Followers

Thursday 3 February 2022

बसंत की अनुगूँज


 बसंत की अनुगूँज


लो चंदन महका और खुशबू उठी हवाओं में,

कैसी सुषमा निखरी वन उपवन उद्यानों में।


निकला उधर अंशुमाली  गति  देने जीवन में,

ऊषा गुनगुना रही निशाँत का संगीत प्राँगण में।


मन की वीणा पर झंकार देती परमानंद में,

बसंत की अनुगूँज बिखरी मुक्त सी आबंध में।


वो देखो हेमांगी पताका लहराई अंबराँत में,

पाखियों का कलरव फैला चहूँ नीलकाँत में।


कुमुदिनी लरजने लगी सूर्यसुता के पानी में,

विटप झुम उठे हवाओं की मधुर कहानी में।


वागेश्वरी स्वयं नवल वीणा ले उतरी अनित्य में,

करें आचमन शक्ति अनंत अद्वय आदित्य में ।


लो फिर आई है सज दिवा नवेली के वेश में,

करे  सत्कार जगायें  नव निर्माण परिवेश में।


                 कुसुम कोठारी  प्रज्ञा

23 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार आपका ज्योति बहन आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

      Delete
  2. वागेश्वरी स्वयं नवल वीणा ले उतरी अनित्य में,

    करें आचमन शक्ति अनंत अद्वय आदित्य में ।

    मां सरस्वती की आराधना में बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति । बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐🌹🌹

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी,आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      आप को भी मधुमास के हर पल के लिए अनंत शुभकामनाएं।
      सस्नेह।

      Delete
  3. बसन्त के स्वागत में प्रकृति का श्रृंगार और आपकी लेखनी से निसृत प्रकृति के सौंदर्य का मनोहर शब्द चित्र । वीणा की झंकार के साथ बसन्त की अनुगूँज पूरी कृति में समायी जान पड़ती है । बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ कुसुम जी ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. अहा!
      मीना जी आपकी प्रतिक्रिया अपने आप में बसन्त का सुखद अहसास लिए है।
      बहुत बहुत सुंदर शब्दों से अभ्यर्थना की है आपने बसंत की।
      आपको भी हर दिन बसंत की अनुगूँज सहलाती रहे।
      सस्नेह आभार।

      Delete
  4. कुमुदिनी लरजने लगी सूर्यसुता के पानी में,

    विटप झुम उठे हवाओं की मधुर कहानी में।

    सुन्दर शब्द चित्रण, बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका हरीश जी, आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर।

      Delete
  5. मन की वीणा पर झंकार देती परमानंद में,

    बसंत की अनुगूँज बिखरी मुक्त सी आबंध में।
    एकदम बसंत की तरह ही बहुत ही खूबसूरत सृजन
    बसंत पंचमी की आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं और बधाई 💐🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार आपका मनीषा जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना बसंती हो गई ।
      आपका जीवन सदा बसंती बहार में आबाद रहें।
      सस्नेह।

      Delete
  6. बहुत ही सुन्दर रचना
    बसंत पंचमी की आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ और हार्दिक बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका विभा जी आपको भी बसंत आगमन की हार्दिक शुभकामनाएं।।
      सस्नेह।

      Delete
  7. वागेश्वरी स्वयं नवल वीणा ले उतरी अनित्य में,

    करें आचमन शक्ति अनंत अद्वय आदित्य में ।

    वाह !! वसंत के आगमन का अति सुंदर वर्णन!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका अनिता जी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

      Delete
  8. कुमुदिनी लरजने लगी सूर्यसुता के पानी में,

    विटप झुम उठे हवाओं की मधुर कहानी में।
    वाह!!!!
    बहुत ही लाजवाब बसंत सा बासंती और मनमोहक सृजन...
    प्रकृति की सुन्दरता, फाग के राग,हो या बसंत के रंग आपकी लेखनी का कोई सानी नही कुसुम जी! समा बाँध देती हैं आपकी रचनाएं
    कोटिश नमन 🙏🙏🙏🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुधा जी मैं अभिभूत हो जाती हूँ आपके स्नेह से आपकी मधुरिम प्रतिक्रिया से ।
      सुंदर मोहक अनुराग जगाती प्रतिक्रिया।
      सस्नेह आभार आपका।

      Delete
  9. अति सुन्दर शिल्प में बासंतिक सौंदर्य नैनाभिरामी है। मन की वीणा ही तो परमानन्द की झंकार है। हार्दिक शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार आपका अमृता जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह आभार आपका।

      Delete
  10. बहुत बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार आपका आलोक जी।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर।

      Delete
  11. बहुत ही सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका मनोज जी।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

      Delete
  12. सस्नेह आभार आपका प्रिय अनिता।
    चर्चा मंच पर रचना का होना आनंदित करता है।
    मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
    सस्नेह सादर।

    ReplyDelete