Sunday, 28 June 2020

दीन हीन

दीन हीन

चुल्हा ठंड़ा उदर अनल है
दिवस गया अब रात हुई ।
आँखें जलती नींद नही अब
अंतड़ियां आहात हुई ।

सब पीड़ा से क्षुदा बड़ी है
घर भुमि परिवार छुड़ाया
माता पिता सखा सब छुटे
माटी का मोह भुलाया।
अपनी जड़ें उखाड़ी पौध
स्वाभिमान पर घात हुई।।

एकाकीपन शूल भेदता
हृदय टूट कर तार हुआ
सुधी लेने आयेगा कौन
जीवन ही अब भार हुआ
कष्ट हँसे जब पुष्प चुभोये
कंटक की बरसात हुई।

पर पीड़ा को देखें कैसे
अपनी ही न संभले जब।
जाने कब छुटकारा होगा
श्वास बँधी पिंजर से कब।
हड्डी ढ़ांचा दिखता तन
शाख सूख बिन पात हुई।।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Friday, 26 June 2020

चिठ्ठी (पाती श्याम की)

पाती आई प्रेम की
आज राधिका नाम ।
श्याम पिया को आयो संदेशो
हियो हुलसत जाए।
अधर छाई मुस्कान सलोनी
नैना नीर बहाए‌
एक क्षण भी चैन पड़त नाही
हियो उड़ी- उड़ी जाए।
जाय बसूं उस डगर
जासे नंद कुमार आए।
राधा जी मन आंगनें
नौबत बाजी जाए।
झनक-झनक पैजनिया खनके
कंगन गीत सुनाए।
धीर परत नही मन में
पांख होतो उड़ी जाए।
जाय बसे कान्हा के नैनन
सारा जग बिसराए ।

       कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 25 June 2020

क्षीर नीर सरिते

क्षीर नीर सरिते

दुग्ध धार सी बहती विमल शुभ्र  सरिते ,
उज्ज्वल कोमल निर्मल क्षीर नीर सरिते ।

कैसे तू राह बनाती कंटक कंकर पाथर में,
चलती बढती निरबाध निरंतर मस्ती में ।

कितने उपकार धरा पर, मानव पशु पाखी पर भी,
उदगम कहाँ कहाँ अंत नही सोचती पल को भी ,

बाँध ते तूझ को फिर भी वरदान विद्युत का देती,
सदा प्यासो को नीर और खेतो को जीवन देती ।

तू कर्त्तव्य की परिभाषा तू वरदायनी सरिते ,
नमन तूझे है जगजननी निर्झरी सारंग सरिते ।।

             कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday, 23 June 2020

घुमड़ती घटाएं

घुमड़ती घटाएं

नभ पर उमड़ी है घनमाला
कठ काली कजलोटी।
बरस रही है नभ से देखो 
बूंदें छोटी छोटी।

कभी उजाला कभी अँधेरा
नभ पर आँख मिचौली।
घटा डोलची लिए हवाएं
जैसे हो हमजोली।
सूरज कंबल ओढ़े दिखता
पोढ़ तवे की रोटी‌‌।।

दूब करे अवगाहन हर्षे
छुई-मुई सी सिमटी।
पात पात से मोती झरते
लता विटप से लिपटी।
मखमल जैसी वीरबहूटी
चौसर सजती गोटी।।

टप टप का संगीत गूंजता
सरि के जल में कल कल।
पाहन करते  स्नान देख लो
अपनी काया मल मल।
श्यामल बदरी मटक रही है
चढ़ पर्वत की चोटी।।

कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'।

Saturday, 20 June 2020

काया क्षण भंगुर

काया क्षण भंगुर

एक यवनिका गिरने को है।

जो सोने सा दिख रहा वो
अब माटी का ढेर होने को है।
लम्बे सफर पर चल पङा
नींद गहरी सोने को है।।

एक यवनिका गिरने को है।

जो समझा था सरुप अपना
वो सरुप अब खोने को है।
अब जल्दी से उस घर जाना
जहाँ देह नही सिर्फ़ रूह है।।

