Monday, 7 June 2021

गाँव की स्मृति


 गाँव की स्मृति


दो घड़ी आ पास बैठें 

पीपली की छांव गहरी 

कोयली की कूक सुन कर 

गोखरू की झनक ठहरी ।।


वो दिवस कितने सुहाने 

दौड़ते नदिया किनारे 

बाग में अमियां रसीली 

मोर नाचे पंख धारे 

खाट ढ़लती चौक खुल्ले 

नील नभ पर चाँद फेरी।। 


वात में था प्राण घुलता 

धान से आँगन गमकता 

बोलियाँ मीठी सरस सी 

तेज से आनन दमकता 

दर्द सुख सब साथ सहते 

प्रीत गहरी थी घनेरी।। 


चल पड़े उठ उठ कदम फिर 

खींचता वो कल्प सुंदर 

भूमि के राजा सभी थे 

और सब मन के सिकंदर  

सोचता मन गाँव प्यारा

ये डगर रंगीन मेरी ।।



कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

28 comments:

  1. बहुत खूवसुरत दृश्य उकेरा है । सुंदर सृजन ।

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    1. सस्नेह आभार आपका संगीता जी आपको रचना पसंद आयी लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल .मंगलवार (8 -6-21) को " "सवाल आक्सीजन का है ?"(चर्चा अंक 4090) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी, रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए।
      सादर।

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  3. गांव का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है आपने।

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    1. आप को पसंद आई! लेखन सार्थक हुआ ज्योति बहन।
      सस्नेह आभार।

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  4. चल पड़े उठ उठ कदम फिर 

    खिंचता वो कल्प सुंदर 

    भूमि के राजा सभी थे 

    और सब मन के सिकंदर  

    बेहतरीन रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  5. गाँव सच में प्यारा है, बस वह प्यारा बना रहे। शीर्षक में लगता है कुछ अशुद्ध टाइप हो गया है।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका रचना को नव उर्जा मिली ।
      जी शीर्षक में गलती पर ध्यान दिलवाने के लिए हृदय से आभार।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  6. वाह!गज़ब दी सभी बंद सराहना से परे।

    खाट ढ़लती चौक खुल्ले
    नील नभ पर चाँद फेरी...वाह!👌

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अनिता, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  7. गाँव की तो बात ही निराली है। बहुत खूब।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका नीतिश जी।
      उत्साहवर्धक शब्दों से नवगीत सार्थक हुआ।
      सादर।

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  8. शानदार रचना और मेरा पसंदीदा विषय...खूब कुसुम जी।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका,रचना का विषय पसंद आया रचना सार्थक हुई।
      उर्जा वान प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  9. बहुत ही शानदार रचना प्रज्ञा जी 💐💐💐

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    1. बहुत बहुत आभार आपका नीतू जी,
      उत्साहवर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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  10. धीरे-धीरे गांव भी शहरों की जहरीली मानसिकता का शिकार होते चले जा रहे हैं ! सब कुछ बदलता जा रहा है

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    1. जी ! सही कहा आपने अब गाँवों में भी शहर पसरने लगे हैं, ग्रामीण शहरों की तरफ दौड़ रहे हैं और वापसी में शहरों की मनोवृत्ति लेकर ही आते हैं सार्थक प्रतिक्रिया।
      सादर आभार आपका।

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  11. चल पड़े उठ उठ कदम फिर
    खिंचता वो कल्प सुंदर
    भूमि के राजा सभी थे
    और सब मन के सिकंदर
    सोचता मन गाँव प्यारा
    ये डगर रंगीन मेरी ।।
    जब सभी भूमि के राजा और मन के सिकन्दर थे तभी तो संतुष्टि के भाव थे सबमें...खुशियाँ भी थी
    लाजवाब सृजन हमेशा की तरह सुन्दर एवं सार्थक।

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    1. सुधाजी आपकी विस्तृत टिप्पणी सदा रचना के समानांतर रचना को प्रवाह देती है ।
      बहुत बहुत आभार आपका।
      सस्नेह।

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  12. चल पड़े उठ उठ कदम फिर
    खींचता वो कल्प सुंदर
    भूमि के राजा सभी थे
    और सब मन के सिकंदर
    वाह !! अति सुन्दर सृजन ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी।
      आपकी प्रतिक्रिया सदा मनोबल बढ़ाती है।
      सस्नेह।

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  13. बहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर

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  14. मेरी रचना आपकी सुंदर अनुभूतियों को समर्पित है,आपको मेरा सादर नमन।


    एक दिन मुझसे कहा मेरे बूढ़े से मन ने
    चलो लौट चलें बचपन के आंगन में

    वहाँ अपनी धूप होगी अपनी ही छाँव
    होगा वही अपना पुराना गाँव
    लेटकर झुलेंगे झिलगी खटिया की वरदन में

    पेड़ पर चढ़ेंगे खेलेंगे लच्छी डाड़ी
    गुल्ली डंडा लंगड़ी और सिकड़ी
    चुरा के तोड़ेंगे कच्ची अमियां गाँव भर की बगियन में

    चलेंगे नदिया तलाव नहाने हम
    गोता लगायेंगे झमाझम
    छप्पक छैया खेलेंगे पोखरन में

    सावन आएगा बरखा बरसेगी
    दुआरे पिछवारे तलैया खूब भरेगी
    नाव नवरिया खेलेंगे चाँदनी रतियन में

    किताब बस्ता लेकर स्कूल चलेंगे हम सब
    इमला गिनती पढ़ाएँगे मास्टर साहब
    पहाड़ा उनको हम सुना देंगे सेकंडन में

    खाएँगे अम्मा के हाथ की रोटी औ दाल ज़बरिया देंगी वो खूब ही मक्खन डाल
    ज़्यादा खिला देंगी वो फँसा के बतियन में

    चलो लौट चलें गांव के आंगन में....
    जिज्ञासा सिंह..

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  15. वाह! बहुत बहुत सुंदर।
    रचना के प्रतिक्रिया में इतनी सुंदर मुग्ध करती कविता ,आँचलिक शब्दों का पूट लिये हृदय के करीब का सृजन।
    बहुत प्यारी रचना।
    अप्रतिम।

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