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Tuesday, 16 July 2019

धरा का स्वयंवर

धरा का स्वयंवर

धरा ने आज देखो
स्वयंवर है रच्यो ।

चंद्रमल्लिका हार
सुशोभित सज्यो।

नव पल्लव नर्म उर
चूनर धानी रंग्यो।

सरस गुलाबी गात
आंख अंजन डार् यो।

मेघ हुलकत दौड़े
ज्यों नौबत बाज्यो ।

हेत सागर लहरायो
हिय उमंग भर् यो।

बूंदों संग संदेशो आयो
वसुधा धीर धर् यो।

मही के अनंग जग्यो
हर्ष अपार भय्यो ।

हवा भी हो हर्षित
पातो संग रास रच्यो ।

क्षितिज के उस पार
मिलन को नेह धर् यो ।

 कुसुम कोठारी ।

13 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 18 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 17 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आपका सांध्य दैनिक.,...में मेरी रचना शामिल करने हेतु।
      सादर ।

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  3. बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌

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  4. अति सुन्दर रचना प्रिय कुसुम

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  5. अत्यंत सुन्दर ..मनमोहक और अद्भुत सृजन !!

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    1. बहुत सा आभार मीना जी आपकी प्रतिक्रिया सदा हर्षित करती है।

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  6. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, कुसुम दी।

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    1. सरनेम भरा आभार ज्योति बहन ।

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  7. बेहतरीन सृजन दी जी
    सादर

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