Followers

Friday 24 August 2018

कभी सरस कभी ताण्डव

बरखा ऋतु,कभी सरस कभी ताणडव

बादल उमड़ घुमड़ कर आते
घटा घोर नीले नभ छाती
दामिनी दम दम दमकती
मन मे सिहरन सी भरती ।

कभी सरस कभी तांडव सी
बरखा की रूत आती
कभी हरित धरा मुस्काती
कभी जल मग्न हो जाती ।

कृषक मन ही मन मुस्काते
चेहरे उनके खिल खिल जाते
हल की फलक से चीर
धरा को दाना पानी देते ।

बागों मे बहारे आती
डालियाँ फूलों से लद जाती
पपीहा पी की राग सुनाता
कोयल मीठे स्वर मे गाती ।

सावन की घटा घिर आती
झरनों मे रवानी  आती
नदिया कल कल स्वर मे गाती
ऋतु गोरी मृदुल मदमाती ।

चांद तारे कहीं छुप जाते
श्यामक शावक धूम मचाते
उड़ उड़ पर्वत से टकराते
झम झम झम पानी बरसाते ।
      कुसुम कोठारी।

6 comments:

  1. वर्षा ऋतु का खूबसूरत वर्णन
    सुंदर रचना

    ReplyDelete
  2. अति सुन्दर वर्णन वर्षा ऋतु का ...👌👌👌👌

    ReplyDelete
  3. बेहद खूबसूरत रचना कुसुम जी

    ReplyDelete