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Friday 16 July 2021

भाव शून्य


 भाव शून्य


क्रूर सोच जगती में बढ़ती

पाप कर्म के मेघ सघन।

अपना ही सब संगम रचते

बने टनाटन कर नाहन ।।


भाव शून्य हैं पाथर जैसे

गर्म तवे ज्यों बूंद गिरी

संवेदन सब सूख गये हैं

मानवता अवसाद घिरी

कण्टक के तरुवर को सींचा

पुष्प महकता कब उपवन।।


मानव और पशु का अंतर 

जिनको समझ नहीं आता

उनसे आशा व्यर्थ पालना 

जिनको निज यश ही भाता

अर्थ नाम लिप्सा में उलझे

अहम समेटे हैं जो मन।।


दान पुण्य का खूब दिखावा

उजली चादर मन काला 

पीठ पलटते ताव दिखाते

हाथ फेरते झूठी माला

अंतस मैला वहीं जमा है

खूब रगड़ते है बस तन।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

29 comments:

  1. मानव और पशु का अंतर
    जिनको समझ नहीं आता
    उनसे आशा व्यर्थ पालना
    जिनको निज यश ही भाता
    अर्थ नाम लिप्सा में उलझे
    अहम समेटे हैं जो मन।।
    वाह!!!
    लाजवाब नवगीत कुसुम जी!निज यश चाहने वाले आत्ममुग्धा से कोई भी आशा करना बेकार है
    भावशून्य पत्थर दिल इंसानों की संवेदनहीनता एवं दिखावे के लिए दान पुण्य करने वालों के लिए खूब खरी खरी.....
    हमेशा की तरह उत्कृष्ट सृजन।
    🙏🙏🙏🙏

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    1. सुधाजी आपकी सारगर्भित टिप्पणी रचना को उर्जावान कर गई ।
      सस्नेह आभार आपका।
      सुंदर मनभावन प्रतिक्रिया।

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  2. Replies
    1. जी सही आंकलन ।
      सादर आभार आपका।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१७-०७-२०२१) को
    'भाव शून्य'(चर्चा अंक-४१२८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    Replies
    1. जी सादर आभार आपका, मैं मंच पर उपस्थिति देकर आई हूं ।
      रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए हृदय से आभार।

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  4. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  5. मानव और पशु का अंतर
    जिनको समझ नहीं आता
    उनसे आशा व्यर्थ पालना
    जिनको निज यश ही भाता
    अर्थ नाम लिप्सा में उलझे
    अहम समेटे हैं जो मन।।

    दान पुण्य का खूब दिखावा
    उजली चादर मन काला
    पीठ पलटते ताव दिखाते
    हाथ फेरते झूठी माला
    अंतस मैला वहीं जमा है
    खूब रगड़ते है बस तन।।
    बहुत ही उम्दा , लाजवाब, बेमिसाल और अति सुन्दर रचना जितनी तारीफ की जाए कम ही है!
    एकदम सच कहा आपने दान पुण्य का दिखावा आज के समय में कुछ ज्यादा ही चलन में है खासकर अमीरों में!
    मुंह में राम बगल में छूरी!
    और मानवता का तो कोई महत्व ही नहीं रहा !

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    1. विस्तृत व्याख्यात्मक टिप्पणी मनीषा जी।
      मन को राहत देती सी लेखन में उर्जा भरती सी।
      सस्नेह आभार आपका।

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  6. बहुत बहुत सुन्दर

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
      सादर।

      Delete
  7. मानव और पशु का अंतर

    जिनको समझ नहीं आता

    उनसे आशा व्यर्थ पालना

    जिनको निज यश ही भाता

    अर्थ नाम लिप्सा में उलझे

    अहम समेटे हैं जो मन।।
    उत्कृष्ट सृजन सखी।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी।
      उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  8. मानव और पशु का अंतर

    जिनको समझ नहीं आता

    उनसे आशा व्यर्थ पालना

    जिनको निज यश ही भाता--जी बहुत ही शानदार लेखन।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका। उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
      सादर।

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  9. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  10. भाव शून्यता कहते हुए खरी खरी लिख दी ।
    सटीक और सार्थक लेखन।

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    Replies
    1. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना प्रवाह मान हुई संगीता जी।
      सादर सस्नेह आभार आपका।

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  11. मुंह में राम और बगल में छुरी ही हमारा चरित्र हो गया है । अति सूक्ष्म अभिव्यक्ति । अति सुन्दर सृजन ।

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    1. बहुत गहनता से रचना पर दृष्टि आपकी ।
      सुंदर गहन प्रतिक्रिया।
      सस्नेह आभार आपका अमृता जी।

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  12. संवेदनाहीनता का वास्तविक चित्रण । हर बंध मानो स्वार्थपरता को आईना दिखाता हुआ । सार्थक सृजन।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी, रचना में निहित भावों पर आपकी विहंगम दृष्टि ने रचना को गतिमान किया ।
      सस्नेह।

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  13. दान पुण्य का खूब दिखावा
    उजली चादर मन काला
    पीठ पलटते ताव दिखाते
    हाथ फेरते झूठी माला

    सवेंदनहीन होते जा रहें है हम,मन पर प्रहार करती लाज़बाब सृजन कुसुम जी,सादर नमन

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई और लेखन को नव उर्जा मिली।
      सस्नेह।

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  14. This comment has been removed by the author.

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  15. मानव और पशु का अंतर

    जिनको समझ नहीं आता

    उनसे आशा व्यर्थ पालना

    जिनको निज यश ही भाता

    अर्थ नाम लिप्सा में उलझे

    अहम समेटे हैं जो मन।।

    ...यथार्थ का सटीक वर्णन किया है आपने,सच में आज दिखावे का जीवन ही,आम लोगों की पहली पसंद है,सार्थक सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी।
      व्याख्यात्मक टिप्पणी सदा ही रचना को प्रवाह देती है
      आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से मैं अभिभूत हूं।
      सस्नेह।

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