बरस ऋतु सावन की आई
अल्हड़ शरमाती ,इठलाती ,
मेंहदी रचे हाथों में
बरसता सावन भर
मुख पर उड़ाती ,
हाथों में चेहरा छुपाती
हटे हाथ , निकला
ओस में भीगा गुलाब ।
संग सखियों के जाना
पाँव में थिरकन , हृदय है झंकृत
तार-तार मन वीणा बाजत ,
रोम-रोम हरियाली छाई
सरस ऋतु सावन की आई ।
डाल-डाल पर झुले सज गये ,
आ सखी पेग बढ़ाएं ,
रुनझुन पायलिया झनकाएं
छनक-छनक गाए ,
गीत सुनाए, जिया भरमाए
नींद चुराए ।
चारों ओर छटा मनोहर छाई
बरस ऋतु सावन की आई ।
कुसुम कोठरी ।
अल्हड़ शरमाती ,इठलाती ,
मेंहदी रचे हाथों में
बरसता सावन भर
मुख पर उड़ाती ,
हाथों में चेहरा छुपाती
हटे हाथ , निकला
ओस में भीगा गुलाब ।
संग सखियों के जाना
पाँव में थिरकन , हृदय है झंकृत
तार-तार मन वीणा बाजत ,
रोम-रोम हरियाली छाई
सरस ऋतु सावन की आई ।
डाल-डाल पर झुले सज गये ,
आ सखी पेग बढ़ाएं ,
रुनझुन पायलिया झनकाएं
छनक-छनक गाए ,
गीत सुनाए, जिया भरमाए
नींद चुराए ।
चारों ओर छटा मनोहर छाई
बरस ऋतु सावन की आई ।
कुसुम कोठरी ।
चारों ओर छटा मनोहर छाई
ReplyDeleteबरस ऋतु सावन की आई ।
बेहद खूबसूरत रचना सखी
सस्नेह आभार आपका सखी।
Deleteवाह दी...बरखा के रुनझुनी पाँव की झंकार बादल़ो.से फूट पड़े मेघ मल्हार।
ReplyDeleteवाह क्या बात है श्वेता बहुत सुंदर बंध।
Deleteसस्नेह आभार।