Followers

Wednesday 23 January 2019

चांद का सम्मोहन

चांद का सम्मोहन

प्राचीर से उतर चंचल उर्मियाँ
आंगन में अठखेलियाँ कर रही थी
और मैं बैठी कृत्रिम प्रकाश में
चाँद पर कविता लिख रही थी
मन में प्रतिकार उठ रहा था
उठ के वातायन खोल दूं
शायद मन कुछ प्रशांत हो
आहा!!
चांद अपनी सुषमा के साथ
मेरी ही खिडकी पर बैठा
थाप दे रहा था धीमी मद्धरिम
विस्मित सी जाने किस सम्मोहन में
बंधी मैंं छत तक आ गई
इतनी उजली कोरी वसना प्रकृति,
स्तभित से नयन
चांदनी छत से आंगन तक
पुलक पुलक क्रीड़ा कर रही थी
गमलों के अलसाऐ ये फूलों में
नई ज्योत्सना भर रही थी
मन लुभाता समीर का माधुर्य
एक धीमी स्वर लहरी लिये
पादप पल्लवों का स्पंदन
दूर धोरी गैया का नन्हा
चंद्र रश्मियों से होड़ करता
कौन ज्यादा कोमल
कौन स्फटिक सा धोरा
चांदनी लजाई बोली मै हारी
बोली मन करता तुम से कुछ
उजाला चुरा लूं!!
निशा धीरे धीरे  ढलने लगी
चांदनी चांद में सिमटने लगी
चांद ने अपना तिलिस्म उठाया
और प्रस्थान किया
प्राची से एक अद्भुत रूपसी
सुर बाला सुनहरी आंचल
फहराती मंदाकिनी में उतरी
आज चांद और चांदनी से
साक्षात्कार हुवा मेरा
 मेरे  मनोभावों  का
प्रादुर्भाव हुवा, बिन कल्पना।

         कुसुम कोठारी।

27 comments:

  1. बहुत ही सुंदर....आदरणीया।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया का ।
      सादर।

      Delete
  2. Bahut khoobsurat rachna sakhi....manbhawan

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रिय सखी स्नेह आभार आपका।

      Delete
    2. प्राची से एक अद्भुत रूपसी
      सुर बाला सुनहरी आंचल
      फहराती मंदाकिनी में उतरी
      वाह!!!
      बहुत ही सुन्दर ....लाजवाब....

      Delete
    3. सुधा जी सस्नेह आभार आपकी प्रोत्साहित करती सराहन के लिए।
      सदा स्नेह बनाये रखें ।

      Delete
  3. प्रिय सखी बहुत ही सुन्दर सृजन
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रिय सखी स्नेह आभार आपका।

      Delete
  4. ब्लॉग बुलेटिन टीम की और मेरी ओर से आप सब को राष्ट्रीय बालिका दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं|


    ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 24/01/2019 की बुलेटिन, " 24 जनवरी 2019 - राष्ट्रीय बालिका दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
    Replies
    1. मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में मान देने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।

      Delete
  5. वाह...लाज़वाब प्रस्तुति..

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सादर आभार आदरणीय आपका।

      Delete
  6. प्राची से एक अद्भुत रूपसी
    सुर बाला सुनहरी आंचल
    फहराती मंदाकिनी में उतरी
    आज चांद और चांदनी से
    साक्षात्कार हुवा मेरा
    मेरे मनोभावों का
    प्रादुर्भाव हुवा, बिन कल्पना।
    वाह शानदार रचना सखी

    ReplyDelete
    Replies
    1. सखी आपकी टिप्पणी से रचना को सार्थकता और प्रवाह मिलता है और मन में हर्ष।
      सदा स्नेह बनाये रखें।
      सस्नेह।

      Delete
  7. वाह आदरणीया दीदी जी चांदनी सी सुंदर रचना
    सम्मोहित कर दिया आपने 👌
    सादर नमन सुप्रभात

    ReplyDelete
    Replies
    1. आंचल आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से सचमुच मन उल्लास से भर गया ढेर सा स्नेह प्रिय।

      Delete
  8. सस्नेह आभार मै अभिभूत हूं प्रिय।

    ReplyDelete
  9. अदभुत शब्दो का चयन फिर गुंथन हैं भावो का
    मन वीणा के तार बज गये गायन हैं जज्बातों का !
    👌👌👌👌👌👌👌👌👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाह मीता सुंदर संगीत मय प्रतिक्रिया आपकी मन खुश हुवा
      सस्नेह आभार ढेर सा।

      Delete
  10. और मैं बैठी कृत्रिम प्रकाश में
    चाँद पर कविता लिख रही थी....
    हमेशा की तरह लाजबाब .....सादर स्नेह

    ReplyDelete
    Replies
    1. कामिनी जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ढेर सारा आभार ।
      सस्नेह ।

      Delete
  11. मन्त्रमुग्ध करती अत्यंत सुन्दर रचना ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार मीना जी उत्साह वर्धन के लिये।।

      Delete
  12. बिल्कुल आपने एक चलचित्र प्रस्तुत किया। मानो आँखों के सामने ये सब घटित हो रहा। अद्भुत!

    "आहा!!
    चांद अपनी सुषमा के साथ
    मेरी ही खिडकी पर बैठा
    थाप दे रहा था धीमी मद्धरिम
    विस्मित सी जाने किस सम्मोहन में
    बंधी मैंं छत तक आ गई "

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी उत्साह बढाती प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।
      मन लुभाती टिप्पणी का सादर आभार।

      Delete
  13. निशा धीरे धीरे ढलने लगी
    चांदनी चांद में सिमटने लगी
    चांद ने अपना तिलिस्म उठाया
    और प्रस्थान किया
    मानव जीवन का सत्य बताती खूबसूरत, भावपूर्ण और सटीक शब्दचित्र खींचती पंक्तियाँ
    प्रणाम।

    ReplyDelete
  14. सस्नेह आभार शशि भाई आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से सच में लेखन को आयाम मिलता है।
    सस्नेह।

    ReplyDelete