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Monday, 19 December 2022

शंख रव (महामंजीर सवैया)


 महामंजीर सवैया, मापनी:-112 112 112 112, 112 112 112 112 12.


शंख रव

कलियाँ महकी महकी खिलती, अब वास सुगंधित भी चहुँ ओर है।

जब स्नान करे किरणें सर में, लगती निखरी नव सुंदर भोर है।

बहता रव शंख दिशा दस में, रतनार हुआ नभ का हर कोर है।

मुरली बजती जब मोहन की, खुश होकर नाच उठे मन मोर है।।


स्वरचित 

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'।

17 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
      सस्नेह।

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  2. बहुत ही सुन्दर सवैया सखी,कृपया मापनी सुधार लें।आप शायद ग़लती से 'सलगा ११२' की जगह 'यमाता १२२
    की मापनी दे बैठी है। सादर

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    1. जी सखी मापनी लिखने में असावधानी वस
      त्रुटि हो गई , थी अब सुधार लिया है।
      आपका हृदय से आभार ध्यान दिलाने के लिए।
      सस्नेह।

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  3. मुरली बजती जब मोहन की, खुश होकर नाच उठे मन मोर है।
    बहुत सुन्दर ..

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    1. जी हृदय से आभार आपका कविता जी सार्थक टिप्पणी से सृजन को सार्थकता मिली।
      सस्नेह।

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  4. बहुत सुंदर सराहनीय सवैया ।

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    1. सस्नेह आभार आपका जिज्ञासा जी।

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  5. सुबह का सुन्दर चित्र . मेरे विचार से कुछ मात्राएं इधर उधर हैं .

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  6. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
    चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
    सादर।

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  7. जी हृदय से आभार आपका गिरिजा जी,
    कहीं त्रुटि दिख रही हो तो बताएं कृपया आप, मुझे नहीं समझ आ रही, हां पहले मापनी गलत लिखी गई थी वो भी काफी समय पहले सुधार ली है। फिर भी कुछ होतो बताएं।
    सादर सस्नेह।

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  8. वर्णिक मापनी से सवैया छन्द रचने की विधि के संग अद्भुत रचना.......वाह... कुसुम जी, बहुत पहले कहीं पढ़ा था , आपसे शेयर कर रही हूं...

    मनिका मनिका प्रभु राम बसे सियराम जपो भव ताप हरे सदा ।
    सुख में दुख में सम भाव रहे प्रभु राम कहे अनुताप टरे सदा ।
    जन जीवन के प्रिय प्रान,अधार बनों तन का रख मान परे सदा ।
    उठ बैठ कहो नित राम विराम करो कटुता अभिमान झरे सदा ।

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    1. सस्नेह आभार आपका अलकनंदा जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना को नवीन ऊर्जा मिली,
      साथ ही आपके द्वारा संकलित सुंदर भाव प्रवण सवैया मन मोह गया।
      सस्नेह

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  9. वाह!!!
    अत्यंत मनमोहक
    लाजवाब ।

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    1. सस्नेह आभार आपका प्रिय सुधा जी, सृजन सार्थक हुआ।

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