एक यवनि का गिरने को है।

डाली-डाली जो फुदक रहा
वो पंक्षी कितना भोला है ।
घात लगा  बैठा बहेलिया
पल किसी बिंध जाना है ।।

एक यवनिका गिरने को है।

जो था खोया रंगरलियों में
राग मोह में फसा हुवा ।
मेरा-मेरा के, मोहपास में बंधा हुवा।
आज भस्म अग्नि में होने को है।।

एक यवनिका गिरने को है।

           कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

क्षणभंगुर

जीवन क्षणभंगुर!
कुण्डलिया छंद।

जीवन जल की बूंद है,क्षण में जाए छूट।
यहां सिर्फ काया रहे , प्राण तार की टूट।
प्राण तार की टूट, धरा सब कुछ रह जाता।
जाए खाली हाथ ,बँधी मुठ्ठी तू आता।
कहे कुसुम ये बात , सदा कब रहता सावन ।
सफल बने हर काल, बने उत्साही जीवन ।।

कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'

Thursday, 18 June 2020

प्रतीक्षा (इंतजार की बेताबी)

इंतजार की बेताबी

अंधेरे से कर प्रीति
उजाले सब दे दिए,
अब न ढूंढ़ना
उजालों में हमें कभी।

हम मिलेंगे सुरमई
शाम  के   घेरों में ,
विरह का आलाप ना छेड़ना
इंतजार की बेताबी में कभी।

नयन बदरी भरे
छलक न जाऐ मायूसी में,
राहों पर निशां ना होंगे
मुड के न देखना कभी।

आहट पर न चौंकना
ना मौजूद होंगे हवाओं में,
अलविदा भी न कहना
शायद लौट आयें कभी।

       कुसुम कोठारी ।

महारानी लक्ष्मीबाई।

आज महारानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर ।
शब्दों के श्रृद्धा सुमन।

देश का गौरव
वीर शिरोधार्य थी।

द्रुत गति हवा सी
चलती तेज धार थी।

काटती शीश सहस्र
दुश्मनों का संहार थी।

आजादी का जूनून
हर ओर हुंकार थी।

वीरांगना अद्भुत
पवन अश्व सवार थी।

दुश्मनों को धूल चटाती
हिम्मत की पतवार थी।

मुंड खच काटती
दोधारी तलवार थी।

रूकी नही झुकी नही
तेज चपल वार थी।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Saturday, 13 June 2020

जीवन रण

समय बस बीता जाता ।

दुख सुख क्रीड़ा  समदृश्य
क्षण से छोटा नव,
पल में अतीत बन जाता ।
समय बस बीता जाता ।
ओस बिंदु सा फिसला पल में,
जीवन "रण "में डाल निरन्तर,
खुद कहीं छुप जाता ।
समय बस बीता जाता ।
जगती तल का कोई
योद्धा इसे रोक न पाता ।
समय बस बीता जाता ।
फिर क्यों ना जी लें,
मन गान गाता
समय बस बीता जाता ।
जो भी मिल रही नियामत
उसे बनालो हृदय गाथा ।
समय बस बीता जाता ।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Wednesday, 10 June 2020

चांद का गम

चाँद रोया  रातभर
शबनमी अश्क बहाए,
फूलों का दिल चाक हुवा
खुल के खिल न पाए।।

छुपाते रहे उन अश्को को
अपनी ही पंखुरियों तले ,
धूप ने फिर साजिश रची
उन को  समेटा उठा हौले‌ ।।

फिर अभिमान से इतराई बोली
यूं ही दम तोडता थककर दर्द।
और छुप जाता न जाने कहां
जाकर हौले हौले किसी गर्द।।

        कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Monday, 8 June 2020

बन रहे मन तू चंदन वन

बन रे मन तू चंदन वन
सौरभ का बन अंश-अंश।

कण-कण में सुगंध उसके
हवा-हवा महक जिसके
चढ़ भाल सजा नारायण के
पोर -पोर शीतल बनके।

बन रे मन तू चंदन वन।

भाव रहे निर्लिप्त सदा
मन में वास नीलकंठ
नागपाश में हो जकड़े
सुवास रहे सदा आकंठ।

बन रे मन तू चंदन वन ।

मौसम ले जाय पात यदा
रूप भी ना चितचोर सदा
पर तन की सुरभित आर्द्रता
रहे पीयूष बन साथ सदा।

