Friday, 8 November 2019

नशेमन इख़लास

नशेमन इख़लास

ना मंजिल ना आशियाना पाया
वो  यायावर सा  भटक गया

तिनका-तिनका जोडा कितना
नशेमन इख़लास का उजड़ गया

वह सुबह का भटका कारवाँ से
अब तलक सभी से बिछड़ गया

सीया एहतियात जो कोर-कोर
क्यूं कच्चे धागे सा उधड़ गया।।

         कुसुम कोठारी।

14 comments:

  1. हृदयस्पर्शी प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी ‌

      Delete
  2. कुछ चीजों के रफ़ू भी नहीं होता...ये दुख और भी ज्यादा है।
    मन को छूने वाली रचना।

    मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है👉👉 जागृत आँख 

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सादर आभार।
      सही कहा आपने कयी दफ़ा बिगड़ी बात रहीम जी का सटीक दोहा बन जाती है।
      रहीमन बिगड़े दूध को मरे न माखन होय।
      सादर।।

      Delete
  3. Replies
    1. बहुत बहुत आभार सखी।
      आपको ब्लाग पर देख मन हर्षित हुवा।
      सस्नेह।

      Delete
  4. वाह बेहद खूबसूरत

    ReplyDelete
  5. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10 -11-2019) को "आज रामजी लौटे हैं घर" (चर्चा अंक- 3515) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं….
    **********************
    रवीन्द्र सिंह यादव

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सादर आभार।
      मैं जरूर प्रयासरत रहुंगी चर्चा मंच पर आने के लिए ।
      सादर।

      Delete
  6. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  7. जी सादर आभार।
    यथा संभव उपस्थित होने का प्रयास रहता है ।
    सादर।

    ReplyDelete
  8. बहुत खूब ...
    कई अनजाने एहसास पिरोये हैं इस रचना में ... कई सच्चाईयां जिनमें खो जाता है इंसान ...

    ReplyDelete
  9. सीया एहतियात जो कोर-कोर
    क्यूं कच्चे धागे सा उधड़ गया।।
    जीवन के यथार्थ को मर्मस्पर्शी शब्दों में पिरोया है आपने..बेहतरीन सृजन ।

    ReplyDelete
  10. सीया एहतियात जो कोर-कोर
    क्यूं कच्चे धागे सा उधड़ गया।।
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर... हृदयस्पर्शी सृजन।

    ReplyDelete