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Friday 18 March 2022

होली प्रीत की कोली


 होली प्रीत की कोली


रंग भर घर से चली है

मग्न हो कर आज टोली

ढ़ाक खिलके मदमदाए

शीश वृक्षों के रँगोली।


केसरी सी हर दिशा है

फाग खेले हैं हवाएँ

व्योम से पिचकारियाँ भर

कौन रंगीला बहाएँ

श्वेत चुनरी पर ठसकती

इंद्र धनुषी सात मोली।।


छाब भरकर फूल लाया

मौसमी ऋतुराज माली

लोल लतिका झूम नाचे

अधखिले से अंगपाली

फाग का अनुराग जागा

स्वर्ण वर्णी ये निबोली।।


नेह का गागर छलकता

धूम है सब ओर भारी

हैं उमंगित बाल बाला

शीत है मन की अँगारी

 फागुनी शृंगार महके

ये अबीरी सी ठिठोली।


गूँथ लो अनुराग रेशम

झूलता उपधान मंजुल

प्रेम की गंगा निकोरी

झुक भरो बस स्नेह अंजुल

आज होली कह रही है

प्रीति की तू बाँध कोली।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

16 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१९-०३ -२०२२ ) को
    'भोर का रंग सुनहरा'(चर्चा अंक-४३७३)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. हृदय से आभार आपका अनिता जी चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
      मैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

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  2. बहुत सुंदर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ओंकार जी।
      सादर।

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  3. आदरणीया कुसुम कोठारी जी, नमस्ते👏!
    बहुत बहुत बहुत अच्छी रचना!होली के शुभकामनाएँ!
    गूँथ लो अनुराग रेशम
    झूलता उपधान मंजुल
    प्रेम की गंगा निकोरी
    झुक भरो बस स्नेह अंजुल
    आज होली कह रही है
    प्रीति की तू बाँध कोली।।
    --ब्रजेंद्रनाथ

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    1. जी आदरणीय आपकी विस्तृत सारगर्भित टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ,और लेखनी को नव ऊर्जा का आशीर्वाद मिला।
      सादर आभार आपका।

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  4. बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन, उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया।
      सस्नेह

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  5. गूँथ लो अनुराग रेशम
    झूलता उपधान मंजुल
    प्रेम की गंगा निकोरी
    झुक भरो बस स्नेह अंजुल
    मुग्ध करती अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति । रंगोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ कुसुम जी !सादर सस्नेह…॥

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    1. सुंदर मोहक शब्दों से रचना को मान लेने के लिए हृदय से आभार मीना जी बहुत मनभावन प्रतिक्रिया।
      रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह।

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  6. श्रृंगार रस से सराबोर अति उत्तम कृति के लिए हार्दिक बधाई। मनमोहक झांकियां एवं आकर्षक बिम्ब मंत्र मुग्ध कर रहा है। हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    1. विहंगम दृष्टि से अवलोकन कर के रचना पर गहन भाव प्रतिक्रिया से रचना को नये आयाम मिले अमृता जी मैं भाव विभोर हूँ ।
      सस्नेह।

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  7. वाह ।
    शानदार रचना ।
    एक एक शब्द मन को छू रहे ।
    बहुत शुभकामनाएँ ।

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    1. हृदय से आभार आपका जिज्ञासा जी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए, आपकी शुभकामनाएं सदा मेरा संबल है ।
      सस्नेह।

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  8. हृदय से आभार आपका आलोक जी।
    सादर।

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  9. ढा़क खिलके मदमदाए...
    व्योम से पिचकारियाँ भर
    कौन रंगीला बहाएँ
    अहा !
    मंत्रमुग्ध करता बहुत ही मनमोहक सृजन आकर्षक बिम्ब विधान ...बहुत ही लाजवाब
    वाह!!!

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