बन रे मन तू चंदन वन ।

घिस-घिस खुशबू बन लहकूं
ताप संताप हरूं हर जन का
जलकर भी ऐसा महकूं,कहे
लो काठ जला है चंदन का।

बन रे मन तू चंदन वन ।।

     कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Sunday, 7 June 2020

जानकी का प्रारब्ध

जानकी का प्रारब्ध

कराह रहे वेदना के स्वर
अवसाद मंडित मन दिशायें ।
कैसी काली छाया गहरी
प्रारब्धों का जाल रचाये।।

फूलों जैसे चुन चुन करके
आदर्शों से जीवन पाला।
घड़ी पलक में बिखर गया सब
मारा जब अपनों ने भाला।
खेल नियति भी हार चुकी है
विडम्बनाएं चिह्न दिखायें।।

गूंजा एक निश्चल प्रतिकार
सिसका निसर्ग भीगे लोचन
संतप्त मन का हाहाकार
फूट गया बन दारुण क्रदंन्
आज जानकी विहल हृदय से
अवसर्ग मांगे क्षिति भिगोये ।।

हाय वेदना चरम शिखा थी
विश्रांति ही अंतिम आधार।
आलंबन वसुधा की छाती
लिए अंबक आँसू की धार।
पाहन सी फिर हुई अड़ोला
गोद उठा भू प्रीत निभाये।।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 4 June 2020

वृक्ष संज्ञान

वृक्ष का संज्ञान

माँ को काट दोगे!
माना जन्म दाता नही हूं,
पर पाला तुम्हे प्यार से
ठंडी छांव दी, प्राण वायु दी,
फल दिये,
पंछीओं को बसेरा दिया,
कलरव उनका सुन खुश होते सदा‌।
ठंडी बयार का झोंका
जो मूझसे लिपट कर आता
अंदर तक एक शीतलता भरता
तेरे पास के सभी प्रदुषण को
निज में शोषित करता
हां काट दो बुड्ढा भी हो गया हूं,
रुको!! क्यों काट रहे बताओगे?
लकडी चहिये हां तुम्हे भी पेट भरना है,
काटो पर एक शर्त है,
एक काटने से पहले
कम से कम दस लगाओगे।
ऐसी जगह कि फिर किसी
 विकास की भेट ना चढूं मै
समझ गये तो रखो कुल्हाड़ी,
पहले वृक्षारोपण करो
जब वो कोमल सा विकसित होने लगे
मुझे काटो मैं अंत अपना भी
तुम पर बलिदान करुंगा‌ ।
तुम्हारे और तुम्हारे नन्हों की
आजीविका बनूंगा।
और तुम मेरे नन्हों को संभालना
कल वो तुम्हारे वंशजों को जीवन देगें।
आज तुम गर नई पौध लगाओगे
कल तुम्हारे वंशज
फल ही नही जीवन भी पायेंगे।

      कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

एक पेड काटने वालों पहले दस पेड़ लगाओ फिर हाथ में आरी उठाओ।।

Wednesday, 3 June 2020

अरूणाभा

अरूणाभा

अलसाई सी भोर जागती
पाखी का कलरव फूटा।
अरुणाचल में लाली चमकी
रक्तिम रस मटका टूटा।

झर झर झरता सार धरा पर
पात द्रुम पर सनसनाए ।
आभा मंडित स्वर्ण ओढनी 
फूल डाली झिलमिलाए।
प्रभात रागिनी गुनगुनाती
शाख से निशिगंध छूटा ।।

सैकत कणिका पोढ़ तटों पर
ज्यों अवि सेके कनक सुता
तिमिर विदा ले यामिनी संग
किधर सोया क्षीण तनुता।
आदित्य की अनुपम छटा में
शर्वरी का मान खूटा ।।

पौध पहन केसरिया पगड़ी
ओस बूंद मोती भरते।
ताल फूलती कोमल कलियां
मधुप भी अभिसार करते ।
पेड़ों पर तरुणाई झलके
निखर गया उपवन बूटा।।

कुसुम कोठारी "प्रज्ञा"