Friday, 1 November 2019

झील का पानी

ये शांत झील ठहरा पानी
गौर से सुनो कह रहा कहानी।

बर्फ जब चारों तरफ सोई
धूप के गले मिल फूट-फूट रोई
मेरा जन्म हुवा मिटने की पीडा से
धार बन बह चला रोते-रोते
पत्थरों पर सर पटकते,रुहानी
मेरी कहानी......

मैं ऊंचे पथरीले "सोपान" से उतरा
कितनी चोट सही पीडा झेली
रुका नही चलता रहा निरन्तर
मैं रुका  गहराई ने मुझे थामा
सुननी थी उसे मेरी जुबानी,
मेरी कहानी......

कभी कंकर लगा हृदय स्थल पर
मैं विस्मित! कांप गया अंदर तक
कभी आवागमन करती कश्तियां
पंछी  कलरव करते मुझ में
और हवा आडोलित करती, सुहानी
मेरी कहानी.......

किनारों पर मेरे लगते जलसे
हंसते खेलते आनंदित बडे,बच्चे
मैं खुश होता उन्हें देख-देख पर,
पीड़ा से भर जाता जब कर जाते 
 प्रदुषित मुझे, वही पुरानी
मेरी कहानी.......

ये शांत झील ठहरा पानी
गौर से सुनो कह रहा कहानी।
          कुसुम कोठारी।

11 comments:

  1. नदी, झील, तालाब ही क्या, सागर की भी है यही व्यथा !

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  2. हंसते खेलते आनंदित बडे,बच्चे
    मैं खुश होता उन्हें देख-देख पर,
    पीड़ा से भर जाता जब कर जाते
    प्रदुषित मुझे, वही पुरानी
    मेरी कहानी.......
    जल जीवन का आधार है...उसी जल की व्यथा पर मार्मिक और विचारणीय सृजन ।

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  3. मैं झील का पानी आनंदित होता बड़े बच्चे हंसते खेलते देखकर वास्तव में तब पीड़ा होती जब मुझे ही प्रदूषित कर जाते हम सब को यह समझना होगा प्रकृति जो हमारी जीवन दायिनी है उसे प्रदूषित ना करें

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(०३ -११ -२०१९ ) को "कुलीन तंत्र की ओर बढ़ता भारत "(चर्चा अंक -३५०८ ) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  5. कभी कंकर लगा हृदय स्थल पर
    मैं विस्मित! कांप गया अंदर तक
    कभी आवागमन करती कश्तियां
    पंछी कलरव करते मुझ में
    और हवा आडोलित करती, सुहानी.. बेहद हृदयस्पर्शी रचना

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  6. पीड़ा से भर जाता जब कर जाते
    प्रदुषित मुझे, वही पुरानी
    मेरी कहानी.......
    रचना के माध्यम से आपने जीवन के रहस्य का बखूबी चित्रण किया है । नेक मनुष्य अनेक कष्ट सहते हैं, फिर भी अपना दर्द भूल कर दूसरों की खुशी देख आनंदित होते रहते हैं, वे अपने हृदयस्थल में उन्हें आश्रय देते हैं, लेकिन सभी उसके जैसे निश्छल तो नहीं होते न..
    इनमें से अनेक ऐसे हैं कि वे अपने शुभचिंतक को ही सदैव कष्ट देते हैं, कलंकित करते हैंं, अपने स्वार्थपूर्ण विचारों से उसे प्रदूषण भी करते हैं, उसकी नेकी , उसके त्याग और तप का कोई मोल नहीं समझते वे।
    प्रणाम दी।

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  7. आज सारे जलाशयों की यही पीड़ा हैं ,इतनी मार्मिक रचना पढ़कर भी इन जलाशयों के प्रति हम सजग नहीं हुए तो हमारा विनास निश्चित हैं ,बारम्बार नमस्कार आपको कुसुम जी

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  8. कभी कंकर लगा हृदय स्थल पर
    मैं विस्मित! कांप गया अंदर तक
    कभी आवागमन करती कश्तियां
    पंछी कलरव करते मुझ में
    और हवा आडोलित करती, सुहानी

    वाह।बहुत बारीकी से अपने जलाशय की जुबान बयान की हैं।
    बधाई।

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  9. किनारों पर मेरे लगते जलसे
    हंसते खेलते आनंदित बडे,बच्चे
    मैं खुश होता उन्हें देख-देख पर,
    पीड़ा से भर जाता जब कर जाते
    प्रदुषित मुझे, वही पुरानी
    कविता के माध्यम से झील जलाशयों के प्रदूषण पर विचारोत्तेजक प्रसंग.... बहुत ही सुन्दर मनभावनी रचना
    वाह!!!

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  10. बर्फ जब चारों तरफ सोई
    धूप के गले मिल फूट-फूट रोई


    ufffff....kitnaa gehraa sochaa aapne....aahaa....abhi to in lines me hi atkiii hun

    mere ghar ke aagan me barf abhi bhi jamii he....dhoop ke intzaar me smete saari nmii khudi me.....jab ye dhoop se mil ke royegi...aapki ye lines bahut yaad aayengi


    bahut hi khoobsurat rchnaa ke liye bdhaayi

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