बन रे मन तूं चंदन वन
बन रे मन तूं चंदन वन
सौरभ का बन अंश-अंश।
कण-कण में सुगंध जिसके
हवा-हवा महक जिसके
चढ़ भाल सजा नारायण के
पोर -पोर शीतल बनके।
बन रे मन तूं चंदन वन।
भाव रहे निर्लिप्त सदा
मन में वास नीलकंठ
नागपाश में हो जकड़े
सुवास रहे सदा आकंठ।
बन रे मन तूं चंदन वन ।
मौसम ले जाय पात यदा
रूप भी ना चितचोर सदा
पर तन की सुरभित आर्द्रता
रहे पीयूष बन साथ सदा।
बन रे मन तूं चंदन वन ।
घिस-घिस खुशबू बन लहकूं
ताप संताप हरूं हर जन का
जलकर भी ऐसा महकूं,कहे
लो काठ जला है चंदन का।
बन रे मन तूं चंदन वन ।।
कुसुम कोठारी।
बन रे मन तूं चंदन वन
सौरभ का बन अंश-अंश।
कण-कण में सुगंध जिसके
हवा-हवा महक जिसके
चढ़ भाल सजा नारायण के
पोर -पोर शीतल बनके।
बन रे मन तूं चंदन वन।
भाव रहे निर्लिप्त सदा
मन में वास नीलकंठ
नागपाश में हो जकड़े
सुवास रहे सदा आकंठ।
बन रे मन तूं चंदन वन ।
मौसम ले जाय पात यदा
रूप भी ना चितचोर सदा
पर तन की सुरभित आर्द्रता
रहे पीयूष बन साथ सदा।
बन रे मन तूं चंदन वन ।
घिस-घिस खुशबू बन लहकूं
ताप संताप हरूं हर जन का
जलकर भी ऐसा महकूं,कहे
लो काठ जला है चंदन का।
बन रे मन तूं चंदन वन ।।
कुसुम कोठारी।
वाहः
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति
सादर आभार दी आशीर्वाद बना रहे ।आपकी सराहना से
Deleteरचना को प्रवाह मिला।
सादर।
बन रे मन तूं चंदन वन ।।...
ReplyDeleteबेहतरीन लेखन व सदाबहार रचना। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय कुसुम जी।
जी बहुत बहुत आभार आपका पुरूषोत्तम जी।
Deleteरचना का मोल बढ़ती सुंदर प्रतिक्रिया।
सादर।
प्रिय कुसुम बहन चन्दन अपने भीतर अनगिन गुणों को समाहित रखता है | चन्दन वन सा ये मन हो जाए तो सब राग द्वेष मिट जाएँ | सचमुच नागपाश में फंसकर भी चन्दन अपनी महक को सलामत रखकर नागका विष कभी ग्रहण नहीं करता यही उसका मूल गुण है | बहुत प्यारा सृजन - मानवकल्याण की भावनाओं की प्रेरणा से भरा | सस्नेह शुभकामनायें आपके लिए साथ में श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें | सपरिवार सकुशल रहिये | सस्नेह --
ReplyDeleteरेणु बहन आपकी अनुपम प्रतिक्रिया ने रचना को एक सजीव प्रवाह दिया है सुंदर और उत्साह वर्धक व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से हर भाव मुखर कर स्पष्ट हुवा।
Deleteआपकों भी अनंत शुभकामनाएं श्री कृष्ण जन्म पर।
somay rchnaa,,..bdhaayi
ReplyDeleteप्रथम तो ब्लाग पर आपका हृदय तल से स्वागत।
Deleteआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए स्नेह आभार।
चंदन सा सुगंधित मन सब अवगुणोंं से दूर सिर्फ गुणों को भरपूर.....
ReplyDeleteघिस-घिस खुशबू बन लहकूं
ताप संताप हरूं हर जन का
जलकर भी ऐसा महकूं,कहे
लो काठ जला है चंदन का।
वाह!!!!
विशुद्ध एवं कल्याणकारी भावों से सजी लाजवाब प्रस्तुति...
काश चंदन सख मन हो सबका
बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर रचना का आना मेरे लिए सम्मान का विषय रहता है सदैव।
ReplyDeleteसस्नेह।
सुधा जी बहुत बहुत आभार आपका। रचना के भावों पर विशेष टिप्पणी उत्साह वर्धन करती आपकी प्रतिक्रिया।
ReplyDeleteसस्नेह आभार।
घिस-घिस खुशबू बन लहकूं
ReplyDeleteताप संताप हरूं हर जन का
जलकर भी ऐसा महकूं,कहे
लो काठ जला है चंदन का। बेहतरीन रचना सखी
कितनी सुन्दर बात ... सच है मन चन्दन जैसा खुशबूदार हो जाये ... सब सुख दुःख समा ले स्वयं में निर्लिप्त भाव से ... जीवन आनद हो जाये ...
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