समय बस बीता जाता ।
दुख सुख क्रीड़ा समदृश्य
क्षण से छोटा नव,
पल में अतीत बन जाता ।
समय बस बीता जाता ।
ओस बिंदु सा फिसला पल में,
जीवन "रण "में डाल निरन्तर,
खुद कहीं छुप जाता ।
समय बस बीता जाता ।
जगती तल का कोई
योद्धा इसे रोक न पाता ।
समय बस बीता जाता ।
फिर क्यों ना जी लें,
मन गान गाता
समय बस बीता जाता ।
जो भी मिल रही नियामत
उसे बनालो हृदय गाथा ।
समय बस बीता जाता ।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
दुख सुख क्रीड़ा समदृश्य
क्षण से छोटा नव,
पल में अतीत बन जाता ।
समय बस बीता जाता ।
ओस बिंदु सा फिसला पल में,
जीवन "रण "में डाल निरन्तर,
खुद कहीं छुप जाता ।
समय बस बीता जाता ।
जगती तल का कोई
योद्धा इसे रोक न पाता ।
समय बस बीता जाता ।
फिर क्यों ना जी लें,
मन गान गाता
समय बस बीता जाता ।
जो भी मिल रही नियामत
उसे बनालो हृदय गाथा ।
समय बस बीता जाता ।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सुन्दर नवगीत।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(१४- 0६-२०२०) को शब्द-सृजन- २५ 'रण ' (चर्चा अंक-३७३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteक्षण से छोटा नव,
ReplyDeleteपल में अतीत बन जाता ।
समय बस बीता जाता ।
ओस बिंदु सा फिसला पल में,
जीवन "रण "में डाल निरन्तर,
खुद कहीं छुप जाता ।
वाह!!!!
बहुत सुन्दर सटीक लाजवाब सृजन।
समय के माहात्म्य को शब्दों में समेटती सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर नमन आदरणीया दीदी।
समय की अपनी गति है और जैसा हो, जो भी हो कट जाता है ... गुज़र जाता है ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ...