मैं चुनती रही रश्मियां बिना आहट रात भर ,
करीने से सजाती रही एक पर एक धर ,
संजोया उन्हें कितने प्यार से हाथों में,
रख दूंगी धर के कांच के मर्तबान में ,
सपना देखती रही रातों में जाग-जाग के ,
सजाती संवारती रही उनसे आंगन मन के ,
कितनी गोरी दुलारी दुधिया न्यारी-न्यारी,
पेड़ो की शाख से चुन-चुन के संवारी,
भोर का उजाला चुपके-चुपके आया ,
मेरी संकलित रश्मियों के मन भाया,
वे धीरे से जा समाई भोर के आंचल में ,
रश्मियों का साथ था दिवस के उजास में ,
सूरज कहां कब अकेला है ज्योति देता
कितने सपनों का प्रकाश है उसमें रहता ।
कुसुम कोठारी।
करीने से सजाती रही एक पर एक धर ,
संजोया उन्हें कितने प्यार से हाथों में,
रख दूंगी धर के कांच के मर्तबान में ,
सपना देखती रही रातों में जाग-जाग के ,
सजाती संवारती रही उनसे आंगन मन के ,
कितनी गोरी दुलारी दुधिया न्यारी-न्यारी,
पेड़ो की शाख से चुन-चुन के संवारी,
भोर का उजाला चुपके-चुपके आया ,
मेरी संकलित रश्मियों के मन भाया,
वे धीरे से जा समाई भोर के आंचल में ,
रश्मियों का साथ था दिवस के उजास में ,
सूरज कहां कब अकेला है ज्योति देता
कितने सपनों का प्रकाश है उसमें रहता ।
कुसुम कोठारी।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " मंगलवार 06 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सांध्य दैनिक में मेरी रचना लेने के लिए।
Deleteदी बहुत खूबसूरत रचना और संदेश भी लाज़वाब है।
ReplyDeleteशब्द प्रयोग लुभावने हैं।
बहुत बहुत स्नेह आभार श्वेता रचना को समर्थन मिला आपकी प्रतिक्रिया का सदा इंतजार रखता है ।
Delete
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 7 अगस्त 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
ढेर सा आभार प्रिय पम्मी जी । पांच लिंको में आना सदा गोरान्वित करता है।
Deleteआपकी स्नेह दृष्टि का तहेदिल से शुक्रिया।
प्रिय कुसुम बहन , रश्मियों से गुंथे ख़ाब बहुत मनभावन हैं | मनमोहक काव्य चित्र में मन के सरल सहज स्वप्निल भावों को बहुत ही करीने से संजोया आपने | सुबह के उजास में इन रश्मियों का समा जाना सृजन के विस्तार का प्रतीक है | सस्नेह
ReplyDeleteआपको देख मन हर्षान्वित हुआ रेणु बहन, साथ ही इतनी शानदार सराहना मिली आपके एक एक बोल रचना को सार्थक गति प्रदान करता सा है ।
Deleteआपका स्नेह सदा उत्साह बढ़ाया है ।
सस्नेह।
बहोत प्यारी रचना
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका सराहना मिली।
Deleteमेरे ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका ।
भोर का उजाला चुपके-चुपके आया ,
ReplyDeleteमेरी संकलित रश्मियां के मन भाया,
वे धीरे से जा समाई भोर के आंचल में , बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌
सूरज कहां कब अकेला है ज्योति देता
ReplyDeleteकितने सपनों का प्रकाश है उसमें रहता ।
बहुत ही सुन्दर मनभावनी सार्थक प्रस्तुति...
सूरज कहां कब अकेला है ज्योति देता
ReplyDeleteकितने सपनों का प्रकाश है उसमें रहता।
वा व्व...कुसुम दी, क्या कहने...सूरज की रोशनी में सपनों का प्रकाश...बहुत सुंदर कल्पना।
वाह सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletebahut bahut sundar rachna - Ration Card Suchi
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteप्रकाश उम्मीद से भरा होता है ... दिशा और दूर तक देखना प्रकाश से ही संभव हो पता है ... ये रश्मियाँ जीवन में आशा ले कर आती हैं ...
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-08-2019) को "देशप्रेम का दीप जलेगा, एक समान विधान से" (चर्चा अंक- 3431) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
वाह...... बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteवाह बेहतरीन रचना
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