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Monday 5 July 2021

पावस गीत


 पावस गीत


बादल चले ठन के

समर को जीत चतुरंगी।

जल भार लादा है

बनी सौदामिनी संगी ।।


चाबुक पवन मारे

सिसकती है घटा काली

रोये नयन सौ भर 

तपन के तेज की पाली

आया बरसके अब

जलद लघु काय बजरंगी।।


पावस सदा आता

करें सब लोग अगवानी

धागे बिना देखो

प्रकृति सिलती वसन धानी

है व्योम भी चंचल

पहनता पाग सतरंगी।।


संगीत है अनुपम

नगाड़े दे धमक बजते 

आषाढ़ अब बरसा

गगन में मेघ भी सजते 

वर्षा मधुर सरगम

बजे ज्यूँ वाद्य सारंगी।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

30 comments:

  1. प्रकृति पर आपका सृजन मन मोह जाता है आदरणीय दी गज़ब के बिंब 👌
    पावस सदा आता

    करें सब लोग अगवानी

    धागे बिना देखो

    प्रकृति सिलती वसन धानी

    है व्योम भी चंचल

    पहनता पाग सतरंगी..वाह!बहुत ही सुंदर।

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    1. स्नेह आभार!
      आपकी मोहक प्रतिक्रिया से लेखन में नव उर्जा का संचार हुआ।
      सस्नेह

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  2. पूरा दृश्य नज़र के सामने आ गया । वर्ष की फुहारें मन पर भी पड़ीं । काली घटा को बिना चाबुक के ही बरसा दें न 😊😊😊

    खूबसूरत प्राकृतिक चित्रण

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    1. जी सादर आभार संगीता जी।
      चाबुक तो मारना पड़ा नव गीत सदा नव व्यंजनाएं चाहता है तो कवि को कुछ खुराफात करनी ही पड़ती है । 😂😂
      वैसे बिचारी घटाएं हवा की मार खाकर ही बरसती है।
      बहुत सा आभार ऐसी जीवंत प्रतिक्रिया से सदा मन हर्षित होता है।
      सदा स्नेह बनाए रखें।
      सादर, सस्नेह।

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  3. प्रकृति के रंगों से सराबोर सुंदर सतरंगी रचना,बहुत शुभकामनाएं आपको कुसुम जी 💐💐🙏🙏

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी!
      आपको पसंद आई लेखन सार्थक हुआ, प्रकृति मेरी पहली पसंद है उसको उकेरने में अगर थोड़ी भी सफल होती हूं तो मुझे आनंद की अनुभूति होती है।
      सस्नेह।

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  4. Replies
    1. जी आदरणीय बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  5. बहुत सुन्दर शब्दों में प्रकृति का वर्णन

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अनुपमा जी ।
      उर्जावान प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  6. बहुत बहुत सुन्दर वर्णन

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  7. बार‍िश ना होने के बाद भी आपकी ये कव‍िता मन को भ‍िगो रही है----बहुत खूब कुसुम जी, पावस सदा आता

    करें सब लोग अगवानी

    धागे बिना देखो

    प्रकृति सिलती वसन धानी

    है व्योम भी चंचल

    पहनता पाग सतरंगी।।

    ---बहुत सुंदर

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    1. जी सस्नेह आभार आपका अलकनंदा जी।
      मौसम की विविधता हमारे देश की विशेषथा है ,।
      हमारे यहाँ अच्छा खासा सावन के पहले सावन आ गया है ।
      आपकी सुंदर मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  8. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०७-०७-२०२१) को
    'तुम आयीं' (चर्चा अंक- ४११८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी मैं।
      चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
      सादर सस्नेह।

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  9. बेहद खूबसूरत सृजन सखी

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी।
      उत्साहवर्धन हुआ आपकी प्रतिक्रिया से।
      सस्नेह।

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  10. बहुत ही सुंदर गीत कुसुम दी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन ।
      आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से सदा उत्साहवर्धन होता है।
      सस्नेह।

      Delete
  11. चाबुक पवन मारे

    सिसकती है घटा काली

    रोये नयन सौ भर

    तपन के तेज की पाली

    आया बरसके अब

    जलद लघु काय बजरंगी।।---गहन रचना---

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका,आपकी विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर।

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  12. प्रकृति को मनोरम चित्रण । अति सुन्दर सृजन ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी
      आपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सदा स्नेह बनाए रखें।
      सस्नेह।

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  13. प्रकृति के अनूठे बिंबों से सजा मनमोहक शब्द चित्र। सादर।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी।
      आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई,
      सस्नेह।

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  14. पावस सदा आता

    करें सब लोग अगवानी

    धागे बिना देखो

    प्रकृति सिलती वसन धानी

    है व्योम भी चंचल

    पहनता पाग सतरंगी।।
    ....वाह कुसुम जी,शब्द नहीं,सुंदर श्रावणी गीत के तारीफ़ के लिए।प्रकृति की सुंदरता को लेखनी द्वारा कितनी ख़ूबसूरती से आप उतार देती हैं,सादर नमन।

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  15. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी । आपकी मोहक व्याख्यात्मक टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
    सस्नेह।

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  16. घनन घनन घिर गया है बदरा... अति सुन्दर ।

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  17. बहुत सुन्दर रचना

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