Followers

Thursday 21 January 2021

रात का सौंदर्य


 विज्ञात योग छंद आधारित गीत।

10/8

रात का सौंदर्य


चांदी हैं फैली 

नदिया के तट 

साथ चलें सजनी 

चल वंशीवट।


झांझर है झनकी 

मन भी बहका 

बागों में कैसा 

सौरभ महका 

चहुं दिशा पसरे 

उर्मि भरे घट।।


हवा चली मधुरिम 

झिंगुर बोले 

कानों में जैसे 

मधु रस घोले

संभालो गोरी 

बहक उड़ी लट।


आते जब कान्हा 

बंसी बजती

नाचे ललनाएं 

राधे सजती

बोले जग सारा 

श्री हरि नटखट।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

32 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज शुक्रवार 22 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सांध्य मुखरित का साथ पाकर रचना और मुखरित हुई।
      मैं उपस्थित रहूंगी ‌।
      सादर।

      Delete
  2. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

      Delete
  3. बेहतरीन रचना सखी

    ReplyDelete
  4. मन खुश हो, उल्लसित हो तो हर चीज खुशगवार लगती है

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कहा आपने,रचना को समर्थन देती प्रतिक्रिया से रचना प्रवाह मान हुई।
      सादर आभार आपका।

      Delete
  5. बहुत सुंदर सृजन, कुसुम दी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।

      Delete
  6. बहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

      Delete
  7. अत्यंत सुन्दर गीत ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी।
      आपकी उपस्थिति सदा मुझे प्रेरित करती है नव सृजन के लिए ।
      सस्नेह।

      Delete
  8. वाह!कुसुम जी ,बहुत सुंदर ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका शुभा जी उत्साहवर्धन के लिए।
      सस्नेह।

      Delete
  9. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

      Delete
  10. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए सादर।

      Delete
  11. लाजवाब शब्द चित्र प्रिय कुसुम बहन. आपकी प्रतिभा का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं . हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 🌹🌹🙏🌹🌹

    ReplyDelete
    Replies
    1. रेणु बहन आपकी हृदय को आनंदित करती प्रतिक्रिया से रचना को नये आयाम मिले।
      आपका स्नेह सदा मुझे नव उर्जा से भर देता है।
      सस्नेह बहन।

      Delete
  12. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका विभाग बहना।
      आपकी उपस्थिति सदा खुशगवार होती है ।
      सस्नेह।

      Delete
  13. आते जब कान्हा
    बंसी बजती
    नाचे ललनाएं
    राधे सजती
    बोले जग सारा
    श्री हरि नटखट।।

    मनोहारी चित्रण...
    वाह ! बहुत सुंदर रचना कुसुम जी 🌹🙏🌹

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका शरद जी आपकी भाव भीनी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली।
      सस्नेह।

      Delete
  14. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। मनोहारी चित्रण के लिए आपको बधाई।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका रचना को सरनेम देने के लिए।
      सादर।

      Delete
  15. बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
    मैं उपस्थित रहूंगी।
    सादर।

    ReplyDelete
  16. बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
  17. आदरणीय / प्रिय,
    मेरे ब्लॉग "Varsha Singh" में आपका स्वागत है। मेरी पोस्ट दिनांक 24.01.2021 "गणतंत्र दिवस और काव्य के विविध रंग" में आपका काव्य भी शामिल है-

    <>

    गणतंत्र दिवस की अग्रिम शुभकामनाओं सहित,
    सादर,
    - डॉ. वर्षा सिंह

    ReplyDelete
  18. आदरणीय / प्रिय,
    मेरे ब्लॉग "Varsha Singh" में आपका स्वागत है। मेरी पोस्ट दिनांक 24.01.2021 "गणतंत्र दिवस और काव्य के विविध रंग" में आपका काव्य भी शामिल हैं-
    httpp://varshasingh1.blogspot.com/2021/01/blog-post_24.html?m=0

    गणतंत्र दिवस की अग्रिम शुभकामनाओं सहित,
    सादर,
    - डॉ. वर्षा सिंह

    ReplyDelete