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Friday 14 May 2021

बन रहे मन तू चंदन वन


 बन रे मन तू चंदन वन

सौरभ का बन अंश-अंश।


कण-कण में सुगंध जिसके 

हवा-हवा महक जिसके

चढ़ भाल सजा नारायण के

पोर -पोर शीतल बनके।


बन रे मन तू चंदन वन।


भाव रहे निर्लिप्त सदा

मन वास करे नीलकंठ

नागपाश में हो जकड़े

सुवास रहे सदा आकंठ।


बन रे मन तू चंदन वन ।


मौसम ले जाय पात यदा

रूप भी न चित्तचोर सदा

पर तन की सुरभित आर्द्रता

पीयूष रहे बन साथ सदा।


बन रे मन तू चंदन वन ।


घिस-घिस खुशबू बन लहकूँ

हर जन का ताप संताप हरूँ 

तन मन से बन श्री खंड़ रहूँ 

दह राख बनूँ फिर भी महकूँ ।।


बन रे मन तू चंदन वन ।।


     कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

26 comments:

  1. अत्यंत प्रेरक व बेहतरीन रचना आदरणीया कुसुम जी। सादर नमन।।।।।।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका पुरुषोत्तम जी, आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर।

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  2. वाह, हमेशा की तरह बहुत सुंदर।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी ।
      आपका स्नेह सदा मिलता रहता है मेरे लेखन को, जिससे लेखन को नव उर्जा मिलती है।
      सादर।

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  3. घिस-घिस खुशबू बन लहकूँ

    हर जन का ताप संताप हरूँ

    तन मन से बन श्री खंड़ रहूँ

    दह राख बनूँ फिर भी महकूँ ।।



    बन रे मन तू चंदन वन ।।
    कुसुम दी, इससे अच्छी ख्वाहिश तो कोई हो ही नही सकती!बहुत सुंदर।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
      आपके मन के कोमल भावों ने रचना के भावों को समर्थन देकर रचना को सार्थकता दी है । बहुत बहुत आभार आपका सस्नेह ।

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  4. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना । वाह ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  5. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका गगन जी ।
      लेखन सार्थक हुआ। आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से।
      सादर।

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  6. जीवंतता का सुंदर पर्चे कराती अनमोल रचना ,सादर शुभकामनाएं कुसुम जी ।

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    1. प्रिय जिज्ञासा जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना और भी मुखरित हुई ।
      सस्नेह आभार आपका।

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  7. मौसम ले जाय पात यदा

    रूप भी न चित्तचोर सदा

    पर तन की सुरभित आर्द्रता

    पीयूष रहे बन साथ सदा।---बहुत शानदार पंक्तियां

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    1. बहुत बहुत आभार आपका संदीप जी ,
      सुंदर मन के भाव आपके, कोमल भावों पर सहज आकर्षण
      रचना को सार्थकता देता है ।
      सदा विशिष्ट दृष्टि से समालोचन करते रहिये।

      सादर।

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  8. जी हां कुसुम जी। मन को ऐसा ही बनाने का प्रयास हमें करना चाहिए। बहुत सुंदर रचना है यह आपकी। अभिनंदन।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जितेंद्र जी, रचना के भावों पर समर्थन और भावों की सार्थकता पर आपकी प्रतिक्रिया से रचना को संबल मिला।
      सादर।

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  9. सुन्दर रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।सादर।

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  10. बहुत सुंदर आध्‍यात्‍म और जीवन के सारांश को समेटे हुए अदभुत रचना कुसुम जी... वाह

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    1. बहुत सुंदर प्रतिक्रिया आपकी, रचना में निहित भावों पर विशिष्ट नज़र रचना को प्रवाह देती है सखी जी ।
      हृदय से आभार आपका।
      सस्नेह।

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  11.  बन रे मन तू चंदन वन

    सौरभ का बन अंश-अंश।

    बहुत सुंदर रचना

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      रचना सार्थक हुई।
      सादर।

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  12. बहुत बढ़िया।

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    1. जी सादर आभार आपका।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  13. सस्नेह आभार आपका मीना जी।
    मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
    सादर।

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  14. वाह!सराहनीय सृजन दी।

    बन रे मन तू चंदन वन...हर बंद बेहतरीन 👌

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