विविक्त!
जेल में दो कैदी एक साथ एक बहुत गंभीर बिमारी से बाहर आया ही था कमजोरी और खिन्नता से भरा, दूसरा भी हर रोज कुछ शारीरिक पीड़ा से गुजर रहा था।
दोनों साथ रह कर अपना समय एक दूसरे के सहारे बीता रहे थे, दोनों को एक-दूसरे की आदत हो गई गंभीर कैदी हर रोज प्रार्थना करता दूसरे कैदी की सजा उसकी सजा से पहले खत्म न हो...
दूसरे को सश्रम कारावास के दौरान दूसरे कैदियों के साथ काम करते हुए अचानक कोरोना
ने जकड़ लिया।
अब उसे वहाँ से निकाल दूसरे बैरक में डाल दिया गया।
पहला कैदी फूट-फूट कर रो पड़ा भगवान से शिकायत करने लगा मेरी इतनी सी प्रार्थना नहीं सुनी तूने हे निर्मोही एक साथी था उसे भी दूर कर दिया।
तभी सरसराती आवाज आई तूने कहा उसे मैंने सुन लिया उसकी सजा तेरी सजा के बाद ही खत्म करने का मैंने तथास्तु कह दिया तूझे, पर हे स्वार्थी मानव तूने उसका साथ नहीं माँगा उसके लिए सजा माँगी थी मैंने तो साथ ही छीना है सजा कायम है।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
हे प्रभु ! शब्दों को नहीं, भावनाओं को समझा करो
ReplyDeleteसही कहा आपने मासूमों की मासूमियत को तो समझो से दया निधि।
Deleteहृदय से आभार आपका।
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बढियां
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका भारती जी।
Deleteसस्नेह।
ऊपर वाला अन्दर तक झांक लेता है।
ReplyDeleteजी सही कहा तभी तो लोग आस्था रखते हैं ।
Deleteसादर आभार आपका।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१९-०२ -२०२२ ) को
'मान बढ़े सज्जन संगति से'(चर्चा अंक-४३४५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हृदय से आभार आपका अनीता मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए।
Deleteमैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।
इसीलिए तो कहते हैं कि बोलते समय शब्दों का चुनाव बहुत सोच समझकर करना चाहिए।
ReplyDeleteजी सही कहा मीना जी हृदय से आभार आपका, लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसस्नेह।
वाह!बहुत खूब कुसुम जी । तभी तो कहा है न कि तोल -मोल कर बोल ।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका शुभा जी ।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
विडंबना
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका नूपुर जी उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसस्नेह।
पद्य की तरह गद्य सृजन कौशल भी लाजवाब है कुसुम जी! बहुत सुन्दर और सीख भरी बात कही आपने..,इन्सान को बोलने से पूर्व सोचना ज़रूर चाहिए ।
ReplyDeleteअभिभूत हूं मीना जी आपके स्नेह के आगे , सारगर्भित टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteहृदय से आभार आपका।
सस्नेह।
मानव मन को उचित मार्गदर्शन । सुंदर सराहनीय अभिव्यक्ति
ReplyDeleteरचना की गूढ़ता में जाने के लिए हृदय से आभार जिज्ञासा जी।
ReplyDeleteसस्नेह