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Sunday 13 November 2022

भोला बचपन


 बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌷


भोला सच्चा बचपन


ख़्वाबों के दयार पर एक झुरमुट है यादों का।

एक मासूम परिंदा फुदकता यहाँ वहाँ यादों का।


सतरंगी धागों का रेशमी इंद्रधनुषी शामियाना।

जिसके तले मस्ती में झूमता एक भोला बचपन ।


सपने थे सुहाने उस परी लोक की सैर के।

वो जादुई रंगीन परियाँ जो डोलती इधर-उधर।


मन उडता था आसमानों के पार कहीं दूर ।

एक झूठा सच धरती आसमान है मिलते दूर ।


संसार छोटा सा लगता ख़्याली घोडे का था सफ़र। 

एक रात के बादशाह बनते रहे सँवर-सँवर ।


दादी की कहानियों में नानी थी चाँद के अंदर 

सच की नानी का चरखा ढूंढ़ते नाना के घर ।


वो झूठ भी था सब तो कितना सच्चा था बचपन।

ख़्वाबों के दयार पर एक मासूम सा बचपन।


एक इंद्रधनुषी स्वप्निल रंगीला  बचपन।। 


              कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

21 comments:

  1. Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      उत्साह वर्धन हुआ।
      सादर।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (१४-११-२०२२ ) को 'भगीरथ- सी पीर है, अब तो दपेट दो तुम'(चर्चा अंक -४६११) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. हृदय से आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
      सादर सस्नेह।

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  3. मन उडता था आसमानों के पार कहीं दूर ।

    एक झूठा सच धरती आसमान है मिलते दूर ।
    बहुत ही सुंदर, सार्थक प्रस्तुति ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी।
      उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  4. वाह! भावपूर्ण रचना

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    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय उत्साह वर्धन के लिए ।
      सादर।

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  5. अत्यंत भावपूर्ण रचना

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    Replies
    1. बहुत आभार आपका सखी रचना को स्नेह देने के लिए।
      सस्नेह।

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  6. न जाने कितनी भूली-बिसरी बातें याद आने लगी हैं भोले बचपन की। सुन्दर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    1. मनभावन, स्नेह सिक्त शब्दों से उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया ने लेखन को संबल दिया।
      सस्नेह आभार आपका।

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  7. मन उडता था आसमानों के पार कहीं दूर ।

    एक झूठा सच धरती आसमान है मिलते दूर ।वो झूठ भी कितने सच्चे और अच्छे थे
    बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन
    वाह!!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी ।
      स्नेह सिक्त शब्दों से उत्साह वर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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  8. बेहद खूबसूरत रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका भारती जी रचना को स्नेह मिला।
      सस्नेह ‌

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  9. दादी की कहानियों में नानी थी चाँद के अंदर
    सच की नानी का चरखा ढूंढ़ते नाना के घर ।

    वो झूठ भी था सब तो कितना सच्चा था बचपन।
    ख़्वाबों के दयार पर एक मासूम सा बचपन।
    वाह !! बचपन की मधुरिम स्मृतियों को समेटे अत्यंत सुन्दर कृति ।

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    1. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से लेखन प्रोत्साहित हुआ मीना जी।
      हृदय से आभार आपका।
      सस्नेह।

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  10. दादी की कहानियों में नानी थी चाँद के अंदर

    सच की नानी का चरखा ढूंढ़ते नाना के घर ।

    सच,कितना मासूम था बचपन,
    बचपन की यादों जैसी बेहद प्यारी रचना।सादर नमन कुसुम जी

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    1. रचना के भावों को समर्थन देती सार्थक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ कामिनी जी।
      बहुत आभार आपका।
      सस्नेह।

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    2. This comment has been removed by the author.

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