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Sunday 31 July 2022

सावन का मृदु हास


 सावन का मृदु हास


शाख शाख बंधा हिण्डोला

ऋतु का तन भी खिला-खिला।


रंग बिरंगी लगे कामिनी 

बनी ठनी सी चमक रही

परिहास हास में डोल रही 

खुशियाँ आनन दमक रही

डोरी थामें चहक रही है

सारी सखियाँ हाथ मिला।।


रेशम रज्जू फूल बँधे हैं

मन पर छाई तरुणाई

आँखे चपला सी चपल बनी

गाल लाज की अरुणाई

मीठे स्वर में कजरी गाती 

कण-कण को ही गयी जिला।।


मेघ घुमड़ते नाच रहे हैं

मूंगा पायल झनक रही

सरस धार से पानी बरसा

रिमझिम बूँदें छनक रही

ऐसे मधुरिम क्षण जीवन को

सुधा घूंट ही गयी पिला ।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

24 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (2-8-22} को "रक्षाबंधन पर सैनिक भाईयों के नाम एक पाती"(चर्चा अंक--4509)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।
      चर्चा मंच पर रचना को स्थान देने के लिए ।
      मैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

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  2. खूबसूरत रचना...वर्षा ऋतु का मनोरम दृश्य खींच दिया...वाह-वाह...👏👏👏

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      उत्साह वर्धन करती हुई टिप्पणी से लेखन को नव उर्जा मिली।
      सादर

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  3. Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      सादर ‌।

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  4. Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका।
      सादर।

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  5. वर्षा ऋतु का बहुत ही सुंदर दृश्य।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
      आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना मूल्यवान हुई।
      सस्नेह।

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  6. सुन्दर सृजन।

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    1. हृदय से आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सादर।

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  7. वाह!!!
    सावन की रिमझिम फुहारों और खूबसूरत हिण्डोलों की बहुत ही मनमोहक शब्दचित्रण...
    बहुत ही लाजवाब ।

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    1. बहुत सा स्नेह आभार सुधा जी।
      आपकी मोहक प्रतिक्रिया से सावन और भी हरियल हो गया।
      सस्नेह।

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  8. बहुत सुंदर ....... रचना पढ़ते पढ़ते ही झूला झूल लिए । सावन मन गया ।

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    1. अरे वाह! तब तो मुझे भी फिर से पढ़नी होगी ।
      झूला अभी झूल ही नहीं पाई।
      ढेर सा स्नेह आभार आदरणीय संगीता जी अपनत्व से भरे बोल हृदय को आह्लादित कर ग्ए।
      सादर सस्नेह।

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  9. बहुत बहुत आभार आपका यशोदा जी ।
    पांच लिकों पर रचना को देखना सदा सुखद अनुभव । मैं मंच पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
    सादर सस्नेह।

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  10. रेशम रज्जू फूल बँधे हैं, मन पर छाई तरुणाई, आँखे चपला सी चपल बनी,
    गाल लाज की अरुणाई - सावन की तीज का मनमोहक वर्णन

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    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  11. बहुत सुंदर रचना

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    1. हृदय से आभार आपका भारती जी।
      सस्नेह।

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  12. मेघ घुमड़ते नाच रहे हैं
    मूंगा पायल झनक रही
    सरस धार से पानी बरसा
    रिमझिम बूँदें छनक रही
    ऐसे मधुरिम क्षण जीवन को
    सुधा घूंट ही गयी पिला ।।
    . सावन की छटा का सुंदर मनमोहक वर्णन ।

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    Replies
    1. हृदय से आभार आपका जिज्ञासा जी।
      आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह।।

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