सभी जांबाज क्रांतिकारियों को नमन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. जी सादर आभार आपका शिवम् जी ब्लाग बुलेटिन में मेरी रचना को शामिल करना मेरे लिए सम्मान का विषय है।
      सादर ।

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  5. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-08-2019) को " मुझको ही ढूँढा करोगे " (चर्चा अंक- 3424) पर भी होगी।


    --

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….

    अनीता सैनी

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    1. बहुत बहुत आभार आपका। चर्चा मंच पर मेरी रचना को चुन कर मुझे अनुग्रहित किया ।
      सादर आभार।

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  6. बेहतरीन रचना सखी

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    1. स्वागत है सखी! आपको ब्लाग पर देख अत्यन्त हर्ष हुआ।
      बहुत बहुत आभार।
      स्नेह बनाते रखें।

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  7. जीवन की आपधापी में जहां एक चीज अच्छी लगती हैं वहीं वो चीज की अति होने पर कैसा होता हैं इसका बहुत ही सुंदर चित्रण किया हैं आपने, कुसुम दी।

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    1. बहुत बहुत स्नेह ज्योति बहन आपकी प्रतिक्रिया सदा सुखद अहसास ।
      सस्नेह आभार।

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  8. सिली लकड़ी धुआं-धुंआ हो
    बुझी-बुझी आंखें झुलसा रही
    लो आई बैरी बौछार तेजी से
    अध जला सा चूल्हा बुझा रही।
    बेहद हृदयस्पर्शी रचना सखी

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  9. अधिकता हर बात की बुरी ... और यही बारिश के लिए भी उतना ही सच है जितना हर बात के लिए ... इस बर्बादी को भी इस प्राकृति को ही रोकना होगा ...
    अच्छी रचना है ...

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  10. सिली लकड़ी धुआं-धुंआ हो
    बुझी-बुझी आंखें झुलसा रही
    लो आई बैरी बौछार तेजी से
    अध जला सा चूल्हा बुझा रही।
    बहुत मार्मिक रचना प्रिय कुसुम बहन | इसे कहते हैं -- कंगाली में आटा गीला ! इए भाव को सार्थक करती रचना | सस्नेह --

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