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Wednesday, 24 July 2019

बरस ऋतु सावन की आई

बरस ऋतु सावन की आई

अल्हड़ शरमाती ,इठलाती ,
मेंहदी रचे हाथों में
बरसता सावन भर
मुख पर उड़ाती ,
हाथों में चेहरा छुपाती
हटे हाथ , निकला
ओस में भीगा गुलाब ।
संग सखियों के जाना
पाँव में थिरकन , हृदय है झंकृत
तार-तार मन वीणा बाजत ,
रोम-रोम हरियाली छाई
सरस ऋतु सावन की आई ।
डाल-डाल पर झुले सज गये ,
आ सखी पेग बढ़ाएं ,
रुनझुन पायलिया झनकाएं
छनक-छनक गाए ,
गीत सुनाए, जिया भरमाए
नींद चुराए ।
चारों ओर छटा मनोहर छाई
बरस ऋतु सावन की आई ।

         कुसुम कोठरी ।

4 comments:

  1. चारों ओर छटा मनोहर छाई
    बरस ऋतु सावन की आई ।
    बेहद खूबसूरत रचना सखी

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    1. सस्नेह आभार आपका सखी।

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  2. वाह दी...बरखा के रुनझुनी पाँव की झंकार बादल़ो.से फूट पड़े मेघ मल्हार।

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    1. वाह क्या बात है श्वेता बहुत सुंदर बंध।
      सस्नेह आभार।

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