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Saturday 10 July 2021

मौसम


 मौसम 


गंध  लेकर पुष्प महके

आ गया मौसम सुहाना

बोल बोले भृंग भोले

कोकिला गाती तराना।।


कल्पना में तीर यमुना

श्याम का आनन सलौना

राधिका थी मानिनी सी

बांसुरी का इक खिलौना

साथ हरि सब नाचते थे

प्रीत का अनुपम खजाना ।।


भूल बैठे उस समय को

गागरी पर साज बजता

बालु के शीतल तटों पर

मंडली का कल्प सजता

चाँद की उजली चमक में

झूम उठता मन दिवाना।।


कंठ से सरगम मचलती

ताल लय सुर भी महकते

कुछ क्षणों में नव सृजन के

भाव मधुरस बन बहकते

आज मुखड़ा ढूँढता है

गीत अपना ही पुराना।।


कुसुम कोठारी "प्रज्ञा"

25 comments:

  1. Replies
    1. सादर आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  2. बहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना |हार्दिक शुभ कामनाएं |

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
      उत्साह वर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (12-07-2021 ) को 'मानसून जो अब तक दिल्ली नहीं पहुँचा है' (चर्चा अंक 4123) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    Replies
    1. चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी अवश्य।
      चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
      सादर।

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  4. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
      सादर।

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  5. कंठ से सरगम मचलती

    ताल लय सुर भी महकते

    कुछ क्षणों में नव सृजन के

    भाव मधुरस बन बहकते

    आज मुखड़ा ढूँढता है

    गीत अपना ही पुराना..सुंदर सटीक अभिव्यक्ति, सच में हम हमेशा बीते हुए जीवन की स्मृतियों मे ही डूबना चाहते हैं,पर कहां संभव है,सुंदर मोहक सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी।
      आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया मन में नव सृजन की प्रेरणा देता है।
      सस्नेह।

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  6. Replies
    1. सादर आभार आपका, भाव पक्ष पर विहंगम दृष्टि से रचना मुखरित हुई।
      सादर।

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  7. कंठ से सरगम मचलती

    ताल लय सुर भी महकते

    कुछ क्षणों में नव सृजन के

    भाव मधुरस बन बहकते

    आज मुखड़ा ढूँढता है

    गीत अपना ही पुराना।। वाह बेहतरीन सृजन सखी।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी आपकी मन भावन प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।
      सस्नेह।

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  8. कंठ से सरगम मचलती

    ताल लय सुर भी महकते

    कुछ क्षणों में नव सृजन के

    भाव मधुरस बन बहकते

    आज मुखड़ा ढूँढता है

    गीत अपना ही पुराना...वाह!बेहतरीन सृजन दी।
    सादर

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    Replies
    1. बहुत बहुत सा स्नेह आपकी स्नेह सिक्त प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई,और लेखन में नव उर्जा का संचार हुआ।
      स्नेह आभार।

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  9. अद्भुत ! लयबद्धता के साथ सुंदर शब्दशिल्प।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी ।
      उर्जा वान प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  10. भूल बैठे उस समय को

    गागरी पर साज बजता

    बालु के शीतल तटों पर

    मंडली का कल्प सजता
    पूरानी यादे को ताजा करती बेहतरीन कविता.

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  11. बहुत खूब , अच्छी रचना !

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    Replies
    1. जी सादर आभार आपका।
      उत्साह वर्धन हुआ।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  12. सुहाने मौसम की महक सबको महका देती है ...
    जीवन खिल्जता है मौसम सा ...
    बहुत लाजवाब ...

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    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      उत्साह वर्धन करती सार्थक प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  13. हाय! इस मधुरस भाव में सब-कुछ बहा जा रहा है । अनुपम कृति ।

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