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Tuesday 28 August 2018

एक गुलाब की वेदना

एक गुलाब की वेदना

कांटो में भी हम तो महफूज़ थे।

खिलखिलाते थे ,सुरभित थे ,
हवाओं से खेलते झुलते थे ,
हम मतवाले कितने खुश थे ।

कांटो में भी हम महफूज़ थे ।

फिर तोड़ा किसीने प्यार से ,
सहलाया हाथो से , नर्म गालों से ,
दे डाला हमे प्यार की सौगातों में ।

कांटो मे भी हम महफूज़ थे ।

घड़ी भर की चाहत में संवारा ,
कुछ अंगुलियों ने हमे दुलारा ,
और फिर पंखुरी पंखुरी बन बिखरे ।

कांटो में भी महफूज थे हम ।
हां तब कितने  खुश थे हम।।
            कुसुम कोठारी ।

10 comments:

  1. वाह बहुत खूब 👌👌 गुलाब की वेदना को क्या खूब शब्दों में बयां किया है बहुत सुंदर 👌

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    1. सही है ना सखी कांटों में रह कर फी फूल मुस्कुराते हैं और डाली से टूट कर कितनी जल्दी पस्त हो जाते हैं।
      ढेर सा स्नेह आभार सखी।

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  2. बहुत खूब ...घूम लिया हमने जग सारा
    आपना घर है सबसे प्यारा

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    1. जी सही कहा मीता जड से उखड कर कौन कितना पनपता है और पनप भी जाता है तो अंदर कितना दर्द समेटता है।
      स्नेह आभार

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  3. सच कहा
    फूल कांटो की हिफाज़त में ही महफ़ूज़ रहते हैं
    बहुत सुंदर

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    1. सादर आभार लोकेश जी आपकी प्रतिक्रिया उत्साह वर्धक होती है।

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  4. बहुत ही सलीके से आपने रचा है आपने गुलाब की वेदना को, और अंत में तो रचना ग़ज़ब ढा रही है...
    कांटो में भी महफूज थे हम ।
    हां तब कितने खुश थे हम।।...
    वाह वाह श्रेष्ठ सृजन👌👌👌👏👏👏

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    1. जी आभार अमित जी आपकी प्रतिक्रिया मन को उत्साहित कर गई।

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  5. बहुत ही सुन्दर 👌👌👌
    गुलाब की वेदना को क्या खूब शब्दों में बयां किया 👏👏👏

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    1. बहुत सा आभार सखी आपके स्नेह का।

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