महामंजीर सवैया, मापनी:-112 112 112 112, 112 112 112 112 12.
शंख रव
कलियाँ महकी महकी खिलती, अब वास सुगंधित भी चहुँ ओर है।
जब स्नान करे किरणें सर में, लगती निखरी नव सुंदर भोर है।
बहता रव शंख दिशा दस में, रतनार हुआ नभ का हर कोर है।
मुरली बजती जब मोहन की, खुश होकर नाच उठे मन मोर है।।
स्वरचित
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteसस्नेह।
बहुत ही सुन्दर सवैया सखी,कृपया मापनी सुधार लें।आप शायद ग़लती से 'सलगा ११२' की जगह 'यमाता १२२
ReplyDeleteकी मापनी दे बैठी है। सादर
जी सखी मापनी लिखने में असावधानी वस
Deleteत्रुटि हो गई , थी अब सुधार लिया है।
आपका हृदय से आभार ध्यान दिलाने के लिए।
सस्नेह।
मुरली बजती जब मोहन की, खुश होकर नाच उठे मन मोर है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..
जी हृदय से आभार आपका कविता जी सार्थक टिप्पणी से सृजन को सार्थकता मिली।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर सराहनीय सवैया ।
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका जिज्ञासा जी।
Deleteसुबह का सुन्दर चित्र . मेरे विचार से कुछ मात्राएं इधर उधर हैं .
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
ReplyDeleteचर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
सादर।
जी हृदय से आभार आपका गिरिजा जी,
ReplyDeleteकहीं त्रुटि दिख रही हो तो बताएं कृपया आप, मुझे नहीं समझ आ रही, हां पहले मापनी गलत लिखी गई थी वो भी काफी समय पहले सुधार ली है। फिर भी कुछ होतो बताएं।
सादर सस्नेह।
अति सुंदर
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका।
Deleteवर्णिक मापनी से सवैया छन्द रचने की विधि के संग अद्भुत रचना.......वाह... कुसुम जी, बहुत पहले कहीं पढ़ा था , आपसे शेयर कर रही हूं...
ReplyDeleteमनिका मनिका प्रभु राम बसे सियराम जपो भव ताप हरे सदा ।
सुख में दुख में सम भाव रहे प्रभु राम कहे अनुताप टरे सदा ।
जन जीवन के प्रिय प्रान,अधार बनों तन का रख मान परे सदा ।
उठ बैठ कहो नित राम विराम करो कटुता अभिमान झरे सदा ।
सस्नेह आभार आपका अलकनंदा जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना को नवीन ऊर्जा मिली,
Deleteसाथ ही आपके द्वारा संकलित सुंदर भाव प्रवण सवैया मन मोह गया।
सस्नेह
वाह!!!
ReplyDeleteअत्यंत मनमोहक
लाजवाब ।
सस्नेह आभार आपका प्रिय सुधा जी, सृजन सार्थक हुआ।
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