भाण
गीत नव सुंदर रचे हैं
पाण रखना चाहिए।
जब लिखो तुम शब्द कहते
भाण रखना चाहिए।
एक से बढ़ लेखनी है
काव्य रचती भाव भी
कल्पना की डोर न्यारी
और गहरे घाव भी
गंध को भरले हृदय में
घ्राण रखना चाहिए।।
हो विचारों में गहनता
संयमी जीवन रहे
कामना की दाह पर भी
बाँध से पानी बहे
लालसा बहती सुनामी
त्राण रखना चाहिए।।
नील कंठी शिव प्रभु में
तीक्ष्ण भी है ओज भी
मनसिजा को भस्म करके
दपदपाया तेज भी
जीत की हर चाह पर कुछ
ठाण रखना चाहिए।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
पाण=अभिनंदन ,भाण=ज्ञान ; बोध, ठाण=ठान घ्राण=सूंघने की शक्ति,मनसिजा =कामदेव