Friday, 4 June 2021

डोर आज्ञात के हाथ


 डोर आज्ञात के हाथ।


सागरी पानी उठा कर

झूम कर बदरी घमकती।


चाल चलता कौन ऊपर

डोर किसके हाथ रहती

नाट्य रचता है अनोखे

एक ओझल धार बहती

ताप दिनकर का तपाता

बन धरा कुन्दन चमकती।।


अंकुरित हो बीज नन्हा

चीरता आँचल धरित्री

और लहराके मटकता

कुश बनता है पवित्री

और कितने रंग अद्भुत

पंक में नलिनी गमकती।।


नीर बरसे क्षीर जैसा

बूंद बिन मेघा बरसती

रात की प्यारी सहेली

सूर्य क्रीड़ा को तरसती

पात पलने झूलती वो

ओस मोती सी दमकती।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

31 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५ -०६-२०२१) को 'बादल !! तुम आते रहना'(चर्चा अंक-४०८७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

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  2. हम सब बस उसके हाथ की कठपुतली हैं; फिर चाहे वह हमें सोना बना दे या कोयला।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका सही कहा आपने उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  3. बहुत अच्छी रचना, बधाई.

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जेन्नी जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  4. हमेशा की तरह बहुत सुंदर।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी।
      सादर।

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  5. चाल चलता कौन ऊपर

    डोर किसके हाथ रहती

    नाट्य रचता है अनोखे

    एक ओझल धार बहती

    बस रचयिता के हाथों के कठपुतली ही तो है,हमेशा की तरह लाज़बाब सृजन कुसुम जी,सादर नमन आपको

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी आपकी सक्रिय सार्थक प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  7. वाह! आपका कथन बिलकुल सत्य है,ये सुंदर सृष्टि किसी न किसी के द्वारा संचालित है,हम तो बस कठपुतली मात्र हैं,आपकी चिंतनपूर्ण सुंदर रचना को हृदय से नमन करती हूं। सादर शुभकामनाएं ।

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    1. विस्तृत व्याख्या जब होती है रचना की लगता है लेखन सार्थक हुआ, आपसे सदा भरपूर स्नेह मिलता है जिज्ञासा जी ,आपकी मंथन करती प्रतिक्रिया सदा उर्जा का संचार करती है ।
      सस्नेह।

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  8. बहुत बहुत सुन्दर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका, उत्साह वर्धन के लिए, सादर ।

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  9. बहुत ही सुंदर रचना ।

    चाल चलता कौन ऊपर

    डोर किसके हाथ रहती

    नाट्य रचता है अनोखे

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      सुंदर प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
      सस्नेह।

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  10. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  11. नमस्‍कार कुसुम जी, आप हर बार अपनी रचना से हमें आध्‍यात्‍म के नए सोपान पर ले जाती हैं,बहुत खूब... बहुत ही खूब...

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    1. अलकनंदा जी आपकी मुग्ध करती प्रतिक्रिया हरबार मुझे कुछ और अच्छा करने का संदेश देती है और प्रेरणा भी, बहुत बहुत सा आभार आपका सदा यूं ही स्नेह देते रहें ।
      सस्नेह।

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  12. बिल्कुल डोर किसी और के हाथ है। बहुत सुंदर रचना।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  13. हमेशा की तरह भावों व शब्दों का सौंदर्य बिखेरती रचना मुग्ध करती है।

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    1. सादर आभार आपका आपकी विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।
      सादर।

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  14. बेहद खूबसूरत रचना सखी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी।

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  15. वाह्ह्ह्ह्ह्ह!
    पंक्ति-पंक्ति लाजवाब।
    बेहद उम्दा 👌
    आपकी लेखनी का सौंदर्य मनमोह लेता है।
    सादर प्रणाम दीदी जी 🙏

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आंचल सुंदर प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।
      सस्नेह।

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  16. और लहराके मटकता ।
    ये मटकता शब्द बहुत पसंद आया । आँखों के आगे एक नन्हा पौधा ज़मीन से निकलता है और हिलता हुआ दिख रहा । प्रकृति कैसे और किसके हाथों में है व्व तो अज्ञात है लेकिन आपने बहुत सुंदर शब्द चित्र खींच दिया है ।

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