Wednesday, 6 November 2019

हां यूं ही कविता बनती है।

हां यूं ही कविता बनती है।

.   गुलाब की पंखुड़ियों सा
        कोई कोमल भाव
     मेधा पुर में प्रवेश कर
अभिव्यक्ति रूपी मार्तंड की
     पहली मुखरित किरण
              के स्पर्श से
            मन सरोवर में
      सरोज सा खिल जाता है
      जब कोरे पन्ने पर अंकित
        होने  को आतुर शब्द
   अपने आभूषणों के साथ
      आ विराजित होते हैं
  तब रचना सुंदर रेशमी बाना 
         पहन इठलाती है।
    हां यूं ही कविता बनती है।

             कुसुम कोठारी।

9 comments:

  1. प्रसवपीड़ा के बाद जो जन्म लेती है वो कविता होती है
    फिर इसमें भाव आते है, रस बनते है
    प्रेम, पीड़ा, मार्मिक, सृंगार, हास्य, रौद्र, वीर इत्यादि।

    सुंदर रचना।

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  2. अदभुत ,कविता के बारे में इतना ज्ञान तो नहीं मुझे पर देखती हूँ आपकी रचनाओं में शब्दों की एक अलग ही साजों- सज्जा होती हैं जो दिल तक पहुँचती हैं ,सादर नमन कुसुम जी

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-11-2019) को "भागती सी जिन्दगी" (चर्चा अंक- 3513)" पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं….
    -अनीता लागुरी 'अनु'

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  5. अद्भुत.. कविता के सृजन से पूर्व के भाव और कविता के जन्म का गहन विवेचन । बेहद सुन्दर ।

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  6. जब कोरे पन्ने पर अंकित
    होने को आतुर शब्द
    अपने आभूषणों के साथ
    आ विराजित होते हैं
    तब रचना सुंदर रेशमी बाना
    पहन इठलाती है।
    हां यूं ही कविता बनती है। बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌

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  7. आपकी कविताएँ,बस यूँ ही नही पढता हूँ । भावों को मुखर बनाकर आपकी रचनाएं दिल को छू जाती हैं । बहुत-बहुत बधाई इस सुंदर अभिव्यक्ति हेतु। सदैव आपकी कलम चलती रहे।

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  8. बहुत खूब ...
    भावनाओं की चासनी में पंखुड़ियों से लिखी रचना ... शायद इसी को रचना कहते हैं ...

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