जब पेड़ों पर कोयल काली
कुहुक-कुहुक कर गाती थी,
डाली-डाली डोल पपीहा
पी कहां की राग सुनाता था,
घनघोर घटा घिर आती थी
और मोर नाचने आते थे ,
जब गीता श्यामा की शादी में
सारा गांव नाचता गाता था ,
कहीं नन्हे के जन्मोत्सव पर
ढोल बधाई बजती थी ,
खुशियां सांझे की होती थी
गम में हर आंख भी रोती थी,
कहां गया वो सादा जीवन
कहां गये वो सरल स्वभाव ,
सब "शहरों" की और भागते
नींद ओर चैन गंवाते ,
या वापस आते समय
थोडा शहर साथ ले आते ,
सब भूली बिसरी बातें हैं
और यादों के उलझे धागे हैं।
कुसुम कोठारी ।
कुहुक-कुहुक कर गाती थी,
डाली-डाली डोल पपीहा
पी कहां की राग सुनाता था,
घनघोर घटा घिर आती थी
और मोर नाचने आते थे ,
जब गीता श्यामा की शादी में
सारा गांव नाचता गाता था ,
कहीं नन्हे के जन्मोत्सव पर
ढोल बधाई बजती थी ,
खुशियां सांझे की होती थी
गम में हर आंख भी रोती थी,
कहां गया वो सादा जीवन
कहां गये वो सरल स्वभाव ,
सब "शहरों" की और भागते
नींद ओर चैन गंवाते ,
या वापस आते समय
थोडा शहर साथ ले आते ,
सब भूली बिसरी बातें हैं
और यादों के उलझे धागे हैं।
कुसुम कोठारी ।