दीन हीन
चुल्हा ठंड़ा उदर अनल है
दिवस गया अब रात हुई ।
आँखें जलती नींद नही अब
अंतड़ियां आहात हुई ।
सब पीड़ा से क्षुदा बड़ी है
घर भुमि परिवार छुड़ाया
माता पिता सखा सब छुटे
माटी का मोह भुलाया।
अपनी जड़ें उखाड़ी पौध
स्वाभिमान पर घात हुई।।
एकाकीपन शूल भेदता
हृदय टूट कर तार हुआ
सुधी लेने आयेगा कौन
जीवन ही अब भार हुआ
कष्ट हँसे जब पुष्प चुभोये
कंटक की बरसात हुई।
पर पीड़ा को देखें कैसे
अपनी ही न संभले जब।
जाने कब छुटकारा होगा
श्वास बँधी पिंजर से कब।
हड्डी ढ़ांचा दिखता तन
शाख सूख बिन पात हुई।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
चुल्हा ठंड़ा उदर अनल है
दिवस गया अब रात हुई ।
आँखें जलती नींद नही अब
अंतड़ियां आहात हुई ।
सब पीड़ा से क्षुदा बड़ी है
घर भुमि परिवार छुड़ाया
माता पिता सखा सब छुटे
माटी का मोह भुलाया।
अपनी जड़ें उखाड़ी पौध
स्वाभिमान पर घात हुई।।
एकाकीपन शूल भेदता
हृदय टूट कर तार हुआ
सुधी लेने आयेगा कौन
जीवन ही अब भार हुआ
कष्ट हँसे जब पुष्प चुभोये
कंटक की बरसात हुई।
पर पीड़ा को देखें कैसे
अपनी ही न संभले जब।
जाने कब छुटकारा होगा
श्वास बँधी पिंजर से कब।
हड्डी ढ़ांचा दिखता तन
शाख सूख बिन पात हुई।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'