पराग और तितली
चहुँकोना नव किसलय शोभित
हवा बसंती हृदय लुभाती
दिखे धरा का गात चम्पई
उर अंतर तक राग जगाती ।
ओ मतवारी चित्रपतंगः
सुंदर कितनी मन भावन हो
मंजुल मोहक रूप तुम्हारा
अद्भुत सी चित्त लुभावन हो
माली फूलों के रखवाले
तुम तो फूलों पर मदमाती।।
हो कितनी चंचल तुम रानी
कोई पकड़ नहीं पाता है
आँखों से काजल के जैसे
रस मधुर चुराना भाता है
ले लेती सौरभ सुमनों से
फिर उड़के ओझल हो जाती।।
चार दिशा रज कुसुम विलसता
पूछे रमती ललिता प्यारी
थोड़ा-थोडा लेती हो सत
लोभी मनु से तुम हो न्यारी
पात-पात उड़ती रहती हो
घिरती साँझ न तुमको भाती।।
फूलों सी सुंदर हो तितली
फिर भी फूल तुम्हें भरमाते
तेरी सुंदर काया में कब
इंद्रनील आभा भर जाते
अजा बदलती रूप अनेकों
तुम किससे पावन वर पाती।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
प्रकृति के समीप ले जाती सुंदर रचना । तितली की सुंदरता को खूबसूरत शब्दों में बयाँ किया है ।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका आदरणीय संगीता जी, आपकी उपस्थिति से सदा लेखन को संबल मिलता है।
Deleteस्नेहिल उपस्थिति बनाए रखें।
सादर सस्नेह।
प्राकृति और जीवन ... दोस्निं आशा के प्रतीक हैं ...
ReplyDeleteबसंत की तैयारी है ... दोनों खिलेंगे ... सुन्दर रचना ...
हृदय से आभार आपका नासवा जी,आपकी सार्थक सक्रिय प्रतिक्रिया से लेखन गतिमान हुआ ।
Deleteसादर।
वाह
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (03-02-2022 ) को 'मोहक रूप बसन्ती छाया, फिर से अपने खेत में' (चर्चा अंक 4330) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हृदय से आभार आपका, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए,मैं चर्चा में उपस्थित रहूंगी।
Deleteसादर सस्नेह।
प्रकृति के साथ तितली के क्रियाकलापों का सबक्ष्म वर्णन । मनभावन सृजन ।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका मीना जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteसस्नेह।
कृपया *क्रियाकलापों का सूक्ष्म वर्णन* पढ़ें 🙏
ReplyDeleteएकदम फूल और तितली की तरह बहुत ही खूबसूरत सृजन....
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका प्रिय मनीषा आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर वसंत-वर्णन !
ReplyDeleteकिन्तु
फूल उदास-उदास हैं, तितलियाँ लुप्तप्राय हैं, बसन्ती बयार के स्थान पर बादलों की गर्जना है और ऊपर से बजट की मार है.
यह कैसा वसंत है?
जी सर सही कहा आपने ,पर कवि लेखनी मौसमक्षका अनुराग लिख ही देती है ।
Deleteहृदय से आभार आपका।
सादर।
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका आलोक जी ।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
सादर।
वाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteमन शीतल हो गया।
फूलों सी सुंदर हो तितली
फिर भी फूल तुम्हें भरमाते
तेरी सुंदर काया में कब
इंद्रनील आभा भर जाते
अजा बदलती रूप अनेकों
तुम किससे पावन वर पाती।।... वाह!
बहुत बहुत आभार आपका प्रिय अनिता आपकी स्नेहसिक्त टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसस्नेह।
इंद्रधनुषी रंगों वाली तितलियाँ
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका।
Deleteब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी उत्साह वर्धन हुआ आपकी प्रतिक्रिया से।
Deleteसस्नेह।
फूलों सी सुंदर हो तितली
ReplyDeleteफिर भी फूल तुम्हें भरमाते
तेरी सुंदर काया में कब
इंद्रनील आभा भर जाते
अजा बदलती रूप अनेकों
तुम किससे पावन वर पाती
बहुत ही मनमोहक एवं अद्भुत शब्दसंयोजन, लाजवाब सृजन
वाह!!!
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी।
Deleteआपकी स्नेहिल टिप्पणी से रचना नव ऊर्जा से पल्लवित हुई ।
सस्नेह।