नौनिहाल कहाँ खो रहे हैं
कहाँ गया वो भोला बचपन
कभी किलकारियां गूंजा करती थी
और अब चुपचाप सा बचपन
पहले मासूम हुवा करता था
आज प्रतिस्पर्धा में डूबा बचपन
कहीं बङों की भीड़ में खोता
बड़ी-बड़ी सीख में उलझा बचपन
बिना खेले ही बीत रहा
आज के बच्चों का बचपन।
कुसुम कोठारी ।
ये भाव हमने जगाया है बच्चों में ...
ReplyDeleteशायद जो हम न कर सके वो चाहते हैं बच्चे करें ... इसीलिए ...
बाल दिवस पर एक सोच ... जो जरूरी है ...
जी सादर आभार नासवा जी आपने सही कहा ये सब हमारे कृत्यो की परछाई है।
Deleteव्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली। ढेर सा आभार।
सही कहा कुसुम दी कि आज के बच्चों का बचपन कहीं खो गया हैं। हम चाह कर भी उसे वापस नहीं ला सकते।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार ज्योति बहन सुंदर सार्थक समर्थन देती प्रतिक्रिया के लिए ।
Deleteसस्नेह।
आज प्रतिस्पर्धा में डूबा बचपन
ReplyDeleteकहीं बङों की भीड़ में खोता
बड़ी-बड़ी सीख में उलझा बचपन..
बाल दिवस पर जागरूकता का संदेश देती अति सुन्दर रचना । प्रतिस्पर्धात्मक युग में बचपन खो गया है कहीं.., गहन चिन्तन ।
बहुत बहुत आभार मीना जी ।
Deleteआपकी टिप्पणी सदा मन को गहरे सुकून से भर देती है साथ ही उर्जा प्रदान करती है।
सस्नेह।
बहुत सुंदर और सार्थक सृजन 👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-11-2019 ) को "नौनिहाल कहाँ खो रहे हैं " (चर्चा अंक- 3520) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
-अनीता लागुरी 'अनु'
बहुत सा आभार प्रिय अनु जी चर्चा मंच पर मेरी रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteमैं अवश्य आऊंगी।
सस्नेह आभार ।
रोये तो मोबाईल पकड़ा देते है या tv चला कर दे देते हैं, उम्र से पहले जवान कर देते हैं।
ReplyDelete4थी जमात से हम कॉम्पिटिशन का दबाव डाल देते हैं
खेलने के लिए पिलंग से नीचे ना उतने देते...मिट्टी लग जायेगी, कपड़े गन्दे हो जाएंगे।
हम ही इनको खेलों से दूर कर रहे हैं, बच्चपन के जंगलीपन से अवगत नहीं होने देते।
और फिर हम ही कहते फिरते हैं खो गया बच्चपन।
सटीक रचना।
मेरी कुछ पंक्तियां आपकी नज़र 👉👉 ख़ाका
सही कहा आपने रोहितास जी ये सब अभिभावकों का ही दायित्व है बच्चे तो कच्ची मिट्टी होते हैं ।
ReplyDeleteसार्थक प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से आभार।