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Wednesday 13 July 2022

स्वार्थी मानव


 स्वार्थी मानव


उतरी शिखर चोटी

खरी वो पावनी विमला।

जाकर मिली सागर

बनी खारी सकल अमला।


मैला किया उसको

हमारी मूढ़ मतियों ने

पूजा मगन मन से

अनोखी वीर सतियों ने

वरदान बन बहती

कभी था रूप भी उजला।।


मानव बड़ा खोटा

पहनकर स्वार्थ की पट्टी

है खेलता खेला

उथलकर काल की घट्टी

दलदल बनाता है

निशाना भी स्वयं पहला।।


खोदे गहन गढ्ढे

भयानक आपदा होगी

प्राकृत प्रलय भारी

निरपराधी भुगत भोगी

ज्वालामुखी पिघले

हृदय पत्थर नहीं पिघला।।


कुसुम कोठारी "प्रज्ञा"

22 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 14 जुलाई 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    Replies
    1. हृदय से आभार आपका भाई रविन्द्र जी।
      पाँच लिंक पर रचना को शामिल करने हेतु।
      सादर ।

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  2. मनुष्य ने केवल अपना ही स्वार्थ साधा है । लेकिन खुद ही विनाश भी झेला है ।

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    Replies
    1. जी संगीता जी सही कहा आपने मनुष्य आज के सुख साधन हित कर के लिए गहन खड्डे खोद रहा है।
      सकारात्मकता प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर आभार आपका।

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  3. बहुत सुंदर और प्रभावी सृजन

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    1. जी रचना सार्थक हुई आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से।
      सादर आभार आपका।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-07-2022) को चर्चा मंच     "दिल बहकने लगा आज ज़ज़्बात में"  (चर्चा अंक-4492)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
      मैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  5. बहुत सुंदर समय के प्रवाह को गढ़ा है आपने प्रिय दी। निर्मल पावन खेल है नियति का यह।
    हर कोई उलझ जाता है भंवर में।
    सराहनीय।
    सादर

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    1. आपकी सुंदर विश्लेषणात्मक टिप्पणी से रचना में नव ऊर्जा का संचार हुआ प्रिय अनिता।
      सस्नेह आभार आपका।

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  6. मानव बड़ा खोटा

    पहनकर स्वार्थ की पट्टी

    है खेलता खेला

    उथलकर काल की घट्टी

    दलदल बनाता है

    निशाना भी स्वयं पहला
    स्वार्थी मानव स्वयं ही इस विद्धंश का पहला निशाना है
    बहुत सटीक एवं लाजवाब
    उत्कृष्ट सृजन

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    1. आपकी सुंदर विस्तृत प्रतिक्रिया ने रचना के मर्म को और भी मुखरित किया सुधाजी।
      बहुत बहुत आभार आपका।
      सस्नेह।

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  7. खुद के बनाए उलझन में ही उलझ गया है मानव सुंदर रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      ब्लॉग पर सदा स्नेह बनाए रखें।
      सस्नेह।

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  8. खुद ही खुद के द्वारा उलझन में पड़ गया है इंसान। बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन, आपकी उत्साहवर्धक उपस्थिति सदा लेखन में नव ऊर्जा भरती है।
      सस्नेह।

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  9. Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका ‌अनामिका जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सस्नेह।

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  10. निरपराधी भुगत भोगी। कितना कटु सत्य है यह!

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    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका जितेंद्र जी।
      आपकी उपस्थिति से रचना सार्थक हुई।
      सादर।

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  11. खोदे गहन गढ्ढे
    भयानक आपदा होगी
    प्राकृत प्रलय भारी
    निरपराधी भुगत भोगी
    ज्वालामुखी पिघले
    हृदय पत्थर नहीं पिघला।।
    .. चिंतनपूर्ण रचना ।

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    1. रचना में निहित भावों पर चिंतन कर के रचना को सार्थकता प्रदान की आपने जिज्ञासा जी।
      सस्नेह आभार।

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