क्या जीता क्या हारा
फतह तो किले किये जाते हैं
राहों को कौन जीत पाया भला
करना हो कुछ भी हासिल
कुछ खोना कुछ पाना हो
चाहे हो सिकंदर कहीं का
इन्ही राहों से जाना हो
कोई हार के,
दिल जीत गया विजेताओं के
कोई जीत के,
हार गया सम्मान आंखों से
क्या हारा क्या जीता का
हिसाब बहुत ही टेढ़ा है
जीत हार का मान दंड
सदा अलग सा होता है
सभी जीत का जश्न मनाते
हार गये तो रोता है
नादान ए इंसान हार जीत में
कितने रिश्ते खोता है
अपना दिल हार के देखो
संसार तुम पर हारेगा
महावीर ने जग हार कर
सिद्धत्व को जीत लिया
जग में कितने जीतने वालों ने
अपना मान ही हार दिया
तो क्या जीता क्या हारा
आंकलन हो बस खरा खरा।
कुसुम कोठारी।
फतह तो किले किये जाते हैं
राहों को कौन जीत पाया भला
करना हो कुछ भी हासिल
कुछ खोना कुछ पाना हो
चाहे हो सिकंदर कहीं का
इन्ही राहों से जाना हो
कोई हार के,
दिल जीत गया विजेताओं के
कोई जीत के,
हार गया सम्मान आंखों से
क्या हारा क्या जीता का
हिसाब बहुत ही टेढ़ा है
जीत हार का मान दंड
सदा अलग सा होता है
सभी जीत का जश्न मनाते
हार गये तो रोता है
नादान ए इंसान हार जीत में
कितने रिश्ते खोता है
अपना दिल हार के देखो
संसार तुम पर हारेगा
महावीर ने जग हार कर
सिद्धत्व को जीत लिया
जग में कितने जीतने वालों ने
अपना मान ही हार दिया
तो क्या जीता क्या हारा
आंकलन हो बस खरा खरा।
कुसुम कोठारी।
महावीर ने जग हार कर
ReplyDeleteसिद्धत्व को जीत लिया
जग में कितने जीतने वालों ने
अपना मान ही हार दिया
तो क्या जीता क्या हारा
आंकलन हो बस खरा खरा। सुंदर और सार्थक रचना सखी 👌
बहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है ।
Deleteबेहतरीन सृजन दी जी 👌
ReplyDeleteसादर
ढेर सा स्नेह बहना।
Deleteसस्नेह आभार बहुत सा ।
जी सादर आभार आपका अनुग्रहित हूं सर मैं।
ReplyDeleteसादर
वाह!!कुसुम जी ,बहुत सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteढेर सा स्नेह और खूब सा आभार शुभा जी ।
Deleteफतह तो किले किये जाते हैं
ReplyDeleteराहों को कौन जीत पाया भला...
सत्य और अनुभव से कही गयी बात है। मन की राह की यह अभिव्यक्ति अच्छी लगी।
बहुत बहुत आभार पुरुषोत्तम जी आपकी समर्थन देती प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई ।
Deleteसादर।
विश्वकप में मिली हार पर सांत्वना देती सुंदर रचना..
ReplyDeleteढेर सा स्नेह आभार अनिता जी बस ऐसे ही लिखी थी कुछ संयोग समझिये कि ऐसा मेल मिला।
Deleteब्लॉग पर आपको देख आतंरिक खुशी हुई स्नेह बधाये रखें।
सस्नेह।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार पांच लिंकों के लिए चयनित होना सदा मनभावन होता है ।
Deleteबहुत सुन्दर और प्रेरक रचना कुसुम जी !
ReplyDeleteजी बहुत सा स्नेह आभार मीना जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteजीत हार का मान दंड
ReplyDeleteसदा अलग सा होता है
सभी जीत का जश्न मनाते
हार गये तो रोता है
अति सुंदर
बहुत बहुत आभार आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया का।
Deleteसादर।
वाहः
ReplyDeleteशानदार लेखन
सादर आभार दी आपकी सराहना सदा मनभावन ।
Deleteसादर।
जीत हार का मान दंड
ReplyDeleteसदा अलग सा होता है
सभी जीत का जश्न मनाते
हार गये तो रोता है
नादान ए इंसान हार जीत में
कितने रिश्ते खोता है
बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।
बहुत बहुत आभार ज्योति बहन सराहनीय प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।
Deleteसस्नेह ।
जीत हार का मान दंड
ReplyDeleteसदा अलग सा होता है
सभी जीत का जश्न मनाते
हार गये तो रोता है
वाह!!!!
क्या बात... बहुत लाजवाब